।।कहाँ वे लोग, कहाँ वे बातें।। – राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)

ऐक बार डीडिया गांव के न्यायाधीस श्रीमान लक्ष्मीदानजी सान्दू साहब से मिलने हेतु श्रीमान अक्षयसिंहजी रतनू साहब गये। उस समय जज साहब ने कहलवाया कि मेरे पास अभी मिलने के लिए समय नही है। यह उत्तर सुनकर रतनू साहब उसी समय वापस आ गये और उन्होने प्रत्यूतर में दो कवित्त मनहर बना कर प्रेषित किए। कवित्त में इस घटना की तुलना समाज के दो शिरोमणी रत्न सुप्रसिध्द इतिहासकार कविराजा श्यामलदासजी दधवाड़िया जो कि उदयपुर महाराणा के खास सर्वेसर्वा थे और दूसरे जोधपुर के कविराजा श्रीमुरारीदान जी आशिया जो कि जोधपुर कौंसिल के आला अधिकारी भी रहे थे, से की।[…]

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लाखो फूलाणी लछो!!

“ठगीजै सो ठाकर” री बात कुड़ी नीं है। हथाई रो कोड हुवै उण नै दमड़ा खरचणा पड़ै। ओ काम कोई मोटै मन रो मानवी ई कर सकै। इण में कोई जात रो कारण नीं है। ऐड़ै ई एक मोटै मन रै मिनख रो किस्सो चावो है।

पोकरण रै पाखती गांव लालपुरो। रतनूवां रै जागीरी रो गांम। इण गांम रै रतनू भोजराज री उदारता विषयक ओ दूहो घणो चावो-

लायक रतनू लालपुर गिरवर सुत बड गात।
कवि भोजै री कोटड़ी रहै सभा दिन रात।।

उल्लेखणजोग है कै सिरूवै में रतनू तेजमालजी हुया। जिणांरा माईत बाल़पणै में ई गुजरग्या हा। नेनप पड़गी। इणां रो नानाणो भाखरी रै मिकसां रै अठै। तेजमालजी री मा तेजमालजी नै लेय आपरै पीहर भायां कनै आयगी। दिन लागां तेजमालजी मोटा हुया। भाग बारो दियो। घोड़ां रा मोटा वौपारी हुया। एकर चांदसमा ठाकुर लालकरनजी इणां सूं एक घोड़ो लियो पण रकम ऊभघड़ी हुई नीं जणै ठाकुरां तेजमालजी नै कह्यो कै “आप सिरूवै क्यूं रैवो? म्हारै कनै रैवो। आवण-जावण रो पंपाल़ मिटै।”[…]

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म्है दाण नीं ! प्राण देवूंला

माड़वो पोकरण रै दिखणादै पासै आयोड़ो एक ऐतिहासिक गांम है। जिणरो इतिहास अंजसजोग अर गर्विलो रैयो है। पोकरण राव हमीर जगमालोत ओ गांम अखै जी सोढावत नै दियो। जिणरी साख री एक जूनै कवित्त री ऐ ओल़्यां चावी है-

हमीर राण सुप्रसन्न हुय, सूरज समो सुझाड़वो।
अखै नै गाम उण दिन अप्यो, मोटो सांसण माड़वो।।

इणी अखैजी रै भाई भलै जी रै घरै महाशक्ति देवल रो जनम हुयो-

भलिया थारो भाग, देवल जेड़ी दीकरी।
समंदां लग सोभाग, परवरियो सारी प्रिथी।।

ओ ई बो माड़वो है जठै भगवती चंदू रो जनम हुयो जिण सांमतशाही रै खिलाफ जंमर कियो। इणी धरा रा सपूत मेहरदान जी संढायच आपरी मरट अर स्वाभिमानी चारण रै रूप में चौताल़ै चावा रैया हा।[…]

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चोर निदाणै कै न्हासै!!

पुराणो जमानो मारकाट, लूट खसोट, दाबा मसल़ी रो हो अर्थात जिण री डांग उणरी ई भैंस! कणै लोग घात प्रतिघात कर लेता इणरो ठाह ई नीं लागत़ो। ऐहड़ो ई घात प्रतिघात रो एक किस्सो है तणोट रै राजकंवर देवराज भाटी रो।
देवराज भाटी भटींडै रै वराह राजपूतां रै अठै जान ले परणीजण गयो। वराह रै मन में भाटियां रै प्रति खारास उणां देवराज अर बीजै भाटियां साथै घात तेवड़ी अर पूरी जान रो धोखै सूं घाण कर दियो पण जोग सूं आ सुल़बल़ देवराज री सासू सुणली! उणरै मन में आपरी बेटी री ममता जागगी। बा नीं चावती कै कालै हाथ पील़ा किया अर आज उणरी बेटी लंबी पैरै! उण आपरी बेटी नैं विधवा होवण सूं बचावण सारु ‘आल’ राईकै नै बुलायो अर कैयो कै ‘देवराज नै रातो -रात कठै ई ऐहड़ी जागा छोडर आव जठै उणनै जीव रो जोखो नीं होवै। ‘ आल आपरी ‘जाणक’ सांढ माथै देवराज नै चढाय टुरियो जिको भटींडै सूं रात-रात में पोकरण री घाटी जाल़ां में पूगग्यो। अठै सांढ बेल़ास रो भार झाल नीं सकी जणै आल देवराज नै कैयो ‘भलांई म्हनै अठै उतारदो अर सांढ आप ले जावो अर भलांई आप अठै जाल़ां में उतर जावो अर सांढ म्हनै ले जावण दो, क्यूंकै अबै सांढ बेल़ास (दो सवार) रो भार झेल नीं सकै ! ‘  जणै देवराज कैयो कै ‘सांढ तूं लेय जा अर म्हनै अठै उतारदे। ‘[…]

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रैवूं तो कांई? म्है अठै पाणी ई नीं पीवूं!!

भलांई आदमी किणी री मदत करण रै ध्येय सूं उणरो मदतगार बणर जावो पण साम्हली जागा पोल अर कमजोरी देख कणै मदत करणियो दुस्मण बण बैठे कोई ठाह नीं लागे। मंडोवर सूं राव रिड़मल आपरी बैन हंसाबाई रै कैणै सूं बाल़क राणै कु़भै री मदत करण गयो पण उठै जाय रिड़मल देखियो कै सिसोदियां रा हाल सफा माड़ा है। चाचा अर मेहरो किणी री गिनर नीं कर रैया है। रिड़मल रै खांडै में तेज हो, उणां री भुजावां में बल़ हो। उण बेगो ई आपरो प्रभाव जमा लियो। कुंभै रै वैरियां नैं गिण गिण मोत रै घाट उतार दिया। ऐहड़ै संक्रमण काल़ में रिड़मल इतरो ताकतवर होयग्यो कै बो किणी री गिनर नीं करतो। सिसोदिया शंकित रैवण लागा अर उणांनै डर लागण लागो कै कठै ई रिड़मल ‘आई तो ही छाछ मांगण अर बण बैठी घर धणियाणी ‘ वाल़ी गत नीं कर देवै। आ नीं होवै कै चित्तौड़ रा धणी राठौड़ बण बैठे!!
उणां आ बात राजमाता हंसाबाई अर राणा कुंभा नै बताई अर ऊंधा-सूंव भल़ै भ्रमाय उणां नै रिड़मल रै पेटे पूरा शंकित कर र रिड़मल नै मारण सारु मून हां भरायली। पण सिंह रै मूंडै में हाथ कुण देवै। […]

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पछै म्हारो बेटो होवण री ओल़ख क्यूं नीं दी!!

ढांढणियै रा लाल़स रामचंद्रजी उन्नीसवें सईकै रा नामचीन कवि। उणांरी घणी रचनावां चावी। जोगी जरणानाथजी रा छंद बेजोड़-

जोगी जग जरणा करुणा करणा,
इल़ नहीं मरणा अवतरणा!!

इणां री काव्य प्रतिभा अर वाक शक्ति सूं रीझ र नगर रावतजी – भेडाणा अर आंबल़ियाल़ी नामक दो गांम तो आकली अर अरणियाल़ी जैड़ा दो ई गा़म गुड़ै राणाजी साहिबखांनजी दिया। रामचंद्रजी आपरो परिवार लेय ढांढणिया सूं आकली बसग्या।
साहिबखांनजी मिनखपणै री आभा सूं मंडित अर उदारता रा प्रतीक पुरुष हा।
किणी कवि कैयो है-

धोबी कनै धुवाय, कईक नर गाहड़ करै।
मैली डगली मांय, सुजस तिहारो साहिबा।।

इणी कारण कवि रो गुड़ै राणाजी रै अठै ईज घणकरोक समय व्यतीत होवतो। इणसूं रावतजी नाराज रैता अर आ नाराजगी काढण सारू किणी मोकै री उडीक में हा।[…]

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श्री किरपारामजी खिड़िया री विलक्षण सूझ बूझ – राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर

विलक्षण बुध्दिलब्धी अर महान मेधा रा धणी किरपारामजी खिड़िया रीति-नीति अर मर्यादा रा मोटा मानवी हा। किरपारामजी रो आदू गांव जूसरी नागौर जिला री मकराणा तहसील कनै आयो थको पण कर्मक्षेत्र वर्तमान में राजस्थान रो सीकर जिलो, तात्कालीन जयपुर रियासतरो बड़ो ठिकाणों हो। उण समय जोधपुर मानसिंह जी रो राज हो अर जयपुर में जगतसिंह जी अर प्रतापसिंह जी शासक रैया। पूरा राजस्थान में मराठां, पिंडारियां री लूटाखोस अर धमचक मंडियोड़ी रैवती। उण समै सीकर में रावराजा लिछमणसिंह जी पाट बिराजिया हा अर किरपारामजी बांरा मानीता दरबारी होवता हा। उण दिनां रियासतां रा छोटा मोटा ठिकाणेदारां रे सागै झंझट झमैला चालता ई रैवता। आं झगड़ां री कड़ी में लगाण री बातां ने लेयर जयपुर रियासत री कोपदृष्टि सीकर रा ठिकाणां पर हुयगी।[…]

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डिंगल काव्य केवल वीर रस प्रधान ही नहीं इसमें हास्य रस भी है-मोहन सिंह रतनू

महान भक्त कवि ओपा जी आढा को देवगढ के कुंवर राघव देव चूंडावत ने ऐक घोड़ा भेंट किया। घोड़ा बूढा एवं दुर्बल था।
इस पर कवि ने कुंवर को उलाहना स्वरूप एक गीत लिखा…देखिये सुंदर बिंनगी

धर पैंड न चालै माथो धूणै,
हाकूं केण दिसा हैराव।
दीधो सो दीठो राघव दे,
पाछो ले तूं लाख पसाव।।1[…]

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बस!करोड़ इता ई होवै!!

बारठ दूदाजी रै च्यार बेटा होया-महपोजी, चाहड़जी, थिरोजी अर अमरोजी। थिरोजी अर अमरोजी कविवर्य चांनणजी खिड़िया रा भाणेज हा। इणी थिरोजी रो तोगोजी अर तोगोजी रै बारठ शंकरदासजी अथवा बारठ शंकरजी होया।

शंकरजी प्रतिभा संपन्न अर प्रज्ञा पुरूष होया। उण दिनां बीकानेर माथै महाराजा रायसिंह जी रो राज। रायसिंहजी काव्य प्रेमी अर उदार मिनख हा। बारठ शंकर आपरी रचना “सूर दातार रो संमादो” जैड़ी छोटी पण भावां सूं उटीपी रचना लेयर रायसिंहजी रै अठै हाजिर होया अर रचना सुणाई-

तन वीजूझल़ पल़ समल़, सिव कमल़ हंस.हूर।
ऐता दीन्हां बाहिरो, मोख न पावै सूर।।
जल़ थल़ महियल़ पसु पँखी, सूर घणा ई होय।
दाता मानव बाहिरो, सुण्य़ो न दीठो कोय।।

महाराजा रायसिंहजी इण रचना सूं इता रीझिया कै हाथोहाथ आपरै दीवाण करमचंद बच्छावत नैं आदेश दियो कै कवि नै करोड़ पसाव कियो जावै! पण दीवाण सोचिय़ो कै दरबार नै एहसास करायो जावै कै करोड़ रुपिया कोई बापड़ा नीं होवै ! जिको इणविध कवितावां माथै लुटाया जावै![…]

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जिणरा घोड़ा समंदां पीवै! उण आगे तल़ाब री कांई जनात?

महाराजा मानसिंह आमेर अर महाराणा प्रताप राजस्थान रै इतिहास में ई नीं अपितु भारतीय इतिहास में चावा। एक री खाग पातसाही स्थापित करण नै उठी तो दूजोड़ै री तरवार रजवट रै वट री रुखाल़ी सारू। दोनूं ई आपरी स्वामीभक्ति नै समर्पित। मानसिंह पातसाह नै स्वामी मानियो तो पातल इकलिंग रो दीवाण। वि.सं 1629 में डूंगरपुर नै धूंसतो कुंवर मानसिंह जद वि.सं 1630 रै आसाढ में उदयपुर ढूकियो तो उठै महाराणा प्रताप घणा कोड किया अर गोठ करी। भोजन री वेल़ा प्रताप पेट दूखण रो ओल़ावो लेय मानसिंह रै भेल़ा नीं बैठिया। आ बात मानसिंह नै अखरगी। उणां चढतां कैयो कै “हूं बेगो ई आवूंलो !! अर आवतो महाराणा रै पेट री ओखद ई लाऊंलो!!” महाराणा ई कैय दियो कै “जे थे थांरै फूंफै साथै आवोला! तो ऐ घोड़ा अर राजपूत अठै ईज स्वागत में तैयार मिलेला अर जे एकला आवोला तो मालपुरै तक साम्हा आय स्वागत करैला!”

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