कवि देवीदान देथा बाबिया (कच्छ) का मरसिया – कवि जाडेजा प्रताप सिंह जी

।।छंद – त्रिभंगी।।
सरदं ऋतु आई, छिति त्रय छाई, घन गहराई, जरठाई।
नवकुंज फुलाई, नव निशि पाई, रास रचाई, जगमाई।
दिप माल बनाई, साज सजाई, जन सुखदाई, संसारा।
देवा!दिलदारा, इण रुत न्यारा, दरस तिहारा, दे प्यारा।।१[…]

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धुर पैंड़ न हालै माथौ धूंणे (गीत घोड़ा रैं ओळभा रौ) – ओपा जी आढ़ा

देवगढ़ के कुंवर राघवदेव चूंडावत ने ओपा आढ़ा को एक घोड़ा उपहार में दिया। जब वह इसको लेकर रवाना हुआ तो घोड़े ने अपने सही रंग बता दिये। प्रस्तुत गीत में घोड़े के सभी अवगुण बताते हुए राघवदेव को कड़ा उपालम्भ दिया हैं।

धुर पैंड़ न हालै माथौ धूंणे,
हाकूं कैण दिसा हे राव।
दीधौ सौ दीठो राघवदा,
पाछो लै तो लाखपसाव।।१[…]

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ચારણ મહાત્મા પિંગળશી પરબતજી પાયક (चारण महात्मा पिंगलसी परबत जी पायक)

ચારણનો શિરમોર હતો, લાખેણો લાયક,
વકતા ને વિદ્વાન, પ્રખર પિંગળશી પાયક.

આઈશ્રી સોનલમાના અંતેવાસી, સમાજને જાગૃત કરનાર, યુગપુરુષ સ્વશ્રી પીંગળશીભાઈ પાયક સાચા અર્થમાં ચારણ ઋષિ હતા. સ્વહિત કે પરિવારની ખેવના કર્યા વિના સમગ્ર જીવન સમાજ સેવામાં અર્પણ કરી સમગ્ર ચારણ સમાજને ઊજળો બનાવ્યો.[…]

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सुबोध बावनी – कवि देवीदान देथा (बाबीया – कच्छ)

[…]वेद सार खंड ससि, वाम अंक गति मिति,
नौमि गुरू शुक्ल मधु मास के समास ही।
देथा मारू चारन जो भव्य है कहाति जाति,
देस कच्छ स्वच्छ ग्राम बाबिया निवास ही।
देवीदान दीनो “देवी दास” ही प्रकास कीन्हौ,
नवीनो नगीनो ग्रंथ बावनी विलास ही।
सुबुधि उपावनी सो, ताप को नसावनी है,
भावनी सुजान को, बढावनी हुलास की।।५४।।[…]

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शेर तथा सुअर की लड़ाई का वर्णन – हिंगलाजदान जी कविया

।।छंद – सारंग।।
डाकी इसा बोलियो बैण डाढाळ।
कंठीरणी छेड़ियो कुंजरां काळ।।
जाग्यो महाबीर कंठीर जाजुल्य।
ताळी खुली मुण्डमाळी तणी तुल्य।।
घ्रोणी लखे सींह नूं गाजियो घोर।
जारै किसूं केहरी ओर रो जोर।।

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गुरु वंदना – देवी दान देथा (बाबिया कच्छ)

।।छंद त्रिभंगी।।
श्री सदगुरु देवा, अलख अभेवा, रहित अवेवा, अधिकारी।
गावत श्रुति संता, अमल अनंता, सबगुनवंता, दुखहारी।
तजि के अभिमाना, धरही ध्याना, कोउ सयाना, रतिधारी।
जय इश्वर रामं, ब्रह्म विरामं, अति अभिरामं, सुखकारी।।१[…]

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गये बिसारी गिरधारी – त्रिभंगी छंद – स्व. देवीदान देथा (बाबीया कच्छ)

।।छंद त्रिभंगी।।
ब्रज की सब बाला, रूप रसाला, बहुत बिहाला, बिन बाला,
जागी तन ज्वाला, बिपत बिसाला, दिन दयाला, नंद लाला।
आए नहि आला, कृष्ण कृपाला, बंसीवाला, बनवारी।
कान्हड़ सुखकारी, मित्र मुरारी, गये बिसारी, गिरधारी।।१[…]

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आवड़ वंदना – जय सिंह सिंढायच मण्डा (राजसमन्द)

।।छंद रोमकंद।।
कलिकाल महाविकराल़ हल़ाहल़,धीर कुजोर बढै जवनां।
भव भार उतारण दास उबारण, कारण याद करे वचना।
बिसरी नहि अंब दयाल़ अजू, गण चारण ने वर आप दयो।
जय मावड़ आवड़ बीसभुजा बड, लाखिय लोवड़वाल़ जयो।
जिय माड धिराणिय माय जयो।।१[…]

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श्री डूंगरराय स्तवन – कवि चाळकदान जी रतनू (मोड़ी)

।।छन्द – नाराच।।
अच्छे रचे जु आवड़ा, अस्थान वे अखण्डळा।
नचे जचे सुनाचता, मचे सुरा समण्डळा।
जगत्त मात जां जुरीय, जोगणी सुजोगरी।
रमंत माढ़राय माय, डूंग्रराय डोकरी।
जी डूंगरेच डोकरी।।

नभस्सु माय न्रम्मला, सुभस्सु जाम सत्तमी।
रमत्त रास ईसरी, जमत्त मात जक्तमी।
घमंक पाय घूघरा, धराधर धूजै धरी।
रमंत……………………………।।[…]

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पींगल़शी भाई मेघाणंदभाई गढवी (लीला) – कंठ कहेणी अने कलम नो त्रिवेणी संगम।

પીંગળશીભાઇ.મેધાણંદભાઇ.ગઢવી (લીલા) – કંઠ, કહેણી અને કલમો ત્રિવેણી સંગમ

પીંગળશીભાઈ ગઢવી સુપ્રસિદ્ધ કવિ, લેખક અને કલાકાર – કંઠ, કહેણી અને કલમ જેનામાં ત્રિવેણી સંગમ થઈને વહે છે, જેણે પંદર-સોગ કવિતા વાર્તાના ગ્રંથોની ગુજરાતને ભેટ આપી છે તેવા શ્રી પીંગળશીભાઈનો જન્મ વિ. સં. ૧૯૭૦ અને ઇ. સ. ૧૯૧૪ના રોજ જુલાઈ માસમાં પોરબંદર પાસેના છત્રાવા ગાર્મ ચારણ કુળની લીલા શાખામાં થયો. પિતાનું નામ મેધાણંદ, અને માતાનું નામ શેણબાઈમાં, તેમનાં લગ્નના બાલુભાઈ ઉઢાસનાં સુપુત્રી જીબાબેન સાથે થયાં.મેધાણંદ ગઢવીના પનોતા અને પ્રતિભાશાળી બે પુત્રો જેમણે પિતાનો લોકસાહિત્યનો વારસો જાળવ્યો, એટલું જ નહિ પણ દીપાવ્યો છે. આ બે પુત્રોમાં મોટા સ્વ. મેરૂભા ગઢવી અને નાના પીંગળશીભાઈ ગઢવી.

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