श्री करनी विजय स्तुति – श्री जोगीदान जी कविया सेवापुरा

।।छन्द त्रोटक।।

करणी तव पुत्र प्रणाम करै
धरि मस्तक पावन ध्यान धरै
कलिकाल महाविकराल समै
बिन आश्रय हा तव बाल भ्रमै।१।

हम छोड़ चुके अब इष्ट हहा,
रिपु घोर अरष्टि अनिष्ट रहा।
पथ भ्रष्ट हुये जग माँहि फिरैं
घन आपत्ति के नभ भाग्य घिरैं।२। […]

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आवड़ वन्दना – जोगीदान जी कविया सेवापुरा

।।छन्द नाराच।।
सुचित्त नित्त प्रत्ति व्है शिवा सकत्ति सम्भरै
सुधर्म कर्म ज्ञान ध्यान मर्म खोजते फिरै
तमाम रात दीह जाम नाम ले बितात है
सुपात मात आवड़ा जगत्त में विख्यात है।१।

बहन्न सात एक साथ व्योम पाथ ऊतरी
अछेह नेह देह मामड़ा सुगेह में धरी
कथा अशेष देश देश में विशेष गात है
सुपात मात आवड़ा जगत्त में विख्यात है।२। […]

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घर कामिनी काग उडावती है

स्वर्गीय कवि शुभकरण सिंह जी उज्जवल (ग्राम भारोडी) पुलिस सेवा में थे। भीलवाडा में पोस्टिंग के वक्त वहाँ के एक सख्त एस पी साहब ने छुट्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया। शुभकरण जी को घर जाना बहुत जरूरी था। उन्हें कहीं से पता चला कि एस पी साहब बड़े साहित्य रसिक हैं, तो उन्होंने साहित्यिक शैली में एस पी साहब तक छुट्टी की अर्जी पहुँचाई।

एस पी साहब ने तत्काल छुट्टी सेंक्शन कर दी। वह कविता आप सभी की नजर… […]

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पद्मश्री भक्त कवि दुला भाया काग

दुला भाया काग (२५ नवम्बर १९०२ – २२ फ़रवरी १९७७) प्रसिद्ध कवि, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म सौराष्ट्र-गुजरात के महुवा के निकटवर्ती गाँव मजदार में हुआ था जो अब कागधाम के नाम से जाना जाता है। दुला भाया काग ने केवल पांचवी कक्षा तक पढाई करी तत्पश्चात पशुपालन में अपने परिवार का हाथ बंटाने में लग गए। उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी हिस्सा लिया। उन्होंने अपनी जमीन विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में दान दे दी। उनके द्वारा रचित “कागवाणी” 9 खंडो में प्रकाशित वृहत ग्रन्थ है जिसमे भक्ति गीत, रामायण तथा महाभारत के वृत्तांत और गांधीजी […]

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सांडा

जैसलमेर जिले की फतेहगढ़ तहसील के अंतर्गत डांगरी ग्राम पंचायत का यह गाँव सांडा जिला मुख्यालय से 75 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। चारों तरफ पसरी रेतीली धरती पर साण्डा गाँव कई ऎतिहासिक व सामाजिक मिथकों से जुड़ा हुआ है। साण्डा नामक पालीवाल द्वारा बसाये जाने की वजह से इस गांव को साण्डा कहा जाता है। यहां उस जमाने में पालीवालों की समृद्ध बस्तियां थीं लेकिन एक ही दिन में पलायन करने की वजह से यह पूरा क्षेत्र वीरान हो गया। पालीवाल सभ्यता का दिग्दर्शन कई शताब्दियों पुराना यह गाँव पालीवाल सभ्यता का भी प्रतीक है, जहाँ आज भी पालीवाल […]

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‘आई’ लाधी गांगड़ी का न्याय

:::: ठा. नाहर सिंह जसोल द्वारा संकलित पुस्तक “चारणों री बातां” से ::::: माघ मास की धवल चांदनी में ‘वराणा’ नामक गांव के मां खोडियार के मंदिर के प्रांगण में चारणों का पूरा समुदाय इधर-उधर की बातों में मस्त है। उपलियाला गांव का लाभूदान चारण बीच में बैठा चुटकले, दोहे, छंद सुना रहा हैं। बातों ही बातों में लाधी गांगड़ी का प्रसंग आया तो किसी ने पूछाः ‘‘लाधी गांगड़ी तो खोडि़यार की भक्त थी ना!’’ ‘‘उनको तो लोग खोडि़यार की बड़ी बहन आवड़ स्वरूप मान के नमन करते थे, परन्तु वे खोडि़यार की परम उपासक थी।’’ चारणों की गांगड़ा शाखा […]

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दो आखर – ठा. नाहरसिंह जसोल

ठा. नाहरसिंह जसोल द्वारा लिखित पुस्तक “चारणों री बातां” की भूमिका “दो आखर” चारणों सारूं आदरमांन, श्रद्धा, अटूट विश्वास रजपूत रै खून में है। जुगां जुगां सूं चारणों अर रजपूतां रै गाढ़ा काळलाई सनातन संबन्ध रया है। आंपणों इतिहास, आंपणी परम्परावां, रीत-रिवाज, डिंगल साहित्य अर जूनी ऊजळी मरजादां, इण बात रा साक्षी है। केतांन बरसां तक ओ सनातनी सम्बन्ध कायम रयौ। न्यारौईज ठरकौ हौ। पण धीरे धीरे समय पालटो खायौ अर उण सनातनी संबन्धों में कमी आण लागी। ऐक दूजा रै अठै आण-जाण कम व्हे गयो, अपणास में कमी अर खटास आय गई, ओळखांण निपट मिट गई। इण सब बातां […]

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महादेव स्तुति – महाकवि सूर्यमल्ल मीसण (वंश भास्कर)

जय जय महेस संकर जडाल, कन्दर्ब जलंधर त्रिपुर काल।
गंगाकिरीट जय जय गिरीस, अजएक महानट अखिल ईस।।
रचनाप्ररोह जय संभु रूद्र, सिव जय अनादी करुणासमुद्र।
दुरितादिदलन जय बामदेव, दिवपट जय परिजितकामदेव।।
जय गरलकंठ विभु गहन जोग, भव भर्ग्ग भीम जय त्यक्तभोग।
लय सर्ग चरित जय उर्द्धलिंग, प्रभु जय मित्रीकृत एक पिंग।।[…]

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ऐसा छोड़ने वाला नहीं मिलेगा

महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण जितने महान कवि थे उतना ही तेज उनका मिजाज था, झट से बिगड़ जाता था। राजकुमार भीमसिंह की बारात में बांसवाडा गए वहां बूंदी के आमात्य बोहरा रतनलाल की किसी बात पर नाराज़ हो गए और तुरंत वहां से प्रस्थान  का मन बनाया। राजा रामसिंह ने मना किया मगर रूठ कर रवाना हो गए। जब रास्ते में रतलाम के राजा बलवंत सिंह ने यह सुना कि सूर्यमल्ल लौट रहे हैं तो उन्होंने पांच मील की दूरी तक सामने आकर महाकवि की अगुवाई की। मीसण को पुरी मान मनोव्वल के साथ राजा रतलाम लाये और बड़े सत्कारपूर्वक अपने […]

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