आज जितरो भौतिक विकास हुयो है उतरी ईज मानसिक द्ररिद्रता बधी है। मिनखपणो, नैतिकता, संवेदनावां, अर जीवणमूल्यां रो पोखाल़ो इण लारलै वरसां में जिण तेजी सूं निकल़ियो है उणसूं इण दिनां आंरी दुहाई देवणियो अजै तो फखत गैलसफो ईज बाजै, बाकी आ ई गति रैयी तो लागै कै आवण वाल़ै दिनां में आंरो नाम लेवणियो बचणो ई मुश्किल है।
एक उवो ई बखत है जद चीकणी रोटी जरूर जीमता पण चीकणी बात करण सूं चिड़ता। आपरै साथै रैवणिये या आस-पड़ौस माथै आफत आयां उणरै साथै हरोल़ में रैता अर मदत कर’र परम सुख मानता। क्यूंकै उण काल़खंड रा मिनख वाच -काछ निकलंक हुवता। आपरै गांम कै पडौसी माथै आफत आयां पछै पाछ पगलिया नीं सिरकता बल्कि आगमना हुय आपरो माथो देवण में गुमेज मानता। जद ऐड़ै मिनखां री ऐड़ी बातां पढां कै सुणां तो इयां लागै कै उवै मिनख जावता उवै बातां अर बखत आपरै साथै लेयग्या-
वल़ता लेग्या वांकजी, सदविद्या गुण संग।
ऐड़ी ई गीरबैजोग एक बात है मोरझर रै सुरताणिया पताजी वैरावत अर अकरी रै रतनू भोजराज खेंगारोत री।[…]
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