तुम कहते संघर्ष कुछ नहीं

तुम कहते संघर्ष कुछ नहीं, वह मेरा जीवन अवलंबन !

जहाँ श्वास की हर सिहरन में, आहों के अम्बार सुलगते !
जहाँ प्राण की प्रति धड़कन में, उमस भरे अरमान बिलखते !
जहाँ लुटी हसरतें ह्रदय की, जीवन के मध्यान्ह प्रहर में !
जहाँ विकल मिट्टी का मानव, बिक जाता है पुतलीघर में !
भटक चले भावों के पंछी, भव रौरव में पथ बिसार कर !
जहाँ ज़िंदगी साँस ल़े रही महामृत्यु के विकट द्वार पर !

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मैं प्रलय वह्नि का वाहक हूँ !

मैं प्रलय वह्नि का वाहक हूँ !
मिट्टी के पुतले मानव का संसार मिटाने आया हूँ !

शोषित दल के उच्छवासों से, वह काँप रहा अवनी अम्बर !
उन अबलाओं की आहों से, जल रहा आज घर नगर-नगर !
जल रहे आज पापों के पर, है फूट रहा भयकारी स्वर !
इस महा-मरण की वेला में त्यौहार मनाने आया हूँ !
मिट्टी के पुतले मानव का संसार मिटाने आया हूँ !

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मैं किसी आकुल ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूंगा !

मैं किसी आकुल ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूंगा !

सिकुड़ती परछाइयाँ, धूमिल-मलिन गोधूलि-बेला !
डगर पर भयभीत पग धर चल रहा हूँ मैं अकेला !
ज़िंदगी की साँझ में मधु-दिवस का यह गान कैसा ?
मोह-बंधन-मुक्त मन पर स्नेह-तंतु-वितान कैसा ?

मरण-बेला में मिलन-संगीत लेकर क्या करूँगा ?
मैं किसी आकुल-ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूँगा ![…]

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आज होली जल रही है !

राज्य-लिप्सा के नशे में, विहँसता है आज दानव !
दासता के पात में जो, पिस रहा है आज मानव !
आज उसकी आह से धन की हवेली हिल रही है !
आज होली जल रही है ![…]

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उण अनमी अवनाड़ां रा सीस!!

मन री बातां करणियां रै
कांई नीं है कोई
ऐड़ी रीत,
जिणसूं ऊग जावै
कठै ई ऊंडै काल़जै
प्रीत रा पनूरा!!
कांई नीं है
वा कनै
आंशुवां रो कोई समंदर!
छौ, कोई बात नी!
संवेदनावां तो
शायद होवैली जीवती![…]

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माणस अर माछर

ओ छोटो सो जीव रंगीलो, बात होळै सी कह्वै कान में।
करै कुचरणी, नींद उड़ावै, रक्तपान नै धार ध्यान में।।
ऊमस, गरमी हुवो कितीही, भांवै सांस निकाळै आवै।
आँख लागतां पाण जुझारू, सागण जूनी तान सुणावै।।
कड़कड़ ठंड दांत कड़कावै, भांवै बरसै मूसळाधार।
ओ नीं सोवै नीं सोवण दे, ओ छोटो मोटो सरदार।।[…]

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डिंगल फेशन – कवि भंवरदान गढवी “मधुकर”

इण पढ्यो लिख्यो री पंगत में, जुनोड़ा आखर कुण जांणे।
नखरा कर नये जमांने रा, तिरछी हद रागां लो तांणे।।
जा जोर तमासा कर जितरा, जोवे जनता मन जोकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।१

ऊचे शब्दां रा अरथ करे, वो कूंत करणिया रैया कठे।
जुनी भाषा ने जांणणिया, अब देख किता सच कया अठे।।
तड़का बाजे लै ताड़ी रा, हाका कर लड़का होकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।२[…]

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गूदड़िया छोड अबै तो गैला

।।गीत-वेलियो।।
गूदड़िया छोड अबै तो गैला,
लोयण धार जरा सी लाज।
ऊगो अरक ऊंग तज आल़स,
कर रै चारण घर रो काज।।१

पूरी रात गमाई पीतां,
चूस्या गूडल़ घणेरै चाव।
पड़ियो मंझ रातरो प्रीतम,
दिनकर अब तो दियो दिठाव।।२[…]

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कुबद्ध कमाई छोड बावल़ा!

कुबद्ध कमाई छोड बावल़ा!
मतकर भ्रष्टां होड बावल़ा!!
च्यार दिनां री देख चांदणी!
फैंगर मतकर कोड बावल़ा!!

लुकै नहीं अपराध लाखविध!
कूटीजै फिर भोड बावल़ा!!
लोकतंत्र में बिनां दावणै,
लेय तपड़का तोड बावल़ा![…]

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जनतंत्र तो झाड़ छिंयाड़ी

जनतंत्र तो झाड़ छिंयाड़ी!
खावै गोधा हरियल़ बाड़ी!
गादी ऊपर तँत्र हावी!
जन री सांप्रत माड़ी भावी!
जन रै आडी जड़ी किंवाड़ी!
तंत्र अपणो बड़ो खिलाड़ी!
खादी कातण गांधी पचियो!
बदल़ै में अपजस ई बचियो!
चसमो जाणै कठै गम्यो है!
बिनां डांगड़ी डैण थम्यो है![…]

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