आउवा सत्याग्रह – वंश भास्कर

उमामूर्ति थप्पी सु पूजि अब, सप्तम दिन बित्तत जिम्मे सब।
अंबा की प्रतिमा के अग्गैं, ज्वलन हविस्य धूप जहं जग्गैं।।
बाद्य पटह दुन्दुभि मुख बग्गैं, लक्खन बिध पद्यन नुति लग्गैं।
भीरु सुनत सिंधुन स्वर भग्गैं, मरुप उदय पीठहु डगमग्गैं।।
अस्त्रन मैं हु उमा आवाहन, करिकरि कढ्ढि जजन लग्गे जन।
बैठैं सबन निसा सु बिहाई, इम इच्छित बेला ढिग आई।।
अर्धउदित रवि जानि तजन असु, सिवगृह सिर थप्प्यो गोविन्द सु।
खिल रहि मैं न लखो इतनों खय, इम गल छेदि गिर्यो सु इनोदय।।
पिक्खि गिरत गोबिंदहि दृढपन, तित तित मरन लगे जाचक जन।
वह खाटिक दुल्लह बिच आयो, बप्प तनय जुग मरन बतायो।।