देखो – गजल

बातां ज्यांरी स्याणी देखो।
भरी धूर्तता वाणी देखो!!
दूजां दुख में होय दूबल़ा।
कैवै काग कहाणी देखो!!
जनता नैं तो कोई खूंटलै।
समझ गाडरी लाणी देखो!!
ठग्गां घर नीं रीत दैण री।
वुस्त बठै तो जाणी देखो!!

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सखी! अमीणो साहिबो

मित्रों जब भी कविता की बात होती है तो एक बात जरूर कहना चाहता हूं कि कालजयी कविता वह होती है जो आज भी हमैं नित्य नवीन लगे।
बरसों पहले जोधपुर नरेश महाराजा मानसिंह के दरबारी कविराजा बांकीदास जी आसिया ने “सूर छत्तीसी” लिखी थी। वीर रस से लबरेज इन दोहों में कवि ने एक अमर पंक्ति का प्रयोग कर सात आठ दोहै रचे थे। पंक्ति थी “सखी! अमीणो साहिबो”
यह पंक्ति इतनी शानदार है कि यह आज के कवियों को भी प्रेरणा देती है। इसी पंक्ति से प्रेरणा लेकर आज के चारण कवियों ने कुछ दोहों के सृजन का प्रयास किया है। तो प्रस्तुत है बांकीदासजी आसिया के दोहों के साथ साथ कवि नरपत आसिया “वैतालिक” और गिरधरदान जी रतनू “दासोडी” द्वारा लिखे दोहै।[…]

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🌷रामजी – गजल🌷

मत दे इतरा धता रामजी!
मिनख मिल़ै तो बता रामजी!!
लोकतंत्र में लूखो, भूखो!
जन तो खावै खता रामजी!!
मिनख !, मिनख नै जाति पूछै!
जूत चेपनै सता रामजी!!
वोट मांगिया पैर पकड़नै!
अब तो मालक छता रामजी!![…]

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डग-डग माथै खौफ डगर में

डग-डग माथै खौफ डगर में,
नागां रो उतपात नगर में।
जिणनै भूल चैन सूं जील्यूं,
(क्यूँ) बात बा ही पूछै बर-बर में।
स्याळ्यां परख्यो जद सूरापण,
नीलगाय रो नाम निडर में।
श्रद्धा, स्नेह न भाव चावना,
कोरी फुलमाळावां कर में।

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चारण ने हमेशा उत्कृष्ट के अभिनंदन एवं निकृष्ट के निंदन का अहम कार्य किया है

कल की अशोभनीय खबर का खेद प्रकट करते हुए आज राजस्थान पत्रिका ने लिखा है कि उन्होंने ‘ऐसा मुहावरे के तौर’ पर लिखा है। जहां तक हमारी जानकारी है हिंदी शब्दकोश या मुहावरा-लोकोक्तिपरक कोशों में ऐसा कोई मुहावरा नहीं जो कल के समाचार में लिखे मंतव्य को बयां करता हो। और जहां तक जातिसूचक मुहावरों या लोकोक्तियों की बात है तो बहुत से ऐसे मुहावरे हो सकते हैं लेकिन क्या किसी मुहावरे को मनचाहे ढंग से कहीं भी प्रयुक्त करना सही है। यदि ऐसा है तो मैं ऐसे अनेक शब्दों की जानकारी राजस्थान पत्रिका एवं लेखक मि. वर्मा को उपलब्ध […]

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पहले जान लें कि चारण क्या है, फिर टिप्पणी करें

राजस्थान पत्रिका जैसे राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध समाचारपत्र में ‘तथाकथित रूप से  अतिख्याति प्राप्त पत्रकार’ महोदय श्री आनन्द स्वरूप वर्मा की ‘चारण’ समाज के प्रति अभद्र टिप्पणी को पढ़कर अत्यंत वेदना हुई।
आदरणीय वर्मा साहब!  वैसे तो किसी जाति या परंपरा पर बिना सोचे समझे टीका-टिप्पणी करने वाले लोग किसी समाज के प्रतिनिधि नहीं हो सकते लेकिन फिर भी आपसे यह जानने की इच्छा जरूर है कि चारण तो जैसे थे या हैं, वैसे ठीक हैं पर आपकी जाति, जो भी है, उसमें कितने तथा किस तरह के साहित्यकार एवं कलाकार रहे हैं, जरा उनका परिचय करवाइए ताकि साहित्य के इतिहासों से‘चारण-साहित्य’, चारण-काल, चारण-युग, चारण-प्रवृत्तियां आदि के स्थान पर आप द्वारा निर्दिष्ट नाम लिखकर समाज का उचित मार्गदर्शन करें। उनके साहित्य की उपादेयता एवं उल्लेखनीय प्रवृत्तियों से भी अवगत करवाएं। इससे हम जैसे लोगों को यह फायदा होगा कि हम भी कहीं सही मायने में कलाकार एवं साहित्यकार बन सकें।

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बिन बेटी सब सून

यह संसार सामाजिक संबंधों का जाल है, जिसमें हर व्यक्ति एक-दूसरे से किसी न किसी रिश्ते से जुड़ा हुआ है। अरस्तु ने तो यहां तक लिखा है कि बिना समाज के रहने वाला व्यक्ति या तो पागल है या फिर पशु है यानी कि व्यक्ति के लिए समाज का होना अत्यावशक है। समाज की एक सशक्त कड़ी है – परिवार। परिवार ही वह आधारशिला है, जहां रिश्तों का ताना-बाना बुना जाता है, रिश्तों की फसलों को सींचने तथा सहेजने-संवारने का काम यहीं से होता है। परिवार रूपी बगिया में खिलने वाला हर पुष्प रिश्तों के मिठास का जल पाकर सुरभित […]

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जद भोर भयंकर भूंडी है

जद भोर भयंकर भूंडी है
अर सांझ रो नाम लियां ही डरां।
इसड़ै आं सूरज चंदां रो
किम छंदां में गुणगान करां।।
कळियां पर काळी निजरां है
सुमनां री सौरभ सहमी है।
उर मांय उदासी उपवन रै
जालिम भंवरा बेरहमी है।। […]

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माण मिटाणा मीत

बाजै देखो वायरो, लाज उडावण लीक।
रलकीज्या ऐ रेत में, ठाठ वडां रा ठीक।।1
मरट वडां रो मेटियो, समै किया इकसार।
भरम अबै तो भायलां, लेस न रैयो लिगार।।2
कठै गयो वो कायदो, कठै गई वा काण।
फट्ट मिल़ै कीं फायदो, वीरां! पड़गी बाण।।3 […]

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मोटी मरजादण मरुभाषा

सतियां रै सत री गाथावां
पतियां रै पत री घण बातां।
जतियां रै जंगी जूझारू
जीवण री जूनी अखियातां।।
संतां री वाणी सीख भरी
सूरां रा समर अनै साका।
वीरां वरदाई बड़भागण
मोटी मरजादण मरुभाषा।। […]

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