असन्तां री आरसी – जनकवि ऊमरदान लाळस

।।दोहा।।
आवै मोड अपार रा, खावै बटिया खीर।
बाई कहै जिण बैन रा, वणैं जँवाई वीर।।1।।
गुरु गूंगा गैला गुरु, गुरु गिंडकां रा मेल।
रूंम रूंम में यूं रमें, ज्यूं जरबां में तेल।।2।।
।।छन्द – त्रोटक।।
सत बात कहै जग में सुकवी, कथ कूर कधैं ठग सो कुकवी।
सत कूर सनातन दोय सही, सत पन्थ बहे सो महन्त सही।।1।।[…]