गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद-पाँचवों अध्याय
पाँचवों अध्याय – कर्मसंन्यासयोगः ।।श्लोक।। सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि। यच्छेय एतयोरेकं जन्मे ब्रूहि सुनिश्चित।।१।। ।।चौपाई।। कर्म त्याग पुनि योग सरावौ हे माधव तय कर बतलावौ। यां दोनां सूं जो कल्याणी कुण सी म्हारै चित्त चढाणी।।१।। ।।भावार्थ।। अर्जुन नै परिवार रा मोह रै कारण युद्ध नीं करण री जची। इण कारण वौ युद्ध रौ कर्म त्यागणौ वाजिब समझियौ पण भगवान् तत्व ग्यान प्राप्त करणा रा कर्म री प्रशंसा करै। तद अर्जुन पूछै-हे माधव! कदैइ तो आप कर्म योग री तारीफ करौ अर कदैग तत्व ग्यान प्राप्त करण री म्हनै आ बतावौ कै म्हारा किसा कर्म करण सूं औ कल्याण […]
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