शिक्षक

सोचो उस दिन देश का, होगा कैसा हाल।
शिक्षक ने गर छोड़ दी, नेकनियति की चाल।।

सतयुग से कलियुग तक देखो, ये इतिहास गवाही देता।
शिक्षक हरदम देता रहता, बदले में कब कुछ भी लेता।।

अपने शिष्यों के अंतस में, जिसकी छवि अभिराम है।
ऐसे शिक्षक के चरणों में, कोटि-कोटि प्रणाम है।।

सच को सच कहने की हिम्मत,जो रखता है वह शिक्षक है।
झूठ-कपट से सच्ची नफरत, जो रखता है वह शिक्षक है।।

संस्कारों की फसल उगाता, यह धरती का लाल अनूठा,
पतझड़ में बासंती फितरत, जो रखता है वह शिक्षक है।।[…]

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अपभ्रंश साहित्य में वीररस रा व्हाला दाखला

आचार्य हेमचंद्र आपरी व्याकरण पोथी में अपभ्रंश रा मोकळा दूहा दाखलै सरूप दिया है। आं दूहाँ में वीर रस रा व्हाला दाखला पाठक नै बरबस बाँधण री खिमता राखै।आँ दूहाँ रो सबसूं उटीपो पख है -पत्नियां रो गरब। आपरै पतियां रै वीरत री कीरत रा कसीदा काढ़ती अै सहज गरबीली वीरबानियां दर्पभरी इसी-इसी उकतियां री जुगत जचावै कै पाठक अेक-अेक उकत पर पोमीजण लागै। ओ इसो निकेवळो काव्य है, जिणमें मुरदां में नया प्राण फूंकण री खिमता है।

आप-आपरै वीर जोधार पतियां री बधतायां गिणावती वीरबानियां में सूं अेक बोलै-“हे सखी! म्हारो सायबो इण भांत रो सूरमो है कै जद बो आपरै दळ नैं टूटतो अर बैरी-दळ नैं आगै बढतो देखै तो चौगणै उछाह रै साथै उणरी तलवार तण उठै अर निरासा रै अंधकार नैं चीरती ससीरेख दाईं पिसणां रा प्राण हर हरख मनावै-
भग्गिउ देक्खिवि निअअ वलु, वलु पसरिअउ परस्सु।
उम्मिल्लइ ससिरेह जिंव, करि करवालु पियस्सु।।[…]

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अपभ्रंश साहित्य रो सिणगार वर्णन

सिणगार तो हर भाषा रै लिखारां रो प्रिय विषै रैयो है। अपभ्रंश साहित्य रा थोड़ाक सिणगार रस प्रधान दूहा आप विद्वानां रै सामी प्रस्तुत है। अपभ्रंश भाषा में मोकळा पण्डित कवि होया है पण जिण दूहां री चरचा आगै होवणी है, वै इण भांत रै पंडितां रा लिखेड़ा नीं लागै। हां हो सकै कै आं दूहां रा लिखारा पारंगत पंडित हा पण दूहां रै सिरजण रै समै वै पंडिताई सूं ब्होत ऊपर उठेड़ा हा। सहज भाव ब्होत कठोर साधना सूं मिलै। कीं दाखलां सूं बात स्पष्ट होवैला।

अेक विरह-व्याकुळ प्रिया कैवै कै “जियां-कियां ई जे मैं म्हारै प्रिय नैं पा लेवती तो अेक इसो खेल रचती, जिसो आज लग नीं रचिजियो। प्राणपीव रै रूं-रूं में इयां रम जावती जियां माटी रै नयै सिकोरै में पाणी पैठ जावै अर उणरै अंग-प्रत्यांग नैं भीनो कर जावै“-
जइ केबइं पावीस पिउ, अकिआ कुड्डु करीसु।
पाणिउ नवइ सरावि जिबं, सब्बंगे पइसीसु।।[…]

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बोधिसत्व री मैत्रीभावना

।।बोधिसत्व री मैत्रीभावना।।

भूखा खाली पेट पकड़ियां,
है सोवण हित मजबूर जका।
तिस मरता पाणी बिन रोवैै,
तड़पैै है बिना कसूर जका।

धीरज छूटण सूं पैली ही,
कछु हाय! इसी जे बण पावै।
प्यासोड़ा ठंडो जळ पीवै,
भूखोड़ा भोजन पा जावै।[…]

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गुण-गर्जन

गरजा बादल गगन में,
घटा बनी घनघोर।
उमड़-घुमड़ कर छा गए,
अम्बुद चारों ओर।

सुन कर गर्जन समुद्र को,
आया क्रोध अपार।
मूढ़ मेघ किस मोद में,
गर्जन करत गंवार।।

मेरे जल से तन बना,
अन्य नहीं गुण एक।
मो ऊपर गर्जन करत,
लाज न आवत नेक।।[…]

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कवि मनुज देपावत का आह्वान

जिसने जन-जन की पीड़ा को,
निज की पीड़ा कर पहचाना।
सदियों के बहते घावों पर,
मरहम करने का प्रण ठाना।
महलों से बढ़कर झौंपड़ियां,
जिसकी चाहत का हार बनी।
संग्राम किया नित सत्ता से,
वो कलम सदा तलवार बनी।[…]

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कोमल है कमजोर नहीं है

कोमल है कमजोर नहीं है,
यह कोई झूठा शौर नहीं है,
अतुलित ताकत है औरत की,
इस ताकत का छोर नहीं है,
कोमल है कमज़ोर नहीं है।

विधना ने वरदान दिया है,
ऊंचा आसन मान दिया है,
सृजना का अधिकार इसे दे,
माँ कह कर सम्मान दिया है।
इसके जैसा और नहीं है।
कोमल है कमज़ोर नहीं है।[…]

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अम्बुद

उर में सुख उपजाए अम्बुद
अमृत-जल बरसाए अम्बुद
वसुधा की सुन अरज गरज कर,
उमड़-घुमड़ कर आए अम्बुद।

सूरज की निर्दयता लख कर
कहती धरती बिलख बिलख कर
सोया कहाँ अरे ओ सुखकर
धरती का सुन राग भाग कर,
छोड़ गगन छिति धाए अम्बुद।[…]

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टाबरियां रो संकट

लारलै पांच-सात-दस महीनां में अखबारां री खबरां अर अठी-उठी घटती घटणावां री बोहळायत रै बीच अेक तथ इयांकलो उभर’र सामी आयो है, जिणरो चिंतण करतां गैरी चिंता में पड़ज्यावां। कानां नै सुणेड़ी पर भरोसो कोनी हुवै तो आंख्यां नै सामै दीखती अर कागजां पर लिख्योड़ी पर भेरोसो कोनी हुवै। मन अर मगज तो जाबक काम करणो छोडद्यै। मिनखा-सभाव अर मिनखा-परगत रा विरोळकारां जकी बातां मिनख अर मानखै नै समझण सारू बताई, अबार तो बै बीतेड़ी बातां सी लागण लागगी। मिनख-मनोविज्ञान वाळां री बातां ई टेम चूकती सी लागै। विकास री आंधी दौड़, तकनीकी री ताबड़तोड़ अर मा-बाप री भागदौड़ रो नतीजो ओ है कै परिवार नाम री संस्था रो सित्यानास होवण लाग रियो है। […]

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काजी ई काजी रैयग्या

अेक समै री बात । पांच मिनख आपोसरी मांय कोई बात पर उळझग्या। जिद बहस रै बिचाळै रीस में रसाण पैदा हुयो। माड़ै दिन रो फेर आयो। अेक जवानड़ै रीस ई रीस में सामलै रै कुजाग्यां दे मारी। देखतां ई देखतां सामलो चित्त। नीचै पड़्यो अर प्राण पंखेरू उडग्यो। आपरै सागलै री मौत देख बाकी च्यारूं धोळा-धप्प हुग्या। च्यारां रा मूंढा जूतां ऊं कूट्योड़ा सा। लागै जाणै बापड़ां रा माइत मरग्या हुवै। पैली जोर-जोर सूं चीख अर गाळ बकणियां अबार निसासां न्हाखै। आप जाणो कै रीस स्याणी घणी हुवै। बा तो लारली गळ्यां भाजगी। अबै च्यारूं अेक-दूजै रै सामी जोवै।[…]

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