शहीद कुंवर प्रताप सिंह जी माथै गीत चित इलोल़ – कवि वीरेन्द्र लखावत

।।गीत – चित इलोल़।।
केहरी सुत परताप किनां, जंग जबरा जा’र।
विख्यात हुयगो वीर वसुधा, शा’पुरौ सिरदार।।
(तो)बलिहार जी बलिहार जावै हिन्द औ बलिहार।।1।।

अखरियौ वौ जुल़स अलबत, रपटतौ कर रोल़।
प्रण लियौ परताप फैंकण, बम्ब बढ़ चढ़ मोल।।
(तो)टंटोल़ जी टंटोल़ ठायी बैंक वौ टंटोल़।।2।।[…]

» Read more

काश हम भी प्रताप बने होते – “रुचिर”

मुझसे उसने पूछा होता,
मैं मस्तक पर तिलक लगाती।
घोड़ी पर बिठलाकर उसका,
चुम्बन लेती विदा कराती।
पर वह स्वतन्त्रता का राही माँ से चुप चुप चला गया।
बिन पूछे ही चला गया।।[…]

» Read more

जनकवि उमरदान जी लाळस – जीवन परिचय

जनकवि ऊमरदान का नाम राजस्थानी साहित्याकाश में एक ज्योतिर्मय नक्षत्र की भांति देदीप्यमान है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की पृथक पहचान है। पाखण्ड-खंडन, नशा निवारण, राष्ट्र-गौरव एवं जन-जागरण का उद्घोष ही इस कवि का प्रमुख लक्ष्य था। इसकी रचनाओं में सामाजिक व्यंग की प्रधानता के साथ ही साहित्यिकता, ऐतिहासिकता एवं आध्यात्मिकता की त्रिवेणी सामान रूप से प्रवाहमान है। मरू-प्रदेश की प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक छवियों के चितांकन में यहाँ के लोक-जीवन की आत्मा की अनुगूंज सुनाई देती है। डिंगल एवं पिंगल के विविध छंदों की अलंकृत छटा, चित्रात्मक शैली और नूतन भावाभिव्यंजना सहज ही पाठक का मन मोह लेती है।[…]

» Read more

खोटे सन्तां रो खुलासो – जनकवि ऊमरदान लाळस

।।दोहा।।
बांम बांम बकता बहै, दांम दांम चित देत।
गांम गांम नांखै गिंडक, रांम नांम में रेत।।1।।

।।छप्पय।।
अै मिळतांई अेंठ, झूंठ परसाद झिलावै।
कुळ में घाले कळह, माजनौ धूड़ मिलावै।
कहै बडेरां कुत्ता, देव करणी नें दाखण।
ऊठ सँवेरे अधम, मोड चर जावै माखण।
मुख रांम रांम करज्यो मती, म्हांरो कह्यो न मेटज्यो।
चारणां वरण साधां चरण, भूल कदे मत भेटज्यो।।2।।[…]

» Read more

डफोळाष्टक डूंडी – जनकवि ऊमरदान लाळस

।।डफोळाष्टक-डूंडी।।
(सवैया)
ऊसर भूमि कृसान चहै अन, तार मिलै नहिं ता तन तांई।
नारि नपुंसक सों निसि में निज, नेह करै रतिदान तौ नांई।
मूरख सूम डफोलन के मुख, काव्य कपोल कथा जग कांई।
वाजति रै तो कहा वित लै बस, भैंस के अग्र मृदंग भलांई।।1।।[…]

» Read more

हमार रौ हाळ – जनकवि ऊमरदान लाळस

जनकवि ऊमरदान जी लालस द्वारा लगभग १०० पूर्व लिखी यह कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। इसमें कवि ने अपने समय के नैतिक पतन का दो टूक शैली में वर्णन किया है।

(राग प्रभाती बिलावल)

खारी रे आ समें दुखारी, हाहा बड़ी हत्यारी रे।।टेर।।

मोटा घरां म्रजादा मिटगी, बंगळां रै सौ बारी रे।
गोला जुगळी मांय गई जद, नसल बिगड़ गई न्यारी रे।।खारी…।।1।।

होटल मांई खाणौ हिळतां, बिटळां बुरी बिचारी रे।
मांनव धर्म शास्त्र री महिमा, सुरती नहीं समारी रे।।खारी…।।2।।

घुड़दौड़ां सूं ढूंगा घसग्या, नामरदी फिर न्यारी रे।
लाखां रुपया लेखे लागा, कोई न लागी कारी रे।।खारी…।।3।।[…]

» Read more

असन्तां री आरसी – जनकवि ऊमरदान लाळस

।।दोहा।।
आवै मोड अपार रा, खावै बटिया खीर।
बाई कहै जिण बैन रा, वणैं जँवाई वीर।।1।।
गुरु गूंगा गैला गुरु, गुरु गिंडकां रा मेल।
रूंम रूंम में यूं रमें, ज्यूं जरबां में तेल।।2।।

।।छन्द – त्रोटक।।
सत बात कहै जग में सुकवी, कथ कूर कधैं ठग सो कुकवी।
सत कूर सनातन दोय सही, सत पन्थ बहे सो महन्त सही।।1।।[…]

» Read more

करन्यास – जनकवि ऊमरदान लाळस

करन्यास
(दोहा)
कौडी बिन कीमत नहीं, सगा न राखै साथ।
हाजर नांणौं हाथ में, बैरी बूझै बात।।
ओऽम् वाक् वाक्।।1।।

दाळद घर दोळौ हुवै, परणि न आवै पास।
रुपिया होवै रोकड़ा, सोरा आवै सास।।
ओऽम् प्राण: प्राण:।।2।।

कळजुग में कळदार बिन, भायां पड़िया भेव।
जिण घर माया जोर में, दरसण आवै देव।।
ओऽम् चक्षुः चक्षुः।।3।।[…]

» Read more
1 21 22 23 24 25 55