सोढाण रो सांस्कृतिक दर्पण-सोढाण सतसई

साहित्यिक अर सांस्कृतिक भोम रो नाम है सोढांण। सोढांण धाट अर पारकर भांयकै रो समन्वित अर रूपाल़ो नाम। सोढाण मतलब सोढां रो उतन। इण विषय में मारवाड़ रा विख्यात कवि तेजसी सांदू भदोरा लिखै-

अमरांणो अमरावती, धरा सुरंगी धाट।
राजै सोढा राजवी, पह परमारां पाट।।

आ उवा धरा जठै कदै ई सोढा राजपूत शासन करता। उणी सोढां री धरा सोढाण, जिणरी जाण आखै हिंदुस्थान में है। बिनां खोट जिणां कीरती रा कोट कराया। मनमोटां, पोटां भर द्रब बांटियो अर सुजस खाटियो-[…]

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श्री आवड़ माता(तनोट माता) के आशीर्वाद से भारतीय सेना की तनोट के युद्ध में चमत्कारी विजय

भगवती श्री आवड़ माता ने वि.स. 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन चारण मामड़जी के घर अवतार लेकर अपने जीवनकाल में कई चमत्कार कर दिखाये थे जिसकी एक विस्तृत श्रृंखला हैं। श्री आवड़ माता के चमत्कारों के कारण कवियों ने अपनी साहित्यिक रचनाओं में श्री आवड़ माता को 52 नामों से सम्बोधित किया जिसके कारण से भगवती श्री आवड़ माता 52 नामों से विश्वप्रसिद्ध हुए।

श्री आवड़ माता के वर्तमान परिपेक्ष्य में चमत्कारों का वर्णन करें तो हमें 20 वीं सदी के सम्पूर्ण विश्व की सर्वाधिक चमत्कारी घटना का स्मरण आ जाता है। ये घटना भारत पाकिस्तान के मध्य लड़े गये तनोट युद्ध (1965 ई) की हैं।[…]

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श्री आवड़ माता द्वारा हाकरा दरियाव (नदी) का शोषण करना – डॉ. नरेन्द्र सिंह आढ़ा (झांकर)

वि.स.808 के चैत्र शुक्ल नवमी मंगलवार के दिन मामड़जी चारण के घर पर भगवती श्रीआवड़ माता ने अवतार लिया। एक बार अकाल के समय मामड़जी अपने कुटूम्बियों के साथ अपने पशुधन को लेकर सिंध चले गये। उस समय तक सिन्ध पर अरबी मुसलमानों का कब्जा हो चुका था। उन्होंने सिंध के हिन्दुओं को जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन के लिए बाध्य करके बड़े पैमाने पर उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को विवश कर दिया था। मामड़जी का परिवार सिंध के प्राचीन नानणगढ (सुल्तानपुर), जो बहावलपुर के 20 कोस उत्तर में आया हुआ था, के पास हाकरा दरियाव (नदी) के किनारे अपनी झोपड़ी (नेस) बनाकर रह रहा था। भगवती श्री आवड़ माता की सातों बहिन शक्ति की अवतार थी। ये सातों ही बहिनें बहुत रूपवान थी।[…]

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आज रो समाज अर सराध रो रिवाज

सराध रो रिवाज आपणै समाज में जूनै टेम सूं चालतो आयो है अर आज ई चालै। जे आज री बात करां तो इयां मानो कै अबार रो जुग तो सराध रो स्वर्णिम जुग है। पैली रै जमानैं में तो मायतां रै देवलोक गमण करण रै बाद में ही सराध घालणा सरू हुया करता पण आज री पीढ़ी तो इतरी एडवांस है कै जींवता मायतां रा ई सराध करणा सरू कर दिया। बातड़ी कीं कम गळै ऊतरी दीखै पण आ बात साच सूं खासा दूर होतां थकां ई साच-बायरी कोनी। इणमें साच रा कीं न कीं कण कुळबुळावै। लारलै दिनां री बात है। अेक नामी-गिरामी अफसर आपरी जोड़ायत सागै मोटी अर मूंघी कार में वृद्धाश्रम आयो। भागां सूं बठै म्हारै जाण-पिछाण वाळी अेक समाजसेवी संस्था रा कई मानीता सदस्य भी वृद्धाश्रम री आर्थिक मदद करण सारू बठै गयोड़ा हा। मैनेजर वां सगळा सदस्यां सूं बात करै हो, इतरै तो वृद्धाश्रम रै दरवाजै कनैं अेक कार रुकी।[…]

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प्रथम राष्ट्र कवि व जनकवि दुरसाजी आढ़ा – डॉ. नरेन्द्र सिंह आढ़ा (झांकर)

दुरसाजी आढ़ा का जन्म चारण जाति में वि.स.1592 में माघ सुदी चवदस को मारवाड़ राज्य के सोजत परगने के पास धुन्धला गाँव में हुआ था। इनके पिताजी का मेहाजी आढ़ा हिंगलाज माता के अनन्य भक्त थे जिन्होंने पाकिस्तान के शक्ति पीठ हिंगलाज माता की तीन बार यात्रा की। मां हिंगलाज के आशीर्वाद से उनके घर दुरसाजी आढ़ा जैसे इतिहास प्रसिद्ध कवि का जन्म हुआ। गौतम जी व अढ्ढजी के कुल में जन्म लेने वाले दुरसाजी आढ़ा की माता धनी बाई बोगसा गोत्र की थी जो वीर एवं साहसी गोविन्द बोगसा की बहिन थी। भक्त पिता मेहाजी आढ़ा जब दुरसाजी आढ़ा की आयु छ वर्ष की थी, तब फिर से हिंगलाज यात्रा पर चले गये। इस बार इन्होनें संन्यास धारण कर लिया। […]

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सूजै जिसो नह कोई शेखो !

राजस्थान री धरती रै जायां री आ तासीर है कै वो धर, धरम अर स्त्री रै माण सारू आपरो सीस शिव री माल़ में पिरोय गरबीजतो रह्यो है।

अगूण सूं आथूण अर उतराध सूं दिखणाद रै कूणै-कूणै तांई इण धर रा जाया मरण सूं नीं संकिया। मरण ई ऐड़ो! जिणरै पाण आवण वाल़ी पीढी उवां री वीरता रा दाखला देवै अर पाखाण पूतलिया थाप आपरो सीस झुकाय कृतज्ञता ज्ञापित करै। सही ई है जिणां नै सुजस प्यारो हुवै उवै प्राण नै प्यारो नीं गिणै-

सुजस पियारा नह गिणै, सुजस पियारा ज्यांह।
सिर ऊपर रूठा फिरै, दई डरप्पै त्यांह।।[…]

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कांई आपरै आ मनगी कै म्है आपनै मार दूं ला?

भरमसूरजी रतनू आपरै समय रा मोटा कवि अर पूगता पुरुष हा। इणां नै मेड़ता रा राव जयमलजी मेड़तिया मौड़ी अर बासणी नामक दो गांम देय कुरब बधायो। भरमसूरजी रा डिंगल़ गीत उपलब्ध हैं। इणी रतनू भरमसूरजी री ई वंश परंपरा में ईसरदासजी रतनू हुया। जद अकबर चित्तौड़गढ माथै आक्रमण कियो उण बखत जयमलजी मेड़तिया री सेना में रतनू भरमसूरजी अर ईसरदासजी मौजूद हा। कह्यो जावै कै भरमसूरजी इण लड़ाई में वीरगति वरी–

चारण छत्री भाइयां, साच बोल संसार।
चढियो सूरो चीतगढ, अंग इधक अधिकार।।

जयमलजी मेड़तिया जैड़ै जबरेल वीर री वदान्य वीरता नै अखी राखण सारू ईसरदास जी ‘जयमल मेड़तिया रा कवत्त’ लिखिया। आ रचना डिंगल़ री महताऊ ऐतिहासिक रचना मानी जावै। रचना री एक बांनगी कवि री मेधा नै दरशावण सारू-[…]

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थपिया कीरत थंब

सांचोर माथै राव बरजांगजी राज करै। बडो दातार। बडो सतवादियो। कवियां रो कद्र करणियो अर खाग रो धणी। केई चारण कवेसरां नै गांम इनायत किया। इणी कवियां में एक नाम सोडैजी मईया रो ई चावो।

इण सोडैजी मईया नै राव बरजांगजी, गोमेई गांम दियो। नैणसी री ख्यात रै परिशिष्ट में दाखलो मिलै कै उन्नीसवें सईकै में गोमेई में दो पांतीदार हा-

“कोस 9आथूण। इकसाखियो। कोसोटो हुवै। चारण करता जमांवत, चारण अभा मांनावत रै आदो-आद सो गांव बरजांगजी दीया चारण सोडै मई नै। “

जैड़ोक दाखलो आयो कै अभा मानावत रै आधोआध है। इणसूं ठाह लागै कै अभजी मईया गांम रा आधिया हा। उवै आपरी बखत रा नामजादीक कवि पण हा-

अभमल तोसूं ऊजल़ी, सो मईयां री साख।[…]

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पछै ओ माथो कांई काम रो?

आज जितरो भौतिक विकास हुयो है उतरी ईज मानसिक द्ररिद्रता बधी है। मिनखपणो, नैतिकता, संवेदनावां, अर जीवणमूल्यां रो पोखाल़ो इण लारलै वरसां में जिण तेजी सूं निकल़ियो है उणसूं इण दिनां आंरी दुहाई देवणियो अजै तो फखत गैलसफो ईज बाजै, बाकी आ ई गति रैयी तो लागै कै आवण वाल़ै दिनां में आंरो नाम लेवणियो बचणो ई मुश्किल है।

एक उवो ई बखत है जद चीकणी रोटी जरूर जीमता पण चीकणी बात करण सूं चिड़ता। आपरै साथै रैवणिये या आस-पड़ौस माथै आफत आयां उणरै साथै हरोल़ में रैता अर मदत कर’र परम सुख मानता। क्यूंकै उण काल़खंड रा मिनख वाच -काछ निकलंक हुवता। आपरै गांम कै पडौसी माथै आफत आयां पछै पाछ पगलिया नीं सिरकता बल्कि आगमना हुय आपरो माथो देवण में गुमेज मानता। जद ऐड़ै मिनखां री ऐड़ी बातां पढां कै सुणां तो इयां लागै कै उवै मिनख जावता उवै बातां अर बखत आपरै साथै लेयग्या-

वल़ता लेग्या वांकजी, सदविद्या गुण संग।

ऐड़ी ई गीरबैजोग एक बात है मोरझर रै सुरताणिया पताजी वैरावत अर अकरी रै रतनू भोजराज खेंगारोत री।[…]

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चारणों के पर्याय-नाम एवं १२० शाखाएं/गोत्र – स्व. ठा. कृष्णसिंह बारहट

प्रसिद्ध क्रांतिकारी एवं समाज सुधारक ठा. केसरी सिंह बारहट के पिताश्री ठा. कृष्णसिंह बारहट (शाहपुरा) रचित ग्रन्थ “चारण कुल प्रकाश” से उद्धृत महत्वपूर्ण जानकारी–
१. चारणों के पर्याय-नाम और उनका अर्थ
२. चारणों की १२० शाखाओं/गोत्रों का वर्णन[…]

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