सूर्यमल्ल मीसण: व्यक्तित्व एवं कृतित्व

१८५७ की आजादी की क्रांति के समय के बूंदी के महाकवि सूर्यमल्ल मीसण के जयन्ती सप्ताह के उपलक्ष्य में दिनांक २३-२४ अक्टूबर को कोटा-राजस्थान में साहित्य अकादमी नई दिल्ली की और से दो दिवसीय संगोष्टी आयोजित की गयी। इसमें कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, चितौड़गढ़, उदयपुर, बीकानेर, जोधपुर सहित अन्य जिलों के ५० से अधिक वरिष्ठ साहित्यकार शामिल हुए।

उदघाटन सत्र में मुख्य अतिथि रहे पद्मश्री डा. चन्द्र प्रकाश देवल ने महाकवि के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान समय में प्रजातंत्र होते हुए भी सत्ता पक्ष के खिलाफ बोलने में कवियों, साहित्यकारों को पांच बार सोचना पड़ता है लेकिन सूर्यमल्ल मिश्रण ने रियासतकाल में भी छत्र राज करने वाले हाडा वंश के राजाओं के विरोध में लिखने में कोई कसर नहीं छोडी। उन्होंने ५३ वर्ष में वंश भास्कर[…]

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राजल माताजी चराडवा वाळी री स्तुति – कवि जीवणदानजी डोसाभाइ झीबा (धांगध्रा)

॥छंद नाराच॥
मंदोर मस्त जोरका भरेल दैत मारणी।
प्रचंड दुष्ट झुंड पै त्रिशूल की प्रहारणी।
जिन्नात भूत प्रेत को हराणहार जोपियं
अखंड जोत रुप आई राजबाई ओपियं॥1॥

पहेलवान म्लेच्छ मार वार रूधिरं पिये।
करोर ब्रहम राखसां विलोकतां डरे हिये।
दहीत दास के तमाम नाश सब्ब है कियं।
अखंड जोत रुप आई राजबाई ओपियं॥2॥[…]

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परिचय: राजकवि खेतदान दोलाजी मीसण – प्रेषित: आवड़दान ऊमदान मीसण

चारण समाज में ऐसे कई नामी अनामी कवि, साहित्यकार तथा विभिन्न कलाओं के पारंगत महापुरुष हुए हैं जो अपने अथक परिश्रम और लगन के कारण विधा के पारंगत हुए लेकिन विपरीत संजोगो से उनके साहित्य और कला का प्रसार न हो पाने के कारण उन्हें जनमानस में उनकी काबिलियत के अनुरूप स्थान नहीं मिल पाया। अगर उनकी काव्य कला को समाज में पहुचने का संयोग बेठता तो वे आज काफी लोकप्रिय होते।

उनमे से एक खेतदान दोलाजी मीसण एक धुरंधर काव्य सृजक एवं विद्वान हो गए है।[…]

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कविराज गणेशपुरीजी रो एक रोचक प्रसंग – ठा. नाहर सिंह जसोल

गणेशपुरीजी राेहड़िया पातावत शाखा रा चारण हा। गांव चारणावास। मारवाड़ मैं बळूंदा ठिकाना रा पोलपात। पैहलौ नाम गुलाबदान। पछै राम स्नेही वे गया। सूरजमलजी मीसण रा शिष्य। पछै नांम गोस्वामी गणेशपुरी राख्यो।

महाराणा सज्जनसिंहजी मेवाड़ विद्वान अर विद्वानों रा पारखू। वांरै दरबार में केतांन विद्वान, जिण में गणेश पुरी जी एक।

दयानंद, गणेश पुरी स्वामी, उभय सुजान,
लई संगत इनकी, भयौ सज्जन, सज्जन रांण।।
बख्तावर राव पुनी, ग्याता रस सिगार,
इनकी कविता माधुर्य, लई सकै को पार।।
मोडसिंह महियारियाै अरु आ सिया जवान,
इन आदिक मेवाड़ मनो, हुति कवियन की खान।।

राज दरबार लगा हुआ है। महाराणा सिंहासन पर बिराजमान है। कविसर अपने अपने आसन पर बिराजमान हैं। बहुत ही गंभीर समस्या के समाधान हेतु विचार हाे रहा है। समस्या है, महाभारत के पात्रों में श्रेष्ठ कौन ?[…]

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1857 का स्वातंत्र्य संग्रामऔर चारण साहित्य-डॉ. अंबादान रोहड़िया

भारत पर विदेशियों के आक्रमण की परंपरा सुदीर्घ नज़र आती है। अनेक विदेशी प्रजा यहाँ भारतीय प्रजा को परेशान करती रही है। इनमें ब्रितानियों ने समग्र भारतीय प्रजा और शासकों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था। भारतीय प्रजा को जब अपनी ग़ुलामी का अहसास हुआ तो उन्होंने यथाशक्ति, यथामति विदेशी हुकूमत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। इस आंदोलन की शुरुआत थी 1857 का प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम। 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम के प्रभावी संघर्षों तथा उनकी विफलता के कारणों के बारे में विपुल मात्रा मे ऐतिहासिक ग्रंथ लिखे जा चुके हैं। किंतु फिर भी, बहुत सी जानकारी, घटनाएँ, प्रसंग या व्यक्तियों के संदर्भ में ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। 1857 के संग्राम विषयक इतिहास की अप्रस्तुत कड़ियों को श्रृंखलाबद्ध करने हेतु इतिहास, साहित्य और परंपरा का ज्ञान तथा संशोधन की आवश्यकता है। इसके द्वारा ही सत्य के क़रीब पहुँचा जा सकता है। यहाँ 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम में सहभागी चारण कवि कानदास महेडु की रचनाओं को प्रस्तुत करने का एक विनम्र प्रयास है।[…]

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कविराज श्री खूमदानजी बारहठ

भारतवर्ष की चारण काव्य महापुरुष परम्परा में कविराज श्री खूमदानजी बारहठ का नाम विशेष सम्मान और गौरव का प्रतीक है। कविराज श्री खूमदानजी बारहठ का जन्म पाकिस्तान के चारणवास ग्राम भीमवेरी, तहसील-नगरपारकर, जिला-थरपारकर, सिंध प्रदेश में दिनांक 08 फरवरी 1911, विक्रम संवत 1968 माघ शुक्ल द्वादशी, शुक्रवार को श्री लांगीदानजी बारहठ ( पुनसी बारहठ, मूल निवासी भादरेस, बाड़मेर) के घर हुआ था।

कविराज जन्म से ही प्रतिभा संपन्न बालक थे। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा तत्कालीन विख्यात संत श्री संतोषनाथजी के श्रीचरणों में सम्पूर्ण हुई थी। गुरु श्रीचरणों में आपको गुजराती, हिंदी एवं सिंधी भाषाओँ का ज्ञान प्राप्त हुआ। आपने अल्पायु में रामायण, गीता, महाभारत, चारों वेद, रघुनाथ रूपक, सत्यार्थ प्रकाश, रूपद्वीप पिंगल आदि प्रमुख धर्म ग्रंथो का विधिवत अध्ययन कर लिया था। गुरु अनुकम्पा एवं शाश्त्रों के गहन अध्ययन से आपके विचारों में परिपक्वता बढ़ी और आप काव्य रचना की और अग्रसर हुए।[…]

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नदी रुपाळी नखराळी – कवि दादूदान प्रतापदान मीसण

।।छंद – त्रिभंगी।।
डुंगर सूं दडती, घाट उतरती, पडती पडती, आखडती।
आवै उछळती, जरा नि डरती, हरती फिरती, मद झरती।
किलकारां करती, डगलां भरती, जाय गरजती जोराळी।
हिरण हलकाळी, जोबन वाळी, नदी, रुपाळी, नखराळी।।1।।

आंकडियां वाळी, वेल घटाळी, वेलडियाळी, वृखवाळी।
अवळां आंटाळी, जांमी झाळी, भेखडियाळी, भे वाळी।
तिणने दे ताळी, जातां भाळी, लाखणियाळी लटकाळी।
हिरण हलकाळी, जोबन वाळी, नदी, रुपाळी, नखराळी।।2।।[…]

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माँ श्री आवड़जी रा छन्द – कवि मेहाजी

।।छन्द-नाराच।।
अम्बा ईच्छा अलख की झलक दुख झाळणे।
मांमट देव के ऊभट प्रेह प्रगटी पाळणे।
सप्त बैन सुख चैन भैरू लेन भावड़ा।
भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!१!!

तुंही भगत तारणी ऊबारणीलसुरां असी।
जणीह मात चारणी जगत में तेरे जसी।
सकत को संसार करत नाकड़ा नमावड़ा।
भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!२!![…]

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मोगल माताजी रा नाराच छंद – कवि खेंगार जी कविराज पाटडी

॥छंद-नाराच॥
हिये उदार, मुक्त हार, हेमतार हिंडले।
लगी कतार वीर लार झुल सार झुमले।
वैताल ताल वीर हाक डाक घोर दीपणी।
सरां सरे अतोल सांच मोगलाँ शिरोमणि॥1
बल्लाळ, बुट, बेचरा, चांपल्ल डुँगरेचीयं।
अंबाय, आवडं, सांसाई, राजलं रवेचीयं।
हिंगोळ सातदीप हूंत भद्रकाळि भामणि
सरां सरे अतोल सांच मोगलाँ शिरोमणि॥2[…]

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आवडजी महाराज रा नाराच छंद – मानदानजी कविया दीपपुरा, सीकर

॥छंद नाराच॥
बिमाण बैठ सात भाण आसमांण उत्तरी।
धिनो अछी छछी ज होल गैल लूंग लंगरी।
सुधाम धाम मांमडा जु धीव तूं कहावडा।
नमो ज मात बीस हाथ पात पाळ आवडा॥1॥

कलू असाधि की उपाधि व्याधि भोम पै छई।
सरूप हिंगळाज रो अनूप आवडा भई।
अखंड मंड तेमडै प्रचंड छत्र छाबडा।
नमो ज मात बीस हाथ पात पाळ आवडा॥2॥[…]

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