चारणां रो रगत पचैला नीं!

कच्छ धरा में एक गांम है मोरझर। मोरझर जूनो सांसण। अठै सुरताणिया चारण रैवै।
ऐ सुरताणिया पैला पाधरड़ी गांम में रैवता। किणी बात माथै उठै रै ठाकुर राजाजी वाघेला सूं अणबण हुयगी अर ऐ आपरो माल-मवेशी लेय गांम सूं निकल़ग्या। मोरझर पासै आया तो इणां नै आ धरा आपरै बसणजोग लागी। घणो झूंसरो, प्रघल़ो पाणी। लीला लेर अर घेर घुमेर रूंखां री जाडी छाया देख इणां आपरो नेस अठै थापियो।
इण सुरताणिया परिवार रा मुख्या जगोजी हा। वै बोलता पुरस, डील रा डारण अर दीखत रा डकरेल हा। मोरझर री धरा लाखाड़ी री सीमा में पड़ती सो जगाजी रो ऐड़ो व्यक्तित्व देख’र उठै रा ठाकुर देवाजी इणां नै सदैव रै सारू इनायत करदी। जगाजी रै साथै ई इणां रा मोटा भाई भाखरसी ई रैता। इणी भाखरसी रै एक बेटे रो नाम हो महकरणजी।
महकरणजी रो ब्याव वावड़ी गांम रा झीबा खोड़ीदान री बेटी वानूं रै साथै हुयो।[…]
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