गोविंद भज रै गीधिया

गोविंद भजरै गीधिया, जाय रह्य दिन जाण।
विसर मती तूं बैवणो, आगै वाट अजाण।।१
गोविंद भज रै गीधिया, दिन जोबन रा दोय।
आगै जासी एकलो, करै न साथो कोय।।२
गोविंद भज रै गीधिया, हिलै जितै पग हाथ।
वदन आवसी बूढपण, बोल सकै नी बात।।३
गोविंद भज रै गीधिया, अजै समझ नै आज।
काल काल में कालिया, कछु ना सरसी काज।।४[…]

» Read more

प्रस्तावना

राजस्थान री धरा सूरां पूरां री धरा। इण धरा रे माथे संत, सती, सूरमा, सुकवि अर साहुकारां री ठावकी परंपरा रेयी है। जग रे पांण राजस्थान आखै मुलक में मांण पावतो अर सुजस लेवतो रेयौ है। डॉ शक्तिदान जी कविया रे आखरां में-

संत, सती अर सूरमा, सुकवि साहूकार।
पांच रतन मरूप्रांत रा, सोभा सब संसार।।

इण मरू रतनां रे सुजस री सोरम संचरावण वाळौ अठेरो साहित पण सजोरो। शक्ति, भक्ति अर प्रकृति रो त्रिवेणी संगम। शक्ति जाति वीरता रो वरणाव वंदनीय तो प्रकृति सूं प्रेम पढण वाळै नें हेम करे जेडौ तो इणी गत भक्ति काव्य भक्त ह्रदय सूं निकळण बाळी गंगधार। इणी गंग धार में नहाय आपरे जीवण रो सुधार करण रा जतन करणिया अठे रा कवेसर पूरै वतन में निकेवळी ओळखाण राखै। भक्ति काव्य री परंपरा घणी जूनी अर जुगादि। राम भक्ति काव्य कृष्ण भक्ति काव्य रे साथै साथै अठै तीसरी भक्ति धारा ई संपोषित ह्वी अर समान वेग सूं चाली। अर बा है देवी भक्ति काव्य धारा।[…]

» Read more

एतबार रखिए अवस

एतबार रखिए अवस, इस बिन सब अंधार।
रिसते रिश्तों के लिए, अटल यही आधार।।

एतबार पे ही टिके, घर-परिवार-संसार।
एतबार से ही बहे, रिश्तों की रसधार।।

प्रीति परस्पर है वहीं, उर-पुर जंह पतियार।
प्रीति अगर परतीति बिन, केवल मिथ्याचार।।

मन की तनक न मानिए, मन नाहक मरवाय।
मन के शक की मार से, एतबार मर जाय।।[…]

» Read more

शहीद प्रभू सिंह राठौड़ नें श्रध्धांजली

अड़यो ओनाड़ वो आतंक सूं सिंवाड़ै
मौद सूं फूल नह कवच मायो।
अमर कर नाम अखियात इण इळा पर
अमरपुर सिधायो चंदजायो।।

प्रभू नै पियारो होयग्यो प्रभुसिंह
सोयग्यो चुका कर कर्ज सारो।
मौयग्यो मरद वो हिन्द री भोम नै
तनक में खोयग्यो चंद-तारो।।[…]

» Read more

साम्हो लड़्यो शैतान

बाणासर री वीर भू, मरटधारी नर मान।
दीठो जग सह दाखलो, सांप्रत जदु शैतान!!1
पाधर पग रोप्या सुपह, सज धर राखण शान।
चीन -हीण दल़ चींथिया, सज रण सूर शैतान।।2
आडा नित उतराध रै, जाडा धिन जदुरान।
एकर कथ पाछी अवस, साच करी शैतान!!3
आडा रह्या कपाट इम, अरि दल़ थँभण अचान।
पुनि कहावत रोप पग, सच रण रचि शैतान!!4[…]

» Read more

धिन्न विशणु प्रगट्यो धरा

धिन्न विशणु प्रगट्यो धरा, देव मिनख री देह।
जंभ नाम जग जाणियो, गुणधर लोहट गेह।।१
गौ भगती कीधी गहर, अहर निसा कर आप।
महर करी नैं मोचिया, पींपासर में पाप।।२
समराथल़ तपियो समथ, धोरै ऊजल़ धिन्न।
अन्न जल़ दियो अहर निस, भूखां नैं भगवन्न।।३
ग्यान नदी खल़की गहन, नित उपदेस नवल्ल।
पसरी चहुंदिस पहुम पर, गुरु जंभै री गल्ल।।४[…]

» Read more

किनियाणी करनल्ल!!

पाप हरण जग जणण पुनि, दरण दूठ दाकल्ल।
करण काज दुख काटणी, किनियाणी करनल्ल!!1
धिन जंगल राखी धरा, सात्रव सारा सल्ल।
मंगल़ करणी मावडी, किनियाणी करनल्ल!!2
अहर निसा रख महर इम, गहर रखी धर गल्ल।
आवै हेलै आध सूं, किनियाणी करनल्ल!!3
परी करै पातक सबै, हरि चढ आवै हल्ल।
धरि आपरां ध्यान धुर, किनियाणी करनल्ल!!4[…]

» Read more

नैणां उडगी नींद

लूट लूट घण लालची, भरिया भ्रष्ट भँडार।
लेखै धन लाली गयो, हिरदै हाहाकार!!1
काल़ी कर करतूतियां, धुर घर सँचियो धन्न।
सो तो हुयग्यो धूड़ सम, हुई सो जाणै मन्न!!2
वीसलदे ज्यूं बावल़ां, ऊंडो धरियो आथ।
खायो नकोज खरचियो, विटल़ां रखी न बात!!3
कण घण सँचिया कीड़ियां, खट चुग तीतर खाय।
पापी वाल़ो पेखलो, जर तो परल़ै जाय!!4[…]

» Read more

मुरधर नगर मथाण

पहर एक परभात रा, अमर रुकूंली आण।
पण पूरै परमेसरी, मुरधर नगर मथाण।।1
आई राखै आजतक, मह वचनां रो माण।
पहर राजै प्रभात री मुरधर नगर मथाण।।2
मोटो कीधो मेहजा, पात परै रख पाण।
इल़ साखी अमरेस री, मुरधर नगर मथाण।।3
चाखड़ियां निज चावसूं, जगतँब राखी जाण।
साजै ज्यांरी सेवना, मुरधर नगर मथाण।।4[…]

» Read more

सिंधु-सौरभ – डॉ. शक्तिदान कविया

।।दूहा।।

दीवै सूं थांनक दिपै, पुसप सुगंध प्रमाण।
मोती ज्यूं दरियाव मझ, सिंध में त्यूं सोढाण।।1।।

पाळ धरम रण पौढियौ, खळ दळ जूंझे ख़ास।
सिंध में दाहिरसेन रौ, अमर हुवौ इतिहास।।2।।

धरा सिंध अवतार धिन, लीनौ झूलेलाल ।
चावौ ‘चेटी चंड’ रौ, सुभ उच्छब हर साल।।3।।

सिंधी भगतां में सिरै, राजै टेऊराम।
प्रेम प्रकासी सत्पुरुष, निकस्यौ चहुं दिस नाम।।4।।

साहू जांमां जमर सज, दोखी कर दहवाट।
हड़वेची बेहूं हमें, धर पूजीजै धाट।।5।।[…]

» Read more
1 6 7 8 9 10 19