।।एकादश मयूख।। द्रोणपर्व (पूर्वार्द्ध) वैशंपायन उवाच दोहा पांच दिवस लखि द्रोण जुध, हथनापुर में आय। द्रोण पतन पांडव बिजय, संजय कहत सुनाय।।१।। वैशंपायन बोले हे जन्मेजय! संजय ने द्रोणाचार्य के पाँच दिन का युद्ध देखा। उनकी मृत्यु और पांडवों की विजय देखी। वही अब पूरा हाल सुनाता है। शार्दूल विक्रीडित छंद गेहे यस्य श्रुति: पठन्ति नितरां, नाना स्वरैर्ब्राह्मणा। वीराणां हि श्रणोति घोष मुदितं, ज्याकर्षिता धन्विनां। उच्चैर्वेणु रवादि वाद्य विविधै, नृत्यन्ति वाराङ्गना। हा हा! द्रोण कुतोसि तस्य सदने, वाक्यं समुद्दीर्यताम्।।२।। जिस गुरु द्रोणाचार्य के घर से नित्यप्रति विविध प्रकार के ब्राह्मण-स्वरों में वेदवाणी सुनाई देती थी। जिसके घर से धनुष की […]
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