पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – पंचम मयूख

पंचम मयूख सभा पर्व वैशंपायन उवाच दोहा मयदानव नृप धर्म की, नीके आयस पाय। सभा चतुर्दश मास में, रचिकै दई बताय।।१।। ता रक्षक अँतरिक्षचर, राक्षस अष्ट हजार। दस हजार कर मध्य तैं, चारों तरफ प्रचार।।२।। वैशंपायन मुनि कहने लगे कि हे राजा जन्मेजय! सुनो मयदानव ने राजा युधिष्ठिर से आज्ञा ले कर चौदह महिनों में (विपरीत) सभा का निर्माण कर दिखाया। जिसकी रक्षा का भार आकाश में उड़ने वाले आठ हजार राक्षसों पर था। इस सभा का चारों ओर का विस्तार दस हजार हाथ (गज का नाप) था। सभा रचना पद्धरी छंद नानात्व जलाशय विटप तत्र, चहुँ खान जीव साक्षात […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – चतुर्थ मयूख

चतुर्थ मयूख महाभारत कथा प्रारंभ आदिपर्व विचित्रवीर्य वंशकारक और भारत ग्रंथकारक श्री वेदव्यासोत्पत्ति पद्धरी छंद भो मद्रकेत गंधर्वराज, अद्रिका त्रिया शोभा समाज। तिहि रिषि सराप झख जोनि पाय, उद्धार ऋषिहि दीनो बताय।।१।। कोउ मनुज वीर्य भजि पुत्रि होय, दंपत्ति निज गति तुम लहहु दोय।। एक मद्रकेत नामक गंधर्वों का राजा हुआ, और समाज की शोभा रूप आद्रिका नाम की स्त्री थी। उसे किसी ऋषि का श्राप था जिससे वह मछली की योनि में थी। शाप के वक्त, अनुग्रह की याचना में स्तुति करने पर, मुनियों ने उसे उद्धार का रास्ता बताया कि यदि किसी पुरुष के वीर्य के सेवन से […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – तृतीय मयूख

तृतीय मयूख अलंकार तथा रस प्रकरण अलंकार-सूची दोहा वसु अयन विधु सर्व हैं, भेद गिनै बहु होय। अति व्याप्ति के दोष तैं, चौरासी मुख जोय।।१।। वसु-आठ, अयन-दो, विधु-एक इन अंकों से बनने वाली संख्या को उलटने पर बनी (१२८) । एक सौ अठाईस अलंकार होते हैं फिर आगे प्रत्येक भेद गिनने से यह संख्या बढ़ जाती है। अति व्याप्तता दोष से बचते हुए कहें तो (८४) चोरासी अलंकार होते हैं (अति-व्याप्ति का खुलासा आगे देखें) जाने जात जु शब्द तैं, काम परै बहु ठौर। अलंकार मुखि कहत हौं, ग्रंथ बढ़ै विधि और।।२।। जो शब्दोच्चार से जाने जाते हैं, और बहुत […]

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समानबाई के सवैया

करसै है कमान अहेरिय कान लौं,
बान तैं प्रान निकालन में हैं।
दरसै गुस्सै भर्यो स्वान घुसै,
झुरसै तन तो जगि ज्वालन में हैं।
तरसै दृग नग पै ढिग तो,
मृगी लगी लौ लघु लालन में हैं।
बरसै अँखियां दुखियाँ अति मो,
सरसै सुख स्वामि सम्हालन में हैं।।[…]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – द्वितीय मयूख

द्वितीय मयूख छंद प्रकरण दोहा ना गायो जग-मीत कौं, साहित जुत संगीत। श्रूपदास जिनके न द्वै, पूंछ रु स्रंग पुनीत।।१।। जगत-बंधु (जगत का भला करने वाले) भगवान का साहित्य एवं संगीत युक्त जिसने गुणगान नहीं किया, उनके लिए कवि स्वरूपदास कहता है कि ऐसे मनुष्य, बिना पूंछ और स्रंग के नर-पशु हैं। ऐसे लोगों से तो पूंछधारी प्राणी उत्तम हैं (यह पुनीत शब्द कहने का अभिप्राय है) छंद अलंकृत रसन को, करौं सूचिका पत्र। बहु व्यापक सामान्य पख, आदिहि वर्नन अत्र।।२।। कवि कहता है कि मैं छंद, और रसों का मात्र सूचीपत्र रच रहा हूँ। कारण कि छंद-अलंकारादि अन्य ग्रंथों […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – प्रथम मयूख

प्रथम मयूख मंगलाचरण छंद – अनुष्टुप् गुणालंकारिणो वीरौ, धनुष्तोत्र विधारिणौ। भू भार हारिणौ वन्दे, नर नारायणो उभौ।।१।। उत्तम गुणों से विभूषित, धनुष एवं चाबुक को धारण करने वाले तथा पृथ्वी के भार को हरने वाले, नर-नारायण इन दोनों वीरों (अर्जुन एवं कृष्ण) का मैं वन्दन करता हूँ। दोहा ध्यान-कीरतन-वंदना, त्रिविध मंगलाचर्न। प्रथम अनुष्टुप बीच सो, भये त्रिधा शुभ कर्न।।२।। ध्यान, कीर्तन एवं वन्दना ये तीन प्रकार के मंगलाचरण हैं। प्रथम अनुष्टुप छंद में मंगल करने वालों का तीनों प्रकार से मंगलाचरण किया गया है-यथा त्रिविध पृथक्करण :- १. धनुष्तोत्र धारण करने वाले रूप-स्वरूप का वर्णन अर्थात् ‘ध्यान’ पूर्वक मंगलचरण है। […]

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पांडव यशेन्दु चन्द्रिका – स्वामी स्वरुपदास

मंगलाचरण

छंद – अनुष्टुप्
गुणालंकारिणो वीरौ, धनुष्तोत्र विधारिणौ।
भू भार हारिणौ वन्दे, नर नारायणो उभौ।।१।।
दोहा
ध्यान-कीरतन-वंदना, त्रिविध मंगलाचर्न।
प्रथम अनुष्टुप बीच सो, भये त्रिधा शुभ कर्न।।२।।
नमो अनंत ब्रह्मांड के, सुर भूपति के भूप।
पांडव यशेंदु चंद्रिका, बरनत दास स्वरूप।।३।।[…]

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पुस्तक विमोचन, उत्कृष्ट सेवा एव साहित्य सम्मान समारोह

श्री केसरीसिह बारहठ चारण सेवा संस्थान के तत्वावधान में 31 अगस्त 2017 को मिनी ऑडिटोरियम सूचना केन्द्र जोधपुर में कवि गिरधर दान रतनू “दासोड़ी” लिखित पुस्तक “ढऴगी रातां ! बहगी बातां !” तथा जनकवि श्री वृजलाल जी कविया द्वारा रचित पुस्तक “विजय विनोद” के विमोचन का भव्य आयोजन हुआ। मंच पर अध्यक्ष के रूप में तकनीकी वि.वि. कोटा के डीन डॉ हाकमदानजी चारण, मुख्य अतिथि उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति पुष्पेन्द्र सिंहजी भाटी, विशिष्ट अतिथि राजर्षि ठाकर नाहरसिंह जी जसोल, डिंगल़ के शिखर पुरुष श्रद्धेय डॉ शक्तिदानजी कविया, इतिहासज्ञ प्रो जहूर खां मेहर, डिंगल के दिग्गज कवि डूंगरदानजी आशिया, समालोचक व राजस्थानी के लोकप्रिय श्रेष्ठ कवि डॉ आईदानसिंह जी भाटी, लोकसाहित्य के मर्मज्ञ विद्वान डॉ सोहनदानजी चारण, राजस्थानी भाषा आंदोलन के पुरोधा लक्ष्मण दानजी कविया एवं डूंगर मा.वि.बीकानेर की राजस्थानी विभागाध्यक्ष डॉ प्रकाश अमरावत आसीन थे।[…]

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खोडियार माताजी री स्तुति – हेमुजी चारण

।।छंद – नाराच।।
प्रवाळ नंग धाम पें, बणे सु गोख छब्बियं।
जळे सु जोत है ऊधोत, कोटीरुप से कियं।
अरक्कजा सुधा अगे, चडे सिंदुर चाचरी।
नमो सगत्त नित, नृत्त खोडली रमे खरी।।1।।[…]

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आधशगति उमिया माताजी री स्तुति – कवि मुळदानजी तेजमालजी रोहडिया (जामथडा कच्छ)

।।छंद – सारसी।।
तुंही रुद्राणी, व्रहमाणी, विश्व जाणी, वज्जरा।
चाळळकनेची, तुं रवेची, डुँगरेची, छप्परा।
विशां भुजाळी, वक्र वाळी, त्रिशूळाळी त्रम्मया।
वेदां वदंती, सारसत्ती, आध शगति उमिया।।1[…]

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