भूरजी बलजी के कवित्त – महाकवि हिंगऴाजदान जी कविया

चढ्यो जोधपुर तैं रसाला बीर चाला चहि,
तालन में चालत चंदोल जल तुच्छ पै।
चित्त में घमंड ब्रह्मंड लखैं चकरी सो,
अकरी अदा ते आये सेखाधर स्वुच्छ पै।
पोते राव वीर बनरावन पै दिट्ठि परी,
परी दिट्ठ हूरन की फूलन के गुच्छ पै।
डाकी डाकुवन कूं बकारे किधौं डारे कर,
बाघन के मुच्छ, पांव नागन के पुच्छ पै।।1।।[…]