सूर्य वंदना के भाव के – काळिया रा सोरठा
🌹सूर्य वंदना के भाव के🌹
वंदन कर विख्यात,जगत तात जगदीस ने।
प्हेली ऊठर प्रात,काछप सुत भज काळिया।111
अवनी भरण उजास,नह चूके नित ऊगणौ।
सदा- रथिन् सपतास,काछप सुत भज काळिया॥112
भास्कर आदित भांण, मित्र मिहिर मार्तंड वळ।
करवा जग कल्यांण,कायम ऊगै काळिया॥113
दिनकर देव दिनेश, किरणमाली अंशु-सहस।
वरदानी विश्वेश,काछप सुत भज काळिया॥114
रंक हुवै या राव, जग रा हर इक जीव पर।
करै किरण छिडकाव,काछप सुत नित काळिया॥115
देखे हेकण दीठ,पापी धरमी पुहमि रा।
प्रतख जगत वड पीठ,काछप सुत नित काळिया॥116
जात धरम अर जीव, लेश भेद चित ना लहै।
समता रखै सदीव,काछप सुत नित काळिया॥117
ऋतु-करता, दिनराज,लाज रखै दुःख भाज दे।
सदा भरै सुख साज,काज आंपणै काळिया॥118
समदरसी हिक सूर,नर नारी चित भेद नँह।
नित वरसावै नूर,काछप सुत बस काळिया॥119
ज्योतिष ,जगत- जहाज, गतिमय ज्योतिर्मय गुणी।
विचरण रथ सत-वाज, काछप सुत नित काळिया॥120
~~वैतालिक