लिछमी – कवि रेवतदान चारण

ओढ्यां जा चीर गरीबां रा, धनिकां रौ हियौ रिझाती जा।
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा !

हळ बीज्यौ सींच्यौ लोई सूं तिल तिल करसौ छीज्यौ हौ।
ऊंनै बळबळतै तावड़ियै, कळकळतौ ऊभौ सीझ्यौ हौ।
कुण जांणै कितरा दुख झेल्या, मर खपनै कीनी रखवाळी।
कांटां-भुट्टां में दिन काढ्या, फूलां ज्यूं लिछमी नै पाळी।
पण बणठण चढगी गढ-कोटां, नखराळी छिण में छोड साथ।
जद पूछ्यौ कारण जावण रौ, हंस मारी बैरण अेक लात।
अधमरियां प्रांण मती तड़फा, सूळी पर सेज चढाती जा।
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा ![…]

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चारणों की उत्पत्ति – ठा. कृष्ण सिंह बारहट

चारणों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में ठा. कृष्ण सिंह बारहट ने अपने खोज ग्रन्थ “चारण कुल प्रकाश” में विस्तार से प्रामाणिक सामग्री के साथ लिखा है। उसी से उद्धृत कुछ प्रमाणों को यहाँ बताया जा रहा है। ये तथ्य हमारे प्राचीनतम ग्रंथों श्रीमद्भागवत्, वाल्मीकि-रामायण तथा महाभारत से लिए गए हैं।

चारणों की उत्पत्ति सृष्टि-श्रजन काल से है और उनकी उत्पत्ति देवताओं में हुई है, जिसका प्रमाण श्रीमद्भागवत् का दिया जाता है कि नारद मुनि को ब्रह्मा सृष्टि क्रम बताते हैं, वहां के द्वितीय-स्कंध के छटे अध्याय के बारह से तेरह तक के दो श्लोक नीचे लिखते हैं :-

अहं भवान् भवश्चैव त मुनयोऽग्रजाः।।
सुरासुरनरा नागाः खगा मृगसरीसृपाः।।१२।।
गंधर्वाप्सरसो यक्षा रक्षोभूतगणोरगाः।।
पशवः पितरः सिद्धा विद्याधरश्च चारण द्रुमाः।।१३।।

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पटवारी री पुकार – कवि स्व. भंवर दान जी, झणकली

14 बरस पढ़ाई चाली खर्ची रकम करारी।
भाभोसा परसादी बांटे बण्यो पूत पटवारी।
पहली ठकराहत पटवारी, दूजी थानेदारी रे।
कोण सुणै पटवारी थारी नोकरड़ी सरकारी रे।।1।।

दे ट्रेनिंग कयो हल्का माँ जाइन करो ड्यूटी जाके।
तीजे दिन तेहसीलदार सा इंस्पेक्सन करसी आके।
पैदल रस्ता हालत खस्ता ऊपर बस्ता भारी रे।
कोण सुणै पटवारी थारी नोकरड़ी सरकारी रे।।2।।[…]

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श्री आवड़ माता(तनोट माता) के आशीर्वाद से भारतीय सेना की तनोट के युद्ध में चमत्कारी विजय

भगवती श्री आवड़ माता ने वि.स. 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन चारण मामड़जी के घर अवतार लेकर अपने जीवनकाल में कई चमत्कार कर दिखाये थे जिसकी एक विस्तृत श्रृंखला हैं। श्री आवड़ माता के चमत्कारों के कारण कवियों ने अपनी साहित्यिक रचनाओं में श्री आवड़ माता को 52 नामों से सम्बोधित किया जिसके कारण से भगवती श्री आवड़ माता 52 नामों से विश्वप्रसिद्ध हुए।

श्री आवड़ माता के वर्तमान परिपेक्ष्य में चमत्कारों का वर्णन करें तो हमें 20 वीं सदी के सम्पूर्ण विश्व की सर्वाधिक चमत्कारी घटना का स्मरण आ जाता है। ये घटना भारत पाकिस्तान के मध्य लड़े गये तनोट युद्ध (1965 ई) की हैं।[…]

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श्री आवड़ माता द्वारा हाकरा दरियाव (नदी) का शोषण करना – डॉ. नरेन्द्र सिंह आढ़ा (झांकर)

वि.स.808 के चैत्र शुक्ल नवमी मंगलवार के दिन मामड़जी चारण के घर पर भगवती श्रीआवड़ माता ने अवतार लिया। एक बार अकाल के समय मामड़जी अपने कुटूम्बियों के साथ अपने पशुधन को लेकर सिंध चले गये। उस समय तक सिन्ध पर अरबी मुसलमानों का कब्जा हो चुका था। उन्होंने सिंध के हिन्दुओं को जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन के लिए बाध्य करके बड़े पैमाने पर उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को विवश कर दिया था। मामड़जी का परिवार सिंध के प्राचीन नानणगढ (सुल्तानपुर), जो बहावलपुर के 20 कोस उत्तर में आया हुआ था, के पास हाकरा दरियाव (नदी) के किनारे अपनी झोपड़ी (नेस) बनाकर रह रहा था। भगवती श्री आवड़ माता की सातों बहिन शक्ति की अवतार थी। ये सातों ही बहिनें बहुत रूपवान थी।[…]

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गीत संपखरो – तेमड़ाराय रो

नमो माडरांणी बखाणी तो सुरारांणी नमो नमो,
दीपै भांणी सात अहो भाखरां रै देस।
सालिया मेछांणी मुरड़ मंडिया केक संतां,
इल़ा मौज माणी राज अन्नड़ां आदेस।।1

धमां -धमां रमै जेथ गूघरां वीनोद गूंजै,
धूजै धरा धमां-धमां कदम्मां री धाक।
हमां-हमां करंती किलोल़ लाख नवै हेरो,
नमै जेथ खमा -खमा सुरां-नरां नाक।।2[…]

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तृतीय वर्षगांठ – www.charans.org

वि.स. २०७५ आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (१० अक्टूबर २०१८)

नवरात्री स्थापना की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। आज का दिन एक और कारण से विशिष्ठ है क्योंकि तीन वर्ष पूर्व आज ही के दिन माँ भगवती की प्रेरणा से www.charans.org साईट का शुभारम्भ किया गया था। आज इसकी तीसरी वर्षगांठ है।
एक छोटा सा पौधा जो तीन वर्ष पूर्व शारदीय नवरात्री स्थापना के दिन लगाया गया था, आज आप सभी के सहयोग एवं उत्साहवर्धन से निरंतर प्रगति कर रहा है। कुछ तथ्य प्रस्तूत हैं:[…]

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