लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो

लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो।।
अम्बर के नीलम प्याले में ढली रात मानिक मदिरा-सी।
कर जग को बेहोश चाँदनी बिखर गई मदमस्त सुरा-सी।
तुमने उस मादक मस्ती के मधुमय गीत बहुत लिख डाले।
किन्तु कभी क्या देखे तुमने वसुंधरा के उर के छाले।
तुम इन पीप भरे छालों में रस का अनुसन्धान कर रहे।
मौत यहाँ पर नाच रही तुम परियों का आव्हान कर रहे।