तूं क्यूं कूकै सांखला!!

“बारै वरसां बापरो, लहै वैर लंकाल़!!”
महाकवि सूरजमलजी मीसण री आ ओल़ी पढियां आजरै मिनखां में संशय उठै कै कांई साचाणी बारह वरसां रा टाबरिया आपरै बाप-दादा रा वैर लेय लेवता! आं रो सोचणो ई साचो है क्यूं कै आज इणां रा जायोड़ा तो बारह वरसां तक कांई बीस वरसां तांई रो ई रोय र रोटी मांगे!! सिंघां सूं झपटां करणी तो मसकरी री बात है बै तो मिनड़ी रै चिलकतै डोल़ां सूं धैलीज जावै!! जणै आपां ई मान सकां कै आजरो मिनख आ बात कीकर मानै? पैला तो हर मिनख आपरी लुगाई नै कैया करतो हो कै “जे आपांरै जायोड़ै में बारह वरसां तक बुद्धि, सोल़ह वरसां तक शक्ति अर बीस वरसां तक कुल़ गौरव री भावना नींआवै तो पछै उणसूं आगे कोई उम्मीद राखणी विरथा है”[…]
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