महाराणा प्रताप नै

।।महाराणा प्रताप नै।।

।।छप्पय।।

मिहिर ऊग मा’राण, तिमिर दल़ अकबर तोड़्यो।
करां झाल किरपांण, माण मानै रो मोड़यो।
वन जमियो वनराव, भाव आजादी भूखो।
नह डिगियो नख हेक, लियो पण भोजन लूखो।
साहस रो रूप भूपां सिरै, मुगट मेवाड़ी मोहणो।
कीरती कल़श चढियो कल़ू, स्वाभिमान भड़ सोहणो।।1[…]

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अजै कांई रोटियां होवै!!

रावल़ मूल़राज अर रतनसी रै साको करियां पछै जैसल़मेर रो गढ घणा दिन सोग में डूब्योड़ो सूनो पड़ियो रह्यो।

जैसल़मेर जैड़ो गढ अर सूनो!! आ बात जद महेवै रै कुंवर जगमालजी मालावत नै ठाह पड़ी तो उणां आपरा आदमी अर सीधै रा सराजाम लेय जैसल़मेर कानी जावण रो मतो कियो।

उण दिनां काल़ काढण नै सिरूवै रा रतनू चंद्रभांणजी ई महेवै रैता, ऐड़ी सल़वल़ सुणी तो चंद्रभांणजी आपरै दादै आसरावजी नै समाचार कराया कै राठौड़ जैसल़मेर रो गढ दाबणो चावै!![…]

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साच माग लीजिए

परे रहेंगे मकान व दुकान सारी यहां,
सावधानी मनमानी काम नहीं आएगी।
कारखाने व खजाने जड़े ही रहेंगे मीत,
माया संची जो तो तेरे अर्थ कछु नाएगी।
खड़े ही रहेंगे अश्व रथ गज शाला बीच,
आ काया भाई उभै बांसन में समाएगी।
अच्छे काम किए है तो बात एक सत्य मनो,
कछु ना रहेगो गीध याद रह जाएगी!!

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सिद्ध मिलियो सादूऴ रो

ऊदावतां रो नीमाज ठिकाणो चावो। कनै ई पांच-सात कोस माथै कांवऴिया खिड़ियां रो गांम। उठै रा खिड़िया रुघनाथजी सादूऴजी रा मौजीज अर मोतबर मिनख। साहित्य अर संगीत रा प्रेमी तो कऴाकारां रा कद्रदान। कांवऴिया आपरी दातारगी अर उदारता रै पाण चावी रैयी है-

के के अदवा ऊबरै, छिप छिप छांवऴियाह।
आज व्रण में ऊजऴी, कीरत कांवऴियाह।।

इण नीमाज ठिकाणै रा ढोली नरो अर बहादरो गायबी में प्रवीण तो साथै ई ठिकाणै री धणियाप रै कारण करड़ाण ई राखता सो बीजै जोगतै मिनखां नै शुभराज कम ई करता।[…]

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हमारे गौरवशाली साहित्य से युवा पीढ़ी परिचित हो

यदाकदा खर दिमागी लोगों को चारण साहित्य या यों कहिए कि चारण जाति की आलोचना करते हुए सुनतें या पढ़तें हैं तो मन उद्वेलित या व्यथित नहीं होता क्योंकि यह उनका ज्ञान नहीं अपितु उनकी कुंठाग्रस्त मानसिकता का प्रकटीकरण है। अगर कोई आदमी अवसादग्रस्त है या कुंठाग्रस्त है तो स्वाभाविक है कि उसकी अभिव्यक्ति गरिमामय नहीं होगी। यानि खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे या यों कहिए कि कुम्हार, कुम्हारी को नहीं पहुंच सके तो गधे के कान ऐंठता है।[…]

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म्हारो कोई कागज आयो?

मैं उन दिनों ग्यारहवीं का विद्यार्थी था जब मुझे आत्मीजनों से पत्र द्वारा संवाद करने का शौक जागृत हुआ। मैं सींथल पढ़ा करता था, वहां मेरा ननिहाल था। यह बात 1989 की है। जब जस्सुसर गेट स्थित बिनाणी भवन में अकादमी का विशाल साहित्यकार सम्मेलन हुआ था। मैं ग्यारहवीं का विद्यार्थी था ऐसे में मेरी उसमें प्रतिभागिता की कोई संभावना ही नहीं थी। लेकिन महापुरूषों ने कहा है कि जहां चाह वहां राह। मैं भी सींथल से बीकानेर आ गया और छात्रावास के कुछ मित्रों के साथ सांयकाल नियत स्थान पर पहुंच गया। हालांकि गांगी कोई गीतों में नहीं थी फिर भी कवि होने का भ्रम तो था ही अतः हुंसरड़पणै से श्रोताओं में सबसे आगे बैठ गया।[…]

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कांई आपां जमीर बेच चूका?

कांई आपां जमीर बेच चूका?
ओ खाली म्हारो अबल़ेखो ई है
कै आपनै ई लागै
म्हारी बात में
कठै ई तंत !!
कांई आपनै
नीं लागै
कै
आपां में अबै
नीं रह्यो जमीर जीवतो[…]

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कांमेही काल़ो नाग

अन्याय, अत्याचार अर अनाचार रै खिलाफ चारणां में तेलिया, तागा अर जम्मर करण री परंपरा ही। किणी आतंक रै डंक सूं चारण शंक’र नीं रह्या। जद-जद किणी राजा, ठाकुर या मधांध मोटै आदमी इणां माथै अत्याचार करण री कोशिश करी तो इणां मोत नै अंगेजण में रति भर ई जेज नीं करी।

ऐड़ी ई एक गरवीली कथा है मा कांमेही रै आत्मोत्सर्ग री। यूं तो आप सुधिजन इण बात नै जाणो पण तोई म्है एकर आपनै पाछी याद दिराय दूं।

हारोबड़ी(गुजरात) रै चारण जसाजी रै घरै कांमेही रो जनम हुयो अर[…]

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कितरा धृतराष्ट्र ?

कितरा धृतराष्ट्र ?
लागै है डर
साच नै साच कैवण सूं
जोखिम रो काम है
साच रै सैमूंडै ऊभणो
साच नै आंच नीं!
आ बात साव कूड़ी लागै है
क्यूंकै
जद जद ई हुयो है
किणी रो साच सूं सैंमूंडो
तो ऊतरी है
मूंडै री आब […]

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रल़ियाणो राजस्थान जठै

रंग बिऱंगी धरा सुरंगी, जंगी है नर-नार जठै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।

रण हाट मंडी हर आंगणियै, कण-कण में जौहर रचिया है।
पल़की बै ताती तरवारां, भड़ वीरभद्र सा नचिया है।
वचनां पर दैवण प्राण सदा, जुग-जुग सूं रैयी रीत अठै।
रल़ियाणो राजस्थान जठै।।1[…]

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