गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-बारहवौ अध्याय

बारहवौ अध्याय – भक्तियोगः ।।श्लोक।। एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते। ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा:।।१।। ।।चौपाई।। एक सगुण रा भजन ज गावै दूजो निराकार इज चावै। यां दोनां में सिरै बतावौ किसौ रूप हरि आ समझावौ।।१।। ।।भावार्थ।। अर्जुन कैवै-हे परमेश्वर! जकौ अणूता प्रेमी भगत है वै पैली रा विधि विधान सूं लगोलग आपरा ध्यान में मगन होय’ र आपरै सगुण रूप(साकार रूप) हरि नै अर दूजा जकौ फगत अविनाशी निराकरण ब्रह्म नै इज सिरै भाव सूं पूजै है। वां दोनां तरह रा पूजण वाळां में कुण सो सिरै है आप कृपा कर ‘र म्हनै बताओ। ।।श्लोक।। मय्यावेश्य मनो ये मां […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-तेरहवौ अध्याय

तेरहवौ अध्याय – क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगः ।।श्लोक।। इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते। एतद्यो वेत्ति तं प्रा‌हु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद:।।१।। ।।चौपाई।। पार्थ देह गिण खेत तिहारौ आतम जिण में है उजियारौ। तत्व ग्यान जाणै औ ध्यानी जिण सूं ई वाजै औ ग्यानी।।१।। ।।भावार्थ।। भगवान् श्रीकृष्ण कैवै-हे अर्जुन! औ शरीर क्षेत्र (खेत) नाम सूं जाणी जै है, इण नै जाणणियौ क्षेत्रग्य (जीवात्मा) वाजै है अर क्षेत्रग्य रा तत्व नै पिछाणणिया ग्यानी आ कैवै है। ।।श्लोक।। क्षेत्रज्ञं चांपि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत। क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तञ्ज्ञानं मतं मम।।२।। ।।चौपाई।। म्हैं सगळा डीलां में रैऊं जीवात्मा उण री म्हैं व्हैऊं। औ इ जीव जीवात्मा वाजै विद्या बण नै इण […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-चवदवौ अध्याय

चवदवौ अध्याय – गुणत्रयविभागयोगः ।।श्लोक।। परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्। यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां सिद्धिमितो गता:।।१।। ।।चौपाई।। कहूं ग्यान पाछौ उण भावै सिरै ग्यान जो परम कहावै। जिण सूं मुनि रै मुगती आणी परम सिद्धि इण विध मिल जाणी।।१।। ।।भावार्थ।। भगवान् श्रीकृष्ण कैवै-हे अर्जुन! ग्यान में ई सिरै (अति उत्तम)ग्यान नै म्हैं पाछौ कैऊं ला जिण नै जाण’ र सगऴा मुनि जन इण संसार सूं मुगत होय’र परम सिद्धि पाय ली है। ।।श्लोक।। इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागता:। सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च।।२।। ।।चौपाई।। इसौ ग्यान पाया नीं आया सृष्टि मांय पाछा सुण भाया। परळै में व्याकुल नीं जोयौ जो […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-पन्द्रहवौ अध्याय

पन्द्रहवौ अध्याय – पुरुषोत्तमयोगः ।।श्लोक।। उर्ध्वमूलमध:शाखमश्चत्थं प्राहुरव्ययम्। छन्दां यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।१।। ।।चौपाई।। ऊपर मूळ ज ईश्वर वाजै ब्रह्मा पीपळ शाख विराजै। जग में ए अविनाशी जाणौ वेद पानड़ा इण रा मानौ।।१।। ।।भावार्थ।। भगवान् श्रीकृष्ण कैवै-हे अर्जुन! आदि पुरुष ऊपर कानी मूळ वाळा नीचे कानी शाखा वाळा ब्रह्मा जी संसार रूपी जिण वृक्ष(पीपळ) नै प्रवाह रूप सूं अव्यय कैवै है अर वेद जिण रा पत्ता है उण संसार रूपी वृक्ष नै जकौ जाणै वौ सगळा वेदां नै जाणण वाळौ है। ।।श्लोक।। अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवाला:। अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।२।। ।।चौपाई।। पीपळ री गुण कूंपळ शाखा नीचै ऊपर […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-सोळहवौ अध्याय

सोळहवौ अध्याय – दैवासुरसम्पद्विभागयोगः ।।श्लोक।। अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति:। दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।१।। ।।चौपाई।। निडर होय अंतस सुध सागै थित हुय ग्यान ध्यान में लागै। सत्व दान, मन वश, यज सै’वै तन मन वयण शुद्ध हुय बै’वै। १।। ।।भावार्थ।। भगवान् कह्यौ-निडर होय’र अंतस सूं शुद्ध व्हैय, तत्व ग्यान खातर ध्यान योग में लगोलग दृढ़ स्थिति होय अर सात्त्विक दान, इन्द्रियाँ रौ दमन, भगवान्, देवतावां रौ हवन कर ‘ र उत्तम कर्मों रौ आचरण, वेदां रौ पढणौ भगवान् रा नाम अर गुरुवां रौ भजन करणौ कर्त्तव्य पालण खातर कष्ट सहन करणौ सागै इन्द्रियाँ अर अंतस री सरलता।। ।।श्लोक।। अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्याग: शान्तिरपैशुनम्। दया […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-सत्तरहवौ अध्याय

सत्तरहवौ अध्याय – श्रद्धात्रयविभागयोगः ।।श्लोक।। ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विता:। तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तम:।। ।।चौपाई।। कृष्ण! शास्त्र विधि जो नर त्यागै श्रद्धा सूं प्रभु पूजण लागै। वां री गत कुण सी व्है कैवौ? सप्त रज तम ई थै कैवौ।।१।। ।।भावार्थ।। अर्जुन कैवै-हे कृष्ण! जकौ मिनख शास्त्र विधि नै त्याग ‘र श्रद्धा सूं देवतावां आदि नै पूजै वां री निष्ठा पछै कुण सी व्है सात्त्विक या राजसि कै तामस व्है है। ।।श्लोक।। त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा। सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु।।२।। ।।चौपाई।। कुदरत जणै तीन श्रद्धावां सात्विक राजस तामस पावां। सुण अर्जुन कहुँ म्हैं विस्तारा […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-अठारहवौ अध्याय

अठारहवौ अध्याय – मोक्षसंन्यासयोगः ।।श्लोक।। सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्। त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।।१।। ।।चौपाई।। हे ताकतवर! अन्तर्यामी! विघन हरण करवाळा स्वामी। न्यारा न्यारा तत्व गिणाऔ मम सन्यास’र त्याग बताओ।।१।। ।।भावार्थ।। अर्जुन कैवै हे महाबाहौ!(ताकतवर, सामर्थ्य वान), हे अन्तर्यामी!, हे!विघन नै दूर करण वाळा वासु देव म्हैं सन्यास अर त्याग रा न्यारा न्यारा तत्व जाणणी चाहूं हूँ। ।।श्लोक।। काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्न्यासं कवयो विंदु:। सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणा:।।२।। ।।चौपाई।। काम्य कर्म रु त्याग व्है रासा गिणै गुणी इण ने सन्यासा। सर्व कर्म फल तज गिण त्यागा केइ विद्व इण मत रा लागा।।२।। ।।भावार्थ।। भगवान् श्रीकृष्ण कैवै-कितरा ई पण्डित जन तौ काम्य कर्मां […]

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श्री डूंगरेचियां रौ छंद – मेहाजी वीठू

।।छंद सारसी।।
रम्मवा रंगूं ऊभ अंगूं, वेस चंगूं वेवरं।
चूड़ा भळक्कूं चीर ढक्कूं, पै खळक्कूं नेवरं।
संभाय सारं चूड़ भारं, हेम झारं क्रंमये।
साते समांणी आप भांणी, माड़रांणी रम्मये।।1।।[…]

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Bhagwati Shri Karniji Maharaj – A Biography – Part-3

Chapter VII – Mahaprayan and Some Important Lifetime Miracles Shri Karniji devoted Her long pious life to the cause of righteousness and the establishment of Bharat dharma. Devotees in difficulty received help, warriors received sound advice and blessings and the general public enjoyed a peaceful life. Impressed by Her pious life, Her divine powers, and Her success in strengthening Hinduism and its defenses, numerous devotees, from mighty warriors like the Rathore and Bhati chiefs on the one hand to common householders like Ananda carpenter and Dashrath Meghwal on the other, paid homage to Her. She could have but did not utilize […]

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Bhagwati Shri Karniji Maharaj – A Biography – Part-2

Chapter IV – Deshnok-Rao Ridmal and Mandore Development of Deshnok and improvement of the surrounding pastures now engaged Her attention. The surrounding jungle mainly consisted of old Jal trees not very palatable to the cattle. Most trees were on the way to rapid decay because of age. Residents of the new fast-growing village used wood as fuel. Very often healthy branches and trees were damaged by women and children gathering fuel. The depletion of the forest had begun, and little imagination was needed for visualizing its fate. Apprehensive that the pasture, as also the forest, would become prey to human […]

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