इणनैं ईज कैता रजपूती

हींणप नहीं लाता संकट में, मन में हद धरता मजबूती।
सिर पड़ियां सूरा रण लड़ता, इणनैं ईज कैता रजपूती।।
पचिया बै देखो दिन रातां, भारत रो गौरव मंडण नैं।
परजा हित रक्षण रण बुवा, बै आततायां नैं डंडण नैं।
झुकिया नीं माथो दे दीनो, पण आंण बांण नैं राखी ही।
रगत सटै इज्जत बा देखो, मा बैनां री राखी ही।
महारिसी त्याग री मूरत, छिड़ियां बै विकराल़ होया।

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खूबड़ी री ख्यात

।।छंद गयामालती।।
मात धिन घर जनम माधै, हरस तन हिंगल़ाज रो।
इल़ साख सऊवां करण ऊजल़ रूप कूबड़ राजरो।
हेतवां हांण विघनांण हारण तांण होफर ताकड़ी।
जय मात खूबड़ जगत जाहर सगत वाहर सरवड़ी।।6 […]

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हनुमान वंदना – कानदासजी मेहडु  (गाम- सामरखा) 

॥छंद त्रिभंगी॥
मन हेत धरंगी, हरस उमंगी, प्रेम तुरंगी, परसंगी।
सुग्रीव सथंगी, प्रेम पथंगी, शाम शोरंगी, करसंगी।
दसकंध दुरंगी, झुंबै झंगी, भड राखस जड थड भंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥1॥[…]

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मां मोंगल मछराळ रा दोहा – मीठा मीर डभाल

विनय सुणन्तां वाहरू, तैयार हुय तत्काळ।।
छिन्न में बंध छुड़ावणी, मां मोंगल मछराळ।।१।।
भुज कर लम्बा भगवती, टेम विघन री टाळ।।
महर करण तुंही मुदै, मां मोंगल मछराळ।।२।।
देवी तुझ दरबार में नमै कैक नरपाळ।।
आशा पूरण अंबिका, मां मोंगल मछराळ।।३।।

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सेवामें श्रीमानजी, एक शिकायत ऐह

कवि गिरधर दान रतनू “दासोडी” द्वारा “काव्य-कलरव” अर “डिंगळ री डणकार” ग्रुप रा कवियों ने निश्क्रिय रेवण सूं दियौडौ एक ओळभो देती कलरव अर डिंगल़ री डणकार रा मुख्य संरक्षक / संरक्षक आदरणीय भूदेवसा आढा अर चंदनसा नैं एक अरजी-
सेवामें श्रीमानजी, एक शिकायत ऐह।
जोगां किमकर झालियो, अपणो अपणो गेह?
सही सँरक्षक सांभल़ो, वडपण मनां विचार।
भागल मन कवियां भयो, डिंगल़ री डणकार।।1
वय में आढो वृद्ध है, इणकज करै अराम।
चंदन थारी चतुरता, किणदिन आसी काम।।2
पूछै कारण प्रेम सूं, नेही काढ निदान।
जमी राखजै जाजमां, चोगी चंदनदान।।3

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माताजी का छंद – कवि जय सिंह जी सिंढायच (मंदा)

!!छन्द: अर्ध-नाराच!!
नमामी मेह नन्दिनी! नमामी विश्व वन्दिनी!!
भुजा विशाल धारणी! दयाल दास तारणी!!1!!
क्रपानिधे क्रपालकम्! दयाल बाल पालकम्!!
विशाल बिन्द भालकम्! नयन्न नैह न्हालकम्!!2!!
न जाने भेद नारदम्! सदा जपन्त शारदम्!!
नमामि भक्त वच्छलम्! अनाद विर्द उज्ज्वलम्!!3!!

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लहू से लिखने को मजबूर

पत्ती ने जिस दिन पौधे की जड़ को जड़ कह कर धमकाया।
फूलों ने खुद को पौधे का भाग्य विधाता बतलाया।
इठलाकर निज रूपरंग पर फुनगी ने डाली को टोका।
लहरों ने सागर से मिलने को आतुर नदिया को रोका।
सागर से यूं नदिया जब-जब, सहमी-सहमी दूर हुई है।
तब-तब मेरी कलम लहू से लिखने को मजबूर हुई है।। 01।।

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सैणां इम काम सबां सूं सोरो

।।गीत जांगड़ो।।
सैणां इम काम सबां सूं सोरो, झांसां भासण झाड़ो।
भोल़ां नुं भटकाय भावां में, कमतर सहल कबाड़ो।।1
दो उपदेस दूजां नैं दाटक, सरसज बात सुहाणी।
मनमाफक बेवो खुद मारग, केवो काग कहाणी।।2 […]

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साँवरियौ रे लोल !

🌸(दोहा -गीत)🌸

नेह झरै नित नैण में, पलकां वाळी पोळ।
कहौ सखी बा कूण है?, सांवरियौ रे लोल।।१

आली !लाली आभ भर, कंकू केसर ढोळ।
आवै मन रे आंगणै, साँवरियौ रे लोल।।२

मुखडौ टुकडौ चांद रो, पूनम रे ज्यूं गोळ।
निरखण दीजै नैण सूं, सांवरियौ रे लोल।।३

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