बस!करोड़ इता ई होवै!!

बारठ दूदाजी रै च्यार बेटा होया-महपोजी, चाहड़जी, थिरोजी अर अमरोजी। थिरोजी अर अमरोजी कविवर्य चांनणजी खिड़िया रा भाणेज हा। इणी थिरोजी रो तोगोजी अर तोगोजी रै बारठ शंकरदासजी अथवा बारठ शंकरजी होया।
शंकरजी प्रतिभा संपन्न अर प्रज्ञा पुरूष होया। उण दिनां बीकानेर माथै महाराजा रायसिंह जी रो राज। रायसिंहजी काव्य प्रेमी अर उदार मिनख हा। बारठ शंकर आपरी रचना “सूर दातार रो संमादो” जैड़ी छोटी पण भावां सूं उटीपी रचना लेयर रायसिंहजी रै अठै हाजिर होया अर रचना सुणाई-
तन वीजूझल़ पल़ समल़, सिव कमल़ हंस.हूर।
ऐता दीन्हां बाहिरो, मोख न पावै सूर।।
जल़ थल़ महियल़ पसु पँखी, सूर घणा ई होय।
दाता मानव बाहिरो, सुण्य़ो न दीठो कोय।।
महाराजा रायसिंहजी इण रचना सूं इता रीझिया कै हाथोहाथ आपरै दीवाण करमचंद बच्छावत नैं आदेश दियो कै कवि नै करोड़ पसाव कियो जावै! पण दीवाण सोचिय़ो कै दरबार नै एहसास करायो जावै कै करोड़ रुपिया कोई बापड़ा नीं होवै ! जिको इणविध कवितावां माथै लुटाया जावै![…]
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