श्री चाळकनेची रे रास रमण रा छप्पय – कवि कृपाराम जी खिडीया

।।छंद आर्या।।
मद मदिरा रस मत्ती, अत्ती आपाण अंक अहरती।
करत विलास सकत्ती, चाळराय मंढ चाळकना।।1।।

।।छप्पय।।
बन समाज अति विपुल, सदा रितुराज छ रित सुख।
लता गुल्म तरु तरल, माल मिलि मुखर सिलीमुख।
सुरभि धनष गव शशक, सूर चीता पंचाणण।
एण विविध मृग रवण, भवण भावण भिल्ली गण।
निश्वास निकुर निर्दलणियत, तै आधौ फर बेत तळ।
चाळ्ळकराय अदभूत रमै, थटि नाटक मनरंगथळ।।1।।[…]

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करणी माता रा त्रिभंगी छंद – कवि डुंगर दानजी आशिया (बाळाउ)

।।छंद – त्रिभंगी।।
जय जय जग जरणी भव भय हरणी खळ दळ दरणी खग धरणी।
भू जळ खेचरणी पय निझरणी शंकर घरणी चख अरणी।
सेवक कज सरणी किरपा करणी मात प्रसरणी भुज लंबा।
तारण भव तरणी वेदां वरणी जय जग जरणी जगदंबा।
जिय जय मां करणी जगदंबा।।1।।[…]

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सालगिरह शतक – महाकवि हिंगऴाजदान जी कविया

।।गीत – झमाऴ।।

[१]
करत निरंतर निकट कट, झंकारव अलि झुंड।
विधु ललाट बारण बदन, सिंदूरारूण सुंड।।
सिंदूरारूण सुंड, धजर बिख-धारणै।
हद उजवल रद हेक, बदन रै बारणै।।
कर-मोदक करनल्ल, जनम जस गाणनूं।
जग जाहर घण जाण, नमो गणराज नूं।।

भावार्थ: जिनकी कनपटी के पास लगातार भौंरों के झुंड झंकार की ध्वनि करते रहते हैं, जिनके ललाट पर चंद्रमा है, हाथी के मुंह वाले जिनकी सूंड सिंदुरी रंग की है। सूंड सांप के फ़न की भांति शोभायमान है, जिनका एक ही दांत, जो मुँह के द्‌वार पर है, बहुत उजवल हैं। जिनके हाथ में लड्‌डू है। उन जगत-विख्‌यात व बहुविज्ञ गणनायक गणेश जी को मैं करनीजी के जन्मोत्सव का यशगान करने के लिये नमस्कार करता हूँ।[…]

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जोगीदास भाटी की कटारी

…..इनके पुत्र जोगीदास भाटी बड़े वीर पुरुष हुए थे और महाराजा के बड़े विश्वस्त रहे थे तथा साहस में अपने पिता से भी बढकर हुऐ थे। वि.सं.१६६८ में बादशाह जहाँगीर की फौजे दक्षिण भारत की और कूच कर रही थी, जिसमें सभी रियासतों की सेनाएं भी शामिल थी। आगरा से दक्षिण में एक जगह पड़ाव में एक विचित्र घटना घटी। आमेर के राजा मानसिंह के एक उमराव का हाथी मदोन्मत हो गया और संयोग से जोगीदास भाटी का उधर से घोड़े पर बैठकर निकलना हो गया। उस मतगयंद ने आव देखा न ताव लपक कर जोगीदास को अपनी सूंड में लपेटकर घोड़े की पीठ से उठाकर नीचे पटका और अपने दो दांतों को जोगीदास की देह में पिरोकर उपर की तरफ उठा लिया।
“जोगीदास भाटी नें हाथी के दांतों में बिंधे और पिरोये हुये शरीर से भी अपनी कटारी को निकालकर तीन प्रहार कर उस मदांध हाथी का कुंभस्थल विदीर्ण कर डाला” […]

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हिंगळाज माताजी री स्तुति। – कवि रामचंद्र मोडरी (राणेसर)

।।छंद-रुपमुकुंद (रोमकंद)।।
करि कोप कंधाळम वीर वडाळम भूत कढाळम साव भले।
भयभीत भुजाळम रोख रढाळम झुझ बराळम खाग झले।
मिळिया मतवाळम पेट पेटाळम काळम पाळम पंथ कमे।
तरशूळ झले झळबोळ त्रिकाळिय रुप असेय हिंगोळ रमे।।1।।

हाडेतणी ताणम सैन सजाणम दैत जुआणम मेलि दळं।
रणि जंग मचाणम है जमराणम आग अवाणम मांय खळं।
खडि है खुरसाणम धज्ज धजाणम साहिकबाणम एणि समे।
तरसूळ झले झळबोळ त्रिकाळिय रुप असेय हिंगोळ रमे।।2।।[…]

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જેણે રામને ઋણી રાખ્યા – કવિ શ્રી દુલા ભાયા કાગ

જમદઢ જાંબુવાન અને નળ અંગદ સુગ્રીવ નર્યા
પણ હજુ લગ હનુમાન ઈતો કાયમ બેઠો ‘કાગડા’

જગતમાં એક જ જનમ્યો રે કે જેણે રામને ઋણી રાખ્યા

રામને ચોપડે થાપણ કેરા ભંડાર ભરીને રાખ્યા
ન કરી કદીએ ઉઘરાણી જેમ, સામા ચોપડા ન રાખ્યા
જગતમાં એક જ જનમ્યો રે કે જેણે રામને ઋણી રાખ્યા[…]

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श्री आवड़ माँ का गीत गग्घर निसांणी – श्री सालुजी कविया गांव बिराई

।।गग्घर निसांणी।।
आवड़ मढ अच्छं, विमल विरच्छं, मिल मंजर महकन्दा हैं।
तरवर शुभ सज्जं, फरहर धज्जं, दीपक थान दिपन्दा हैं।
प्रतमा गह पूरं, चड़त सिन्दुरं, सुचंगे पाटम्बर ओपन्दा हैं।
कुण्डळ करणालं, रूप रसालं, जगमग ज्योत जगन्दा हैं।।१।।

हिंगळ गलहारं, मणि मुक्तारं, कण माणक भळकन्दा हैं।
कंचन चुड़ालं, वीस भुजालं, खाग त्रिसूल खिवन्दा हैं।
खेतल मिल खेला, संग सचेला, प्याला मद पीवन्दा हैं।
खप्पर खल खाणं, पल रगताणं, जोगण दळ जीमन्दा हैं।।२।।[…]

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देवी अंबाजी की स्तुति – छंद त्रिभंगी – शंकर दानजी जेठी दानजी देथा(लींबडी)

।।छंद – त्रिभंगी।।
जय जगरायाजी, महामायाजी, शुचिकायाजी, छायाजी।
होवे शिशु पाजी, तउ क्षमाजी, कर तुं हाजी, हा हाजी।
प्रीति नित ताजी, नह इतराजी, वाह माताजी, वाह वाहजी।
रह राजी राजी, हमपर माजी, अजा ऊमाजी, अंबाजी।।1

धवळांबर धरणी, उजळ वरणी, शंकर घरणी, शं करणी।
निज जन निरझरणी, रक्षा करणी, अशरण शरणी, अघ हरणी।
वासी गिरिवरनी, शिव सहचरणी, हिम भूधरनी दुहिताजी।
रह राजी राजी, हमपर माजी, अजा ऊमाजी, अंबाजी।।2।।[…]

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यू ट्यूब चेनल

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जोगण चाळकनेच जयो – महादान महडू

।।छन्द – रूप मुकून्द।।
शुभभाळक देव संभाळक सेवक झाळ बंबाळक रोख झड़े।
विकराळक सिंह चढे बिरदाळक खेतरवाळक अग्र खड़े।
चख नख सरूप रचे चिरताळक दानव गाळक शंभु दयो।
प्रतपाळक बाळक रोग प्रजाळक जोगण चाळकनेच जयो।।१।।

रणताळक झाळ शत्रां सिर राळक के महिपाळक सेव करे।
चमराळक शीश ढुळाळक चौसठ तेज ऊजाळक भांण तरे।
अकड़ाळक थाट लग ओपत थाट थड़ांलग जांण थयो।
प्रतपाळक बाळक रोग प्रजाळक जोगण चाळकनेच जयो।।२।।[…]

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