श्री चाळकनेची रे रास रमण रा छप्पय – कवि कृपाराम जी खिडीया

।।छंद आर्या।।
मद मदिरा रस मत्ती, अत्ती आपाण अंक अहरती।
करत विलास सकत्ती, चाळराय मंढ चाळकना।।1।।
।।छप्पय।।
बन समाज अति विपुल, सदा रितुराज छ रित सुख।
लता गुल्म तरु तरल, माल मिलि मुखर सिलीमुख।
सुरभि धनष गव शशक, सूर चीता पंचाणण।
एण विविध मृग रवण, भवण भावण भिल्ली गण।
निश्वास निकुर निर्दलणियत, तै आधौ फर बेत तळ।
चाळ्ळकराय अदभूत रमै, थटि नाटक मनरंगथळ।।1।।[…]