गीत भेरू जी रो – जगमाल सिंह “ज्वाला”
।।गीत सावझड़ो।।
मिणधर हाजर होय मुछाळा।
पत राखण आवे प्रतपाळा।
चंडी संग सदा चिर ताळा।
गजब दौड़ जे गोरा काळा।1।
श्वान सवारी आसन ढाळो।
टेरु तमे विघन मोय टाळो।
रेवे मात रु सदा रुखा ळो।
भगत पुकारे सामो भाळो।2।
घूँघर पगों सदा घम कावे।
गजब खाजरू मद गटकावे।
भोग कळेजी शोणित भावे।
झपट देय दाणव झटकावे।3
चंडी संग सदा चिरताळो।
आगे वान ज रहे उता ळो।
पत राखण पोचे झट पाळो।
लाजे नही कबु लटी याळो।4
जगमाल कहे दोनु कर जोड़े।
देवत हाक आव जे दो ड़े।
तात पूत नाता मत तोड़े।
मोमा मेर मुख मत मोड़े।5।
~~जगमाल सिंह “ज्वाला”