महात्मा ईसरदासजी री महिमा रा सोरठा – शुभकरण जी देवऴ (कूंपड़ास)

मालाणी धर मांयने, भल सांसण भाद्रेस।
जिथ सूरै घर जनमियो, (उण) ईसर ने आदेस।।

ज्वाला गिरी जोगी जबर, गिर हिम निज तन गाऴ।
सुत जनम्यौ सूरा घरै, भगतां रो भूपाऴ।।

कज हरि तो हरिरस कथ्यौ, देवी कज देवियाण।
सुंण कुंडऴियां संचरै, सूरापण सुभियांण।।

मिस निंदा अस्तुति मुणी, वऴ कथ गुण वैराट।
ईसर इण विध अलखरा, ठाह्या भगती ठाट।।[…]

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अम्बिका इन्द्रबाई – गौरीदान जी कविया

गौरीदान जी कविया गांव कुम्हारिया रा वासी माँ करणी जी रा मोटा भगत अटूट आस्थावान विचारधार अर दृढ धारणा रा धणी माँ भगवती भव भय भंजनी रा भजन मे मगन रहिया अर सदा सर्वदा माँ री शरणागत सेवा साधना मे जीवन समर्पित राखियो, आज री चितारणी में गौरीदान रो भुजंगप्रयात छंद।

।।छंद भुजंगप्रयात।।

क्रमं युक्त दोशी कलि काल आयो।
ज्वितं पात यूथं अनाचार छायो।
धरा भार उतार वा मात ध्याई।
बिराजै तुहीं अम्बिका इन्द्रबाई।।[…]

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वीर प्रसूता चारणी

….कहते हुये उनकी आँखें भर आयी, सुनते हुये मेरी भी। फिर कहा, “तुम जानती हो, उसे वीर चक्र मिला। उसने अपना वादा तब भी निभाया। जिस सम्मान का हकदार वो था, मेरे ही हाथों से लिया गया। पीएम के हाथों मेडल लेते हुये मुझे गहरा खालीपन भी दिखता तो गर्व कर जाती। पर मैं क्या करूँ बेटा …तब मुझे देपाल का चेहरा दिख गया …याद आ गया ..सब सूना था ….सब कुछ ही खाली ..। शहीद होकर भी मेरी जिम्मेदारी उम्रभर की उसने ही ले रखी है। पेंशन के पैसे जब भी हाथ में उठाती हूँ, तब-तब गला रुँध जाता है। […]

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चिड़कली

तूं तो भोल़ी भाऴ चिड़कली।
दुनिया गूंथै जाऴ चिड़कली।।

धेख धार धूतारा घूमै।
आल़ै आल़ै आऴ चिड़कली।।

मारग जाणो मारग आणो
हुयगी अब तो गाऴ चिड़कली।।

बुत्ता दे बस्ती भरमावै।
वै ई पैरै माऴ चिड़कली।।[…]

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राजस्थानी भाषा

संसार की किसी भी भाषा की समृद्धता उसके शब्दकोष और अधिकाधिक संख्या मे पर्यायवाची शब्दो का होना ही उसकी प्रामाणिकता का पुष्ट प्रमाण होता है। राजस्थानी भाषा का शब्दकोष संसार की सभी भाषाओं से बड़ा व समृद्धशाली बताया जाता है। राजस्थानी में ऐक ऐक शब्दो के अनेकत्तम पर्यायवाची शब्द पाये जाते है, उदाहरण स्वरूप कुछेक बानगी आप के अवलोकनार्थ सेवा में प्रस्तुत है।

।।छप्पय।।

।।ऊंट के पर्यायवाची।।

गिडंग ऊंट गघराव जमीकरवत जाखोड़ो।
फीणानांखतो फबत प्रचंड पांगऴ लोहतोड़ो।
अणियाऴा उमदा आखांरातंबर आछी।
पीडाढाऴ प्रचंड करह जोड़रा काछी।[…]

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भूरजी, बलजी पर बड़ौ साणौर गीत – महाकवि हिंगलाजदानजी कविया

लखे घोर घमसांण ऊडांण ग्रीधण लहै,
अपछरां पांण बरमाऴ ओपै।
ऊगतो विचारै भांण आरंभ इसा,
किसा कुऴ भांण रै सीस कोपै।।

बाट उप्रवाट बहता थका बाहरू,
उरस अड़ि अबीढै घाट आया।
दाटणा जिका कुज्रबाट दीपक दहूं,
थाटणा थाट मुह मेऴ थाया।।[…]

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चारणां कियौ नित अहरनिस चांनणौ – महेंद्रसिंह सिसोदिया ‘छायण’

।।दूहौ।।
सीर सनातन सांपरत, राखण रजवट रीत।
अमर सदा इळ ऊपरां, पातां हंदी प्रीत।।

।।गीत – प्रहास साणौर।।
पलटियौ समै पण छत्रियां मती पलटजौ,
राखजौ ऊजल़ी सदा रीती।
संबंधां तणी आ देवजौ सीख कै,
पुरांणी हुवै नह जुड़ी प्रीती।।[…]

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श्री नरसिँह अवतार की स्तुति – कवि श्री रविराज सिंहढायच (मुळी सोराष्ट्र)

।।छंद – रेणकी।।
सुनियत अत भ्रमत नमत मन हरिसन, भगत मुगत भगवत भजनं,
सुरपत पत महत रहत रत समरत, सत द्रढ व्रत गत मत सजनं,
धत लखत रखत जगपत उर धारण, सुरत पुकारण श्रवण सुणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिँघ बणै,
जिय बिकट रूप नरसिंघ बणै।।1।।[…]

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मां सूं अरदास – जी. डी. बारहठ(रामपुरिया)

।।छंद-मोतीदाम।।

रटूं दिन रात जपूं तुझ जाप,
अरूं कुण नाद सुणै बिन आप।
नहीं कछु हाथ करै किह जीव,
सजीव सजीव सजीव सजीव।।१।।

लियां तुझ नाम मिटै सब पीर,
पड़ी मझ नाव लगै झट तीर।
तरै तरणीह कियां तुझ याद,
मृजाद मृजाद मृजाद मृजाद।।२।।[…]

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