जसोड़ां रा बूंठा छोड देई

दिन अर दशा हरएक री बदल़ती रैवै, इणी कारण इणनै घिरत-फिरत री छिंयां कैयो गयो है। जिकै जसोड़ कदै ई जैसलमेर में जोरावर होता, जिणां रो राज में घातियो लूण पड़तो पण सगल़ी मिनखां री माया रा प्रताप हा!कृपारामजी खिड़िया सटीक ई लिख्यो है कै-

नरां नखत परवांण, ज्यां ऊभां संकै जगत।
भोजन तपै न भांण, रांवण मरतां राजिया!!

ज्यूं-ज्यूं मिनखां रो तोटो आयो, ज्यूं-ज्यूं जसोड़ पतल़ा पड़िया अर त्यूं-त्यूं उणां रो मरट मिटतो ग्यो।[…]

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वाह रे! अमरा वाह!!

राजस्थान रै इतियास में दो अमरसिंह घणा चावा है। एक अमरसिंह कल्याणमलोत अर दूजा अमरसिंह गजसिंहोत। दोनूं ई राठौड़ अर आपरी आखड़ी पाल़ण रै सारू आज ई अमर है।
अमरसिंह गजसिहोत तो घणो चावो नाम है पण अमरसिंह कल्याणमलोत नै कमती ई लोग जाणै। जदकै ऐ अमरसिंह किणी मायनै में कम नीं हा।
राव कल्याणमल बीकानेर रा सपूत अर महाराजा रायसिंह रा अनुज अमरसिंह स्वाभिमान रो सेहरो अर गुमेज रो गाडो हा। आपरै भाई रै साथै अकबर रै दरबार में उपस्थित हा। मुगल पातसाह अकबर अरगीज्योड़ै राजपूतां पेटै कोई हल़को आखर परोटियो। दरबार में विरोध करण री किणी बीजै री हिम्मत नीं होई जाणै गाडर रै कानै माथै जूती राखी होवै पण ओ वीर अगराज उठियो अर बिनां पातसाह री रजा दरबार छोड घोड़ै जीण कस बारोटियो होयो।[…]

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दे नादावत भीमड़ा

जोधपुर महाराजा गजसिंह जैड़ा दातार अर वीर हा वैडा ई दातार अर वीर इणां रा केई सामंत ई हा। इणां रै ऐड़ै ई एक दातार सामंत रो नाम हो पड़िहार भीम नादावत। भीम रै विषय में किणी कवि लिखियो है कै ‘सतजुग में बल़ि, द्वापुर में करन अर कल़जुग में विक्रमादित्य रै साथै भोज इण परंपरा नै सहेत टोरी पण हालती बखत में दातारगी री गाडी रा पहियां धसण लागा उण बखत भीम आपरो सबल़ खांधो देय जुतियो–

तिणवार भीम नादा तणो,
धुर जीतो ताडा धमल़।।

जाझीवाल़ रा जागीरदार भीम नादावत, नादै पड़िहार रा बेटा हा। भीम रो मन मोटो हो। कोई किणी वेल़ा आयग्यो तो ई नाकारो नीं कियो।[…]

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गायां तांझी नीं मांझी गी!!

दासोड़ी रै उतरादी कांकड़ रै कड़खै एक मोटो धोरो है, जिणनै गौयर धोरो कैवै। गौयर मतलब गायां रै स्थाई बैठण री जागा। रात री बखत चौमासै में गांम री गायां अठै बैठती अर इण गायां रो ग्वाल़ो मोहर अथवा मेहर जात रो मुसल़मान हो। पैला दासोड़ी में इण जातरै मुसल़मानां रा खासा घर हा।
एक दिन रात री गायां बैठी अर बो सूतो हो कै अचाणचक उणनै लागो कै कोई गायां नै टोर रैयो है। बो हाकल करर उठियो कै उणनै तीन -च्यार जणां पकड़र बांध दियो। उण पड़ियै पड़ियै ई किरल़ी (जोर से किसी को हेला करना या आवाज देना) करी।

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दोय उदैपुर ऊजल़ा!!

उण दिनां उदयपुर माथै महाराणा जगतसिंह राज करै। उदार अर मोटै मन रा राजा। जिणां रै विषय में ओ दूहो घणो चावो है-

पारेवा मोती चुगै,
जगपत रै दरबार!!

एक दिन उणां रो दरबार उमरावां अर कवियां सूं थटाथट भरियो। बात चाली कै ‘आज री बखत महाराणा जगतसिंह री बराबरी रो कोई दातार नीं!! जितै किणी कैयो कै एक है!! उदयपुर छोटा(शेखावाटी) रा धणी टोडरमल!!’
किणी कैयो कै ‘कठै बापड़ो उदयपुरियो अर कठै उदयपुर!! तुलै सोनो अर मींडीजै ईंटां!!’

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भाज गई भेडांह !!

बीकानेर महाराजा दलपतसिंह स्वतंत्र प्रकृति रा पुरूष हा। इणां री इण प्रकृति रो कुफायदो केई लोगां उणां रै कुंवरपदै में उठायो ई हो जिणरै परिणामस्वरूप बाप-बेटे में खटरास ई पड़ियो पण इणां इण बात री कोई घणी गिनर नीं करी।
महाराजा रायसिंह रै सुरगवास पछै ऐ पाट बैठा। इणां नर नानाणै री गत महाराणा प्रताप रै चीले बैतां थकां मुगल़ सत्ता री घणी कद्र नीं करी।
जैड़ोकै आपां सगल़ा जाणां कै इणां रो नानाणै मेवाड़ महाराणा प्रताप रै घरै हो। इणां ई विद्रोह रो झंडो भलांई ऊंचो नीं राखियो पण मेलियो ई नीं!! इणसूं घबराय पातसाह जहांगीर इणांरै विद्रोही भाई महाराज सूरसिंह रो पख लियो अर बीकानेर माथै सेना मेली।[…]

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अठै ! कै उठै !!

जोधपुर राव मालदेवजी भायां नै दबावण री नीत सूं मेड़ता रै राव जयमलजी नै घणो दुख दियो। जयमलजी ई वीर अर भक्त हृदय राजपूत हा, उणां सदैव इण आतंक रै डंक नै अबीह होय झालियो।
मेड़ता माथै राव मालदेवजी आक्रमण कियो, उण बखत जयमलजी रा भाई चांदाजी मेड़तिया ई मालदेवजी रै साथै हा। उणां, उण बखत किनारो ले लियो जिणसूं मालदेवजी नै थोड़ो शक होयो। मेड़तिया ऐड़ा भिड़िया कै जोधपुर रा पग छूटग्या। नाठतां आपरो नगारो ई पांतरग्या। जिणनै जयमलजी सनमान सैती आपरै भांभी साथै लारै सूं पूगतो कियो। गांम लांबिया कनै जावतां उण भांभी रै मन में आई कै एकर नगारै माथै डाको देय देखूं तो सरी कै बाजै कैड़ोक है!![…]

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पत तूं राखै पातला!!

सरवड़ी बोगसां रो गांम। साहित्य अर संस्कृति रो सुभग मेऴ।

एक सूं एक टणकेल अर जबरेल कवियां री जनम-भोम सरवड़ी कविराजा बांकीदासजी आसिया अर शब्द-मनीषी सीतारामजी लाल़स रो नानाणो। जैड़ो पीवै पाणी ! वैड़ी बोलै वाणी अर जैड़ो खावै अन्न ! वैड़ो हुवै मन्न!! शायद ओ ईज कारण रैयो होवैला कै ऐ दोनूं मनीषी राजस्थानी साहित्य रा कीरतथंभ हा। होणा ई हा ! क्यूंकै नर नाणाणै अर धी दादाणै रो कैताणो आदू!! पछै ‘मामा ज्यारां मारका, भूंडा किम भाणेज!!'[…]

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तो कांई म्हारी दाऴ अलूणी ही!!

एकबार खेतसिंह कोई घरेलु काम-काज रै मिस जोधपुर गया। आपरो ऊंठ निमाज हवेली में बांध सामान-सट्टो खरीदण गया अर, पाछा आय हवेली रातवासो लियो। दिनूंगै उठिया तो सऴवऴ सुणीजी कै हवेली मानसिंहजी घेराय दी है।

ठाकरां रो साथ भेऴो होयो अर मुकाबलो करण री तेवड़ी। उणां मांय सूं किणी खेतसिंहजी नै कैयो कै-
“खेतसिंहजी ! थे अणखाधी रा क्यूं मरो !! थे थांरै ऊंठ सवार होय जावो परा !! दरबार रो कोप ठाकरां माथै है दूजै किणी माथै नीं सो थे क्यूं उडतो तीर गऴै में लेवो?”[…]

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आपां बात करां औरां री, आपां री करसी कोई और

आपणो ओ संसार बादळां री फिरत-घिरत री छाया रै मानींद कद किण सूं छूट जाय, इणरो ठाह कोई नैं ई पण नीं है। देही रै अवसाण पछै पाछो कोई देही मिलसी का नीं इण बात रो ई कोई नैं ठाह नीं है पण ओ जरूर ठाह है कै जको जलम्यो है उण सारू मरणो लाजमी है। मौत अटल साच है, इणमें कोई मीन-मेख नीं है। हां! मौत रा गेला घणा है। कद अर कुणसै बैवै कोई नैं मरणो पड़ै ओ करमां री खेती पर टिकेड़ो है। करमां सारू रिख-मुनियां लारला कई जलमां रा खाता खंगाळण री बातां मांडी है। इण जलम रो ई नीं कई जलमां रो पाप अर पुन्न जीवात्मा रै साथै संचरण करै। आ बात कोरी मानखै पर नीं वरन समूची जीयाजूणा पर लागू हुवै। हां! मिनखा देही री आ बदताई है कै इण देही मांय आपां आछा अर बुरा करमां री जाणकारी ले सकां।[…]

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