🌺शब्दालंकार सवैया – ब्रह्मानंद स्वामी🌺

या मगरी मग री तगरी, नगरी न गरी सगरी बगरी हे;
वाट परी डगरी डगरी, खगरी खगरी कगरी अगरी हे;
सीस भरी गगरी पगरी, पगरी घुघरी उगरी भु गरी हे;
ब्रह्ममुनि द्रगरी दगरी, लगरी लगरी फगरी रगरी हे।।
में अटकी अटकी नटकी, चटकी चटकी मटकी फटकी हु;
घुंघटकी घटकी रटकी, लटकी लटकी तटकी कटकी हु;
ज्यों पटकी थटकी थटकी, खटकी खटकी हटकी हटकी हुं;
ब्रह्म लज्यो झटकी झटकी, वटकी वटकी जटकी जटकी हुं।।