गजेन्द्र मोक्ष पर समान बाई का सवैया

पान के काज गयो गजराज,
कुटुम्ब समेत धस्यो जल मांहीं।
पान कर्यो जल शीतल को,
असनान की केलि रचितिहि ठाहीं।
कोपि के ग्राह ग्रह्यो गजराज,
बुडाय लयो जल दीन की नांहीं।
जो भर सूँड रही जल पै तिहिं,
बेर पुकार करि हरि पाहीं।।[…]

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झालामान शतक – नाथूसिंह जी महियारिया

नाथूसिंहजी महियारिया रचित झालामान शतक सर कोटि री उंचे दरजे री बेजोड़ रचना है, जिण कृति में सादड़ी (मेवाड़) रै राजराणा झाला मानसिंह जी रै उद्भट शौर्य, अदम्य साहस अर सूरापण, अर बिना सुवारथ बऴिदान रो बड़ो बर्णन करियो है। हऴ्दीघाटी री लड़ाई रो बड़ वीर नायक झालामान आप रै प्राणा नै निछावर कर आपरा धणी महाराणा रा प्राण बचाय इतियास मं अखीजस खाटियो।
हेक मान मुगलांण दिस, हेक मान हिंदवाण।
कूरम गज हौदे रह्यो, सुरग गयो मकवांण।।[…]

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चारण मनोहरदास नांदू (गांव – सुरपाऴिया, नागौर)

इतिहास में केई काऴ भुरजाऴ जंगी जोधारां रा संगी साथी ऐहड़ा कण पाण वाऴा अर आत्म बलिदानी होवता हा कि उणानै आपरै स्वामी री भक्ति आगै आपरो जीवण तोछो लखावतो अर बखत जरूरत माथै बलिदान देवण में कदैई शंकै अर हबक नें नैड़ी नीं आवण देवता। आज इतियास रा ऐहड़ा शूरवीर री चतुराई अर वीरत री वारता रो लेखो जोखो आंके करावां सा।[…]

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नायिका शिख नख वर्णन (राम रंजाट)

यह छंद महाकवि सूर्यमल्ल रचित खंडकाव्य राम रंजाट से लिया गया है। उल्लेखनीय है कि महाकवि ने इस ग्रन्थ को मात्र १० वर्ष की आयु में ही लिख डाला था।


।।छंद – त्रिभंगी।।
सौलह सिनगारं, सजि अनुसारं, अधिक अपारं, उद्धारं।
कौरे चख कज्जळ, अति जिहिं लज्जळ, दुति विजज्जळ, सुभकारं।।[…]

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सूर्यमलजी का मौजी स्वभाव

विश्वविख्यात ग्रंथ वंशभास्कर के रचयिता महाकवि सूर्यमलजी बहुत ही मनमौजी स्वभाव के कविराजा थे और उन्हे मद्यपान का बहुत ही शौक था, उनके लिऐ तत्कालीन समय के राजन्य वर्ग व कुलीन खानदान के मित्रगण अच्छी किस्म की अति उम्दा आसव कढवा कर भिजवाते ही रहते थे। इसी क्रम मे ऐक बार भिणाय के राजा बलवन्तसिंह जी ने इनकी सेवा में बहुत ही मधुर मद्य भेजा था, जिसकी प्रशंसा में सूर्यमलजी ने उनको ऐक कवित्त लिखकर भेजा था। यथाः…[…]

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चारणत्त्व – पुनर्जागरण का शंखनाद

पत्रिका पढने अथवा डाउनलोड करने के लिए सम्बंधित अंक के लिंक पर क्लिक करें: वर्ष २ – अंक जनवरी वर्ष १ – अंक चतुर्थ वर्ष १ – अंक तृतीय वर्ष १ – अंक द्वितीय वर्ष १ – अंक प्रथम सम्पादक: महेंद्र सिंह चारण दुधालिया  प्रबंधन: जयदेव सिंह चारण अडूशिया  वितरण: रणजीत सिंह चारण मुंडकोसिया कार्यालय: करणी इन्फोसिस, 57, कोलीवाड़ा, DCM शो रूम के पीछे, उदयपुर – 313001 मोबाइल: 9983921903, 7425916103, 9829122671, 7300174927           Disclaimer: This page is reserved for displaying past editions of “Charanatva” magazine. It’s a different initiative and any views mentioned in this magazine […]

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।।कहाँ वे लोग, कहाँ वे बातें।। – राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)

ऐक बार डीडिया गांव के न्यायाधीस श्रीमान लक्ष्मीदानजी सान्दू साहब से मिलने हेतु श्रीमान अक्षयसिंहजी रतनू साहब गये। उस समय जज साहब ने कहलवाया कि मेरे पास अभी मिलने के लिए समय नही है। यह उत्तर सुनकर रतनू साहब उसी समय वापस आ गये और उन्होने प्रत्यूतर में दो कवित्त मनहर बना कर प्रेषित किए। कवित्त में इस घटना की तुलना समाज के दो शिरोमणी रत्न सुप्रसिध्द इतिहासकार कविराजा श्यामलदासजी दधवाड़िया जो कि उदयपुर महाराणा के खास सर्वेसर्वा थे और दूसरे जोधपुर के कविराजा श्रीमुरारीदान जी आशिया जो कि जोधपुर कौंसिल के आला अधिकारी भी रहे थे, से की।[…]

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चौहान सूरजमल हाडा बूंदी

बून्दी का राव सूरजमल हाडा (सूर्यमल्ल) प्रसिध्द महाराणा सांगा की महाराणी कर्मवती का भाई था और सांगा के स्वर्गवास के बाद दो छोटे राजकुमार विक्रमादित्य और उदयसिंह की रक्षा व सम्हाल रणथम्भौर के किले में रहकर करता था। महाराणी कर्मवती भी वहीं रहती थी। राणा सांगा के बाद रतनसिंह द्वितीय मेवाड़ का महाराणा बना तो उसने कोठारिया के रावत पूर्णमल को रणथंभौर भेजकर बादशाह महमूद का रत्न जटित ताज और बेशकीमती कमरपट्टा, जो कि उसने महाराणा सांगा से हारने के बाद उनको भेंट किया था, अपने पास मंगाना चाहा, जिसे देने से महाराणी ने मना कर दिया तो इस बात से रतनसिंह सूर्यमल पर कुपित हुआ।[…]

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ए ज सोनल अवतरी

।।छंद – सारसी।।
नव लाख पोषण अकळ नर ही, ए ज सोनल अवतरी।।
मा ! ए ज सोनल अवतरी ।।टेर।।

अंधकारनी फोजुं हटी, भेंकार रजनी भागती।
पोफाट हामा सधू प्रगटी, ज्योत झगमग जागती।।
व्रण तिमिर मेटण सूर समवड, किरण घटघट परवरी।
नव लाख पोषण अकळ नर ही, ए ज सोनल अवतरी।।
मा ! ए ज सोनल अवतरी…….।।१।।[…]

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આઇ સોનલ – મયુર.સિધ્ધપુરા (જામનગર)

સંવત ૧૯૮૦ પોષ સુદ-૨ મંગળવારે રાત્રે ૮ઃ૩૦ વાગે જુનાગઢના કેશોદ તાલુકાના મઢડા ગામે ગઢવી શ્રીમાન હમીરભાઇ મોડને ધરે આઇ શ્રી રાણબાઇના કુખેથી પુજ્ય આઇમાં શ્રી સોનબાઇ માં નો જન્મ થયો.પુજ્ય આઇમાં એ જન્મ ધારણ કરીને પોતાના તુંબેલ કુળને,મોડવંશને, ચારણ જાતીને તેમજ સમાજના સર્વે વર્ગો જાતીને પવિત્ર કર્યા અને ઉજ્જવળતા શુધ્ધતા આપી.એમના જન્મથી આઇ રાણબાઇ ધન્ય બન્યા તથા આઇમા શ્રી સોનબાઇની જન્મદાત્રી માતાનું મહાન યશસ્વી પદ પામ્યા.[…]

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