आई शैणलमां रो गीत – कवि नाथूराम लाळस

आई शैणल जुडियै थह उभी, खाग भुजां बऴ खंडी।
प्रगळ हुवै नव नैवज पूजा, चाचर भूचर चंडी॥1॥

खप्पर भरै सत्रां पळ खाचण, हाथ त्रशूळ हलावै।
सेवग साद सुणंता शयणी, उपर करवा आवै॥2॥

विखमा डमरु डाक वजंती, वाघ चढी वेदाई।
दोखी दु:ख पावै जिण दीठां, सुख पावै सरणाई॥3॥[…]

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कवि का विलक्षण व लाजवाब उत्तर !

एक बार श्रीमान हिंगऴाजदान जी कविया सेवापुरा को एक सजातिय चारण सरदार ने काव्यात्मक रूप से निम्न स्तर की रचना भेज दी जो कि शोभायमान नहीं थी, उसमें भेजने वाले कवि महोदय का दम्भ अभिमान व अनुशासनहीनता परिलक्षित प्रकट हो रही थी। उसे पहली बार देख कर।

क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात

के अपने उच्च सिध्दान्त को निर्वहन करते हुए कविया साहब ने क्षमा कर दिया। भेजने वाले कवि ने अपनी मनोदशा में इसे हिंगऴाजदान को डरा हुआ मान लिया व अपने स्वभावगत दूसरी बार फिर निम्नस्तर कविता महाकवि को इंगित करते हुए भेज दी। हिंगऴाजदान जी ने उत्तर देना आवश्यक मान कर उसे जो उत्तर लिख कर भेजा वह आप को लिखकर मैं प्रैषित कर रहा हूँ।

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મોજમાં રેવું – તખ્તદાન રોહડિયા ‘દાન અલગારી’ (ઉદયન ઠક્કર દ્વારા કવિતા નો આસ્વાદ)

મોજમાં રેવું, મોજમાં રેવું, મોજમાં રેવું રે…
અગમ અગોચર અલખધણીની ખોજમાં રેવું રે… મોજમાં રેવું…

કાળમીંઢ પાણાના કાળજાં ચીરીને કૂંપળું ફૂટે રે,
આભ ધરા બીચ રમત્યું હાલે, ખેલ ના ખૂટે રે,
આ લહેર આવે લખલાખ રત્નાકરની લૂંટતા રેવું રે… મોજમાં રેવું

કાળ કરે કામ કાળનું એમાં કાંઈ ન હાલે રે,
મરવું જાણે મરજીવા ઇ તો રમતા તાલે રે,
એનો અંત આદિ નવ જાણ્ય તારે તો તરતા રેવું રે… મોજમાં રેવું

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करणी मां रो आवाहण गीत – जंवाहरजी किनिया सुवाप

किनी किम जेज इती किनीयांणी,धणियांणी नंह और धणी।
खाती आव रमंती खेला,वेळा अबखी आण बणी॥1॥
अवलंब नहिं आप विण अंबा,जगदंबा किणनै कहुं जाय।
म्हारै जोर आपरो मोटो,धाबळवाळ सुणें झट धाय॥2॥
सात दीप हिंगळाज शगत्ति,मनरंगथळ धिन माता।
सांभळ अरज कहै इम सुकवि, खेड पधारो खाता॥3॥[…]

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पद्मश्री डा. सीताराम लालस

पद्म श्री डा. सीताराम जी लालस (सीताराम जी माड़साब के नाम से जनप्रिय) राजस्थानी भाषा के भाषाविद एवं कोशकार थे। आपने ४० वर्षों की अथक साधना के उपरान्त “राजस्थानी शब्दकोष” एवं “राजस्थानी हिंदी वृहद कोष” का निर्माण किया। यह विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोष है जिसमे 2 लाख से अधिक शब्द, १५ हज़ार मुहावरें/कहावतें, हज़ारों दोहे तथा अनेकों विषय जैसे कृषि, ज्योतिष, वैदिक धर्म, दर्शन, शकुन शास्त्र, खगोल, भूगोल, प्राणी शास्त्र, शालिहोत्र, पशु चिकित्सा, संगीत, साहित्य, भवन, चित्र, मूर्तिकला, त्यौहार, सम्प्रदाय, जाति, रीत/रिवाज, स्थान और राजस्थान के बारे में जानकारी एवं राजस्थानी की सभी उप भाषाओं व बोलियों के शब्दों का विस्तार पूर्वक एवं वैज्ञानिक व्याकर्णिक विवेचन है। इस अभूतपूर्व कार्य के लिए स.१९७७ में भारत सरकार ने आपको पद्मश्री से सम्मानित किया। जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर ने आपको मानद पी.एच.डी. (डाक्टर ऑफ़ लिटरेचर) की उपाधि प्रदान की।
जोधपुर दरबार मानसिंह जी का जालोर के घेरे में जिन १७ चारणों ने साथ दिया था उनमे से एक थे नवल जी लालस जिनको सांसण में नेरवा गाँव मिला था।[…]

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आशापुरा देवी महिमा – ईशरदास जी

।।छंद भुजंगी।।
नमो ओम रूपा नमो ईष्ट यंत्रा।
नमो मेदनी थाट साकार मंत्रा।।
नमो योग विद्या धरेणं अथागा।
भवा रूप भुवनेश्वरी चंद्रभागा।।

श्री यंत्रा श्री यंत्रा श्री यंत्रा श्री यंत्रा।
जपो जोग जोगी तणी रूप जंत्रा।।
नमो रिंह हिृमा किल्मस रागा।
भवा रूप भुवनेश्वरी चंद्रभागा।।[…]

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चारणों वीरों की यादें!

चारणों ने राजपूतों के साथ अनेकानेक ऐतिहासिक युध्दों में भाग लिया है, सन 1311 में सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने जालौर के राजा कान्हड़दे सोनगरा पर आक्रमण किया तब उसके उसके सेनापति सहजपाल गाडण ने असाधारण शौर्यप्रदर्शन कर वीरगति पाई थी।
महाराणा हम्मीर के साथ चारण बारुजी सौदा 500 घोड़े लेकर अल्लाउद्दीन खिलजी से लड़े थे और खिलजी के मरने के पश्चात हम्मीर को चित्तौड़ की गद्दी पर बैठाने में सफलता पाई थी।
प्रसिध्द हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप के साथ सेना में रामाजी सांदू व सौदा बारहठ जैसाजी व कैसाजी भी लड़े थे व तीनों ने अदभूद वीरता दिखाकर वीरों के मार्ग गमन किया था।
सन 1573 में अकबर द्वारा गुजरात आक्रमण के समय वीरवर हापाजी चारण मुगल सेना में तैनात थे।

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वह समय-वे भक्त-वह बातें

ई. सन 1895-1900 के बीच बीकानेर से मेड़ता के बीच रेलवे लाईन को व्यापार तथा आवागमन के लिए खोल दिया गया था, जनता को सुविधा हो गई थी, उस समय रियासतों के खर्चे पर ही रेलवे बनती थी, महाराजा का कहा ही आदेश बनता था। राजे-महाराजे जनता का दुख-दर्द भी यथा संभव दूर करने की कोशिष करते थे, उक्त रेलकी लाईन बिछाने में गंगासिंह जी की महत्ती भूमिका थी।
रेल का जब सुचारू संचालन होने लग गया तो माँ करनी जी के भक्तगण यात्रियों को सूदूर प्रान्तों से आवागमन की सुविधा मिल गई तथा आना-जाना आसान हो गया, परन्तु रेलवे की स्टेशन देशनोक से पूर्व दिशा में तीन कोस दूरी पर गीगासर नामक गांव में बनाई गई थी। जहां से यात्रियों को पैदल या ऊँट पर सवार होकर माँ के मढ में जाना पड़ता था, सर्दी गर्मी वर्षा के दिनों में सुनसान स्टेशन पर रात्रि को रूकना भी परेशानी वाला काम था।[…]

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श्री जगदंबा मानसर तट रास विलास – कवि देवीदानजी (बाबिया कच्छ)

सेंग माताजीयां रा भेळा हुय रास रमण रा छंद।

।।दूहो।।
एक समै जगमात जय, उर अति धरे उमंग।
निरत करत तट मानसर, राजत पट नवरंग।।1।।
।।छंद – रेणंकी।।
राजत पट सधर नीलंबर अंबर, धर नवसत शिणगार धरे।
फरर पर थंभ धजा वर फरकत, झरर झरर प्रतिबिंब झरे।
लळ लळ उर हार गुलाब ज लळकत, सिर पर गजरा कुसुम सजै।
परघट धर सधर मानसर उपर, सकत सकळ मिळ रास सजैं।।1।।[…]

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ग़ज़ल – जब जब मौसम – राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

जब जब मौसम में तब्दीली होती है।
सुबह सुरीली शाम नशीली होती है।।
मंजिल से बाबस्ता होती जो राहें।
वो राहें अक्सर पथरीली होती हैं।।
जब जब मेरी दांयीं आंख फड़कती है।
मां की आंखें तब तब गीली होती है।।[…]

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