बस!करोड़ इता ई होवै!!

बारठ दूदाजी रै च्यार बेटा होया-महपोजी, चाहड़जी, थिरोजी अर अमरोजी। थिरोजी अर अमरोजी कविवर्य चांनणजी खिड़िया रा भाणेज हा। इणी थिरोजी रो तोगोजी अर तोगोजी रै बारठ शंकरदासजी अथवा बारठ शंकरजी होया।

शंकरजी प्रतिभा संपन्न अर प्रज्ञा पुरूष होया। उण दिनां बीकानेर माथै महाराजा रायसिंह जी रो राज। रायसिंहजी काव्य प्रेमी अर उदार मिनख हा। बारठ शंकर आपरी रचना “सूर दातार रो संमादो” जैड़ी छोटी पण भावां सूं उटीपी रचना लेयर रायसिंहजी रै अठै हाजिर होया अर रचना सुणाई-

तन वीजूझल़ पल़ समल़, सिव कमल़ हंस.हूर।
ऐता दीन्हां बाहिरो, मोख न पावै सूर।।
जल़ थल़ महियल़ पसु पँखी, सूर घणा ई होय।
दाता मानव बाहिरो, सुण्य़ो न दीठो कोय।।

महाराजा रायसिंहजी इण रचना सूं इता रीझिया कै हाथोहाथ आपरै दीवाण करमचंद बच्छावत नैं आदेश दियो कै कवि नै करोड़ पसाव कियो जावै! पण दीवाण सोचिय़ो कै दरबार नै एहसास करायो जावै कै करोड़ रुपिया कोई बापड़ा नीं होवै ! जिको इणविध कवितावां माथै लुटाया जावै![…]

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रंग रे दोहा रंग – रंग बसंत

बसंत का हमारे देश में बडा ही महत्व है। बसंत रूत में प्रकृति नवपल्लवित हो उठती है। रंग बिरंगे फूलों से वातावरण मादक हो जाता है। किंशुक, पलाश के लाल फूल पहाडियों पर बडे ही मन भावन लगते है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने प्रकृति को गेरूए रंग में रंग दिया हो। बसंत पंचमी से होली तक लगातार बसंतोत्सव मनाया जाता है। फागुन तक अनवरत चलता यह महोत्सव भारतीयों के जीवन में घुल मिल गया है।

बसंतोत्सव मनाने के संदर्भ हमें संस्कृत साहित्य से लेकर राजस्थानी की प्राचीन कविताओं में मिलते है। मृच्छकटिकम नाटक में एक गरीब ब्राह्मण चारुदत्त और एक गणिका बसंतसेना के प्रेम का वर्णन किया गया है। इसमें बसंतोत्सव का शानदार चित्रण नाटककार छुद्रक ने किया है। महाकवि कालिदास नें भी अपने काव्य ऋतुसंहार में अन्य ऋतुऔं के साथ साथ बसंत ऋतु का बडा ही अद्भुत वर्णन किया है।[…]

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जिणरा घोड़ा समंदां पीवै! उण आगे तल़ाब री कांई जनात?

महाराजा मानसिंह आमेर अर महाराणा प्रताप राजस्थान रै इतिहास में ई नीं अपितु भारतीय इतिहास में चावा। एक री खाग पातसाही स्थापित करण नै उठी तो दूजोड़ै री तरवार रजवट रै वट री रुखाल़ी सारू। दोनूं ई आपरी स्वामीभक्ति नै समर्पित। मानसिंह पातसाह नै स्वामी मानियो तो पातल इकलिंग रो दीवाण। वि.सं 1629 में डूंगरपुर नै धूंसतो कुंवर मानसिंह जद वि.सं 1630 रै आसाढ में उदयपुर ढूकियो तो उठै महाराणा प्रताप घणा कोड किया अर गोठ करी। भोजन री वेल़ा प्रताप पेट दूखण रो ओल़ावो लेय मानसिंह रै भेल़ा नीं बैठिया। आ बात मानसिंह नै अखरगी। उणां चढतां कैयो कै “हूं बेगो ई आवूंलो !! अर आवतो महाराणा रै पेट री ओखद ई लाऊंलो!!” महाराणा ई कैय दियो कै “जे थे थांरै फूंफै साथै आवोला! तो ऐ घोड़ा अर राजपूत अठै ईज स्वागत में तैयार मिलेला अर जे एकला आवोला तो मालपुरै तक साम्हा आय स्वागत करैला!”

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बाई पद्मा अर वीर अमर सिंह

बीकानेर रा राजाजी रायसिंह जी रा भाई अमर सिंह जी हा उण बखत अकबर अर आमै खटपट व्हैगी ईण खातर अमरसिंह नै पकड़ण सारूं बादसा अकबर आरबखां नै अमरसिंह नै पकड़ लावा रो हुकम दीधो। अमरसिंह रा बड़ा भाई पिरथीराजी अकबर रै दरबार में हाँ। वां ओ हुकम सुण बादसा ने अरज कीधी।
“म्हारौ भाई अमरु हजरत रे वेमुख है जिण री तो उण ने सजा मिलणी चावै। पण वो यां रै हाथे हरगिज नीं आवैलां। ऐ पकड़वा वाळा मारिया जावेला। आ तावेदार री अरज, हजरत गांठ बांध लिरावै।”
अकबर बोल्यो “म्है ईणनै गिरफ्तार कर दिखाऊंला।”

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बहू ढक्यां परिवार ढकीजै

च्यारां कानी धमा-धम बाजै। हेलाहेल कर्यां ई कोई नै सिवाय बीं धमचक रै कीं नीं सुणीजै। भयंकर तावड़ै में बळती चामड़ी पर पसीनो भी भाप बण’र उडज्यावै। अैड़ै-छेड़ै हेल्यां ई हेल्यां। कठै ई कोई खाली जाग्यां रो नाम ई कोनी। हरखियो बोल्यो भाइड़ा ईं शहर री गळ्यां-गूंचळ्यां में तो इत्ता फेर है कै आदमी तो कांई बापड़ी हवा नै ई गेलो कोनी मिलै। ईं वास्तै ई अठै इत्ती गरमी है। हरखियै री बात सुण’र अेकर सी सगळा मजदूरड़ा हँस्या पण ठेकेदार नैं आंवतो देख’र कीं बोल्यां बिनां ईं पाछा आप आपरो काम सळटावण में पिल पड़्या। ठेकेदार रो नांम भगवानो हो। बो बात रो पक्को अर खानदानी आदमी हो। ईं खातर बो फालतू री बाखाजाबड़ पसंद नीं करतो। बो तो सगळां नै आ ई कै राखी है कै जित्तो काम करो बित्ता दाम लेवो। काम नहीं तो दाम नहीं।[…]

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संकरिया सूंडाल़

किरता अपणै हाथ सूं, तोलै सबै करम्म।
सौ सुक्रत इक पाल़णै, एको साम धरम्म।।

ऐड़ो ई एक स्वामीभक्ति रो किस्सो है जुढिया रा लाल़स शंकरजी रो। शंकरजी लाल़स, लाल़स लूणैजी री वंश परंपरा में गोदोजी लाल़स सपूत अर तेजाजी रा पोता हा। जुढियो मा सैणी रो सुथान। जिण विषय में ओ दुहो चावो-

तखत दोनूं तड़ोबड़ै, जुढियो नै जोधाण।
बठै राजावां बैठणो, (अठै) सैणी तणो सुथान।।

लाल़स शंकरजी, महावीर कल्ला रायमलोत रै मर्जीदानां में सींवाणै रैवै। महावीर कल्लो अडर, साहसी अर स्वाभिमानी राजपूत हो। जिणरै विषय में महाकवि पृथ्वीराजजी राठौड़ लिखियो है-कल्लो भल्लो रजपूत कहीतो!![…]

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डिंगल़ गीतां मांय चारण कवेसरां रो सूरापण

इण महाभड़ां रै टाल़ टीकमजी कविया बिराई, लूणोजी रोहड़िया सींथल, हरखोजी नगराजोत मूंजासर, भैरजी मीसण ओगाल़ा, अरजनजी किनिया सुवाप, मेहर दानजी सिंढायच माड़वा, करनीदानजी रतनू लूंबा रो गांम जोधजी बारठ तड़ला, धनजी लाल़स आकली, हणुवंतसिंह पदमावत सींथल़, विसन दानजी खिड़िया आद सतवादियां असत रै खिलाफ तत्कालीन शासक वर्ग द्वारा कियै समाज विरोधी कामां रै प्रतिकार सरूप घणी बहादुरी बताय तेलिया अर कटार कंठां कर जातीय गौरव नै अखी राखियो।
जैसलमेर महारावल़ रणजीतसिंह रै शासनकाल़ में चारणां सूं दाण लेवण रै विरोध में मेहरदानजी सिंढायच आपरो जिको आपाण बतायो बो आज ई चावो है-

जाय जैसाणै ऊपरै, जुड़ियो महिपत जंग।
अमलां वेल़ा आपनै, रेणव महरा रंग।।[…]

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म्हांरै कन्नै देवण नै फगत माथो है!!

सिरोही माथै महाराव केशरीसिंह रो राज। सिरोही राज रा आर्थिक हालात माड़ा। राज री माली हालात सुधारण अर कीं खजानो भरण री जुगत में दरबार कई नवा कर लगाय कर उगरावण रो दबाव बणायो। जिण लोगां नै कर उगरावण री जिम्मेदारी दी, उणां पुराणै कानून कायदां री धज्जियां उडावतां आडैकट उगराई शुरू कर दीनी।

इणी उगराई सारू एक जत्थो मोरवड़ै गांम ई ढूकियो। मोरवड़ा गांम महिया चारणां रो सांसण गांम। सांसण गांम हर प्रकार री लाग सूं मुक्त। आ बात जाणतां थकां ई दरबार रै आदम्यां आय लोगां नै भेल़ा किया अर टैक्स चुकावण री ताकीद करी। गांम रै मौजीज लोगां कैयो कै ओ तो सांसण गांम है! हरभांत री लाग-वाग सूं मुक्त, अठै आप इण पेटै हकनाक आया हो! अठै राज रा कानून नीं अठै म्हांरा ईज कानून चालै। आवणिया ई राज रा आदमी हा, उणां कैयो कै अबै इण भोपा डफरायां में कीं नीं धरियो है, टैक्स सादी सलाह में भरो जणै तो ठीक है नींतर राजरै हुकम सूं म्हांनै लैणो आवै।[…]

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पितृहंता नरेश नै साच री आरसी दिखावणियो कवि, दलपत बारठ

आज आपां लोकतंत्र में आपां रै बैठायोड़ै प्रतिनिधि नै साच कैवता अर बतावता शंको खावां हां तो आप अंदाजो लगावो कै राजतंत्र री निरंकुशता सूं मुकाबलो करणो कितो खतरनाक हो? पण जिका साच नै साच कैवण री हिम्मत राखै बै डांग माथै डेरा राखै। बै नी तो घणो आबाद रैवण रो कोड करै अर नी उजड़ण सूं भय खावै। ऐड़ो ई एक किस्सो है बारठ दलपत ई़दोकली रो।
उण दिनां मारवाड़ माथै महाराजा अजीतसिंह शासन करै हा। पुख्ता होवण रै छतापण उणां आपरै उत्तराधिकारी अभयसिंह नै राज नी सूंपियो। इण सूं अभयसिंह नै ओ भय रैयो कै किणी कारणवश राज नी मिलियो तो ठीक नी रैवैला। सो कीकर ई राज लियो जावै। उणां आपरै भाई बगतसिंह नै कैयो कै “म्हारो तो हमे राज करण री इच्छा रैयी नी, जे तूं राजा बणणो चावै तो कीकर दरबार नै हटा देअर राजा बणज्या। म्हारी आ सलाह है।” राज रै लालच में आय बगतसिंह आपरै पिता अजीतसिंह नै धोखै सूं मार नाखियां।[…]

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अजै मेड़तिया मरणो जाणै!!

जद जोधपुर महाराजा अभयसिंहजी बीकानेर घेरियो उण बगत बीकानेरियां जयपुर महाराजा जयसिंहजी नै आपरी मदत सारु कैयो। जयसिंहजी फौज ले जोधपुर माथै चढाई करी। आ बात अभयसिंहजी नै ठाह पड़ी तो उणां बीकानेर सूं जोधपुर जावणो ई ठीक समझियो। जोधपुर उण बगत जयपुर रो मुकाबलो करण री स्थिति में नीं हो। राजीपै री बात तय हुई अर 21लाख जयपुर नै फौज खरचै रा दैणा तय होया, जिणमें 11लाख रो गैणो अभयसिंहजी री कछवाही राणी रो दियो अर बाकी रुपियां मौजीज मिनखां री साख में लैणा किया। जद किणी जयसिंहजी नै कैयो कै “हुकम ओ गैणो तो बाईजी राज रो है अर आप लेय रैया हो!!” जयसिंहजी कैयो कै “अबार ओ गैणो जयपुर री राजकुमारी रो नीं है अपितु जोधपुर री राणी रो है सो ले लियो जावै!!”
समझौतो होयां जयपुरियां री भर्योड़ी तोपां पाछी जयपुर रवाना होई।[…]

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