Author: कवि स्व. भँवरदान जी वीठू "मधुकर" (झणकली)
रातीजगा चिरजा – माताजी म्हाने बधाणु बताय
श्री हनुमानजी स्तुति – लींबडी राजकवि शंकरदानजी देथा

।।दोहा।।
संकट मोचन बिरदतें, शोभित परम सुजान।
प्रिय सेवक सियारामके, नमो वीर हनुमान।।
।।छंद मोतीदाम।।
नमो महावीर जली हनुमंत।
धीमंत अनंत शिरोमणी संत।।
नमो विजितंद्रिय वायु कुमार।
अकामि अलोभी अमोहि उदार।।[…]
दोय दृष्टांन्त माँ भगवती इन्द्रेश भवानी के

।।माँ भगवती इन्द्रेश भवानी की समदृष्टि व कड़े अनुशासन की पालना के दो दृष्टांन्त।।
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भव-भय-भंजनी भगवती मावड़ी के चारण-वास में हुये प्रवास के दस दिवस के दौरान हर श्रध्दालुगण भक्तों नें माँ को मिजमानी देने की अथाह तथा पुरजोर कोशिश की तथा भाग्यशाली भक्तों के घर माँ भगवती ने पधार कर भोजन ग्रहण करना स्वीकार भी किया। वहीं पर साधारण व सदगृहस्थ भैरवदानजी जागावत भी रहते थे व उनकी धर्मपत्नि श्रीमती मोहनकुंवर कवियाणी बड़ी धर्मपरायणा व सीधी संकोची स्वभाव की नारी थी।[…]
» Read moreकल़ायण !

धरती रौ कण-कण ह्वे सजीव, मुरधर में जीवण लहरायौ।
वा आज कल़ायण घिर आयी, बादळ अम्बर मं गहरायो।।
वा स्याम वरण उतराद दिसा, “भूरोड़े-भुरजां” री छाया !
लख मोर मोद सूँ नाच उठ्यौ, वे पाँख हवा मं छितरायाँ।।
तिसियारै धोरां पर जळकण, आभै सूँ उतर-उतर आया।
ज्यूँ ह्वे पुळकित मन मेघ बन्धु, मुरधर पर मोती बरसाया।।[…]
शहीद दलपतसिंह शेखावत

जोधपुर रियासत रा देसूरी परगना रा देवली गांव रा शेखावत हरजीसिंह जी, महाराजा साब जसवंतसिंहजी अर सर प्रताप रा घणा मर्जींदान मिनख हा। आप आपरै जीवन रो घणो समय आं सर प्रताप रै साथै रावऴी सेवा में ही बितायो। आं हरजीसिंहजी रे दो बेटा मोभी दलपत सिंहजी अर छोटा जगतसिंहजी हां। हरजीसिंह जी री असामयक मौत हुवण रै बाद दोनां भाईयां री पढाई भणाई रो बंदोबस्त सर प्रताप करियो अर दलपत सिंह जी मेजर जनरल रा पद पर आसीन हुवा।[…]
» Read moreमैं विप्लव का कवि हूँ !

मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन।
मेरी छंदबद्ध वाणी में नहीं किसी कृष्णाभिसारिका के आकुल अंतर की धड़कन;
अरे, किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर पर मुग्ध नहीं है मेरा गायन !
मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन।[…]
» Read moreहे गाँव, तुझे मैं छोड़ चला

था एक दिवस जब तेरे इस आँगन में फूली अमराई !
था एक दिवस जब मेरे भी मन में झूमी थी तरुणाई !
पीपल की फुनगी पर बोली, पंचम स्वर में कोयल काली !
मादक मधु-ऋतु के स्वागत में, कोसों तक फैली हरियाली !
पावस की मतवाली संध्या, आती अम्बर से उतर-उतर !
उन खेतों की पगडंडी पर, वह बैलों की घंटी का स्वर ![…]
रे धोरां आळा देस जाग

धोराँ आळा देस जाग रे ऊँटाँ आळा देस जाग।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देस जाग।।
उठ खोल उनींदी आँखड़ल्यां नैणाँ री मीठी नींद तोड़।
रे रात नहीं अब दिन ऊग्यो सपनाँ रो कू़डो मोह छोड़।।
थारी आँख्याँ में नाच रह्या जंजाळ सुहाणी रातां रा।
तूं कोट बणावै उण जूनोड़ै जुग री बोदी बातां रा।।
रे बीत गयो सो गयो बीत तूं उणरी कू़डी आस त्याग।।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देश जाग।।१।।[…]
विप्लव का कवि “मनुज देपावत”

धोरां आळा देस जाग रै, ऊंठा आळा देस जाग।
छाती पर पैणां पड़्या नाग रै, धोरां आळा देस जाग।।
इस क्रान्तिकारी कवि का जन्म कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी विक्रम संवत 1984 को बीकानेर जिले के देशनोक ग्राम में हुआ। इनका असली नाम मालदान देपावत था, परन्तु रचनाकार के रूप में ये मनुज देपावत के नाम से जाने जाते थे। आप डिंगल भाषा के ख्याति प्राप्त कवि श्री कानदान जी देपावत के सुपुत्र थे। मनुज ने श्री करणी-विद्यालय देशनोक और फोर्ट हाई स्कूल बीकानेर से क्रमशः मिडिल और मेट्रिक पास की।[…]
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