खट भाषा काव्य प्रबीन सागर से

नायिका कलाप्रबीन नायक रससागर के बिरह में बीमार हो गई है। उस का पता नायिका की सखियों को चलता है। दूर दूर से कलाप्रबीन का कुशल क्षेम पुछने के लिए आती है। हर एक सखी अपनी भाषा में उससे उसकी तबियत का हाल पूछती है। गुजरात से आयी सखी गुजराती में, कच्छी सहेली कच्छी भाषा में, महाराष्ट्रीयन सखी मराठी में, मारवाड से आयी सखी ठेठ मारवाडी में, अरबस्तान से आयी सहेली उर्दू में, और बनारस से पधारी ब्राह्मण सहेली संस्कृत में उसकी तबियत का हाल पूछती है। तो आप भी इसका लुत्फ उठाएं।[…]

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शिव वंदना प्रबीन सागर से

।।छंद त्रिभंगी।।
गिरिजा के स्वामी, अंतरजामी, निर्मल नामी, सुखकारी।
लाई रति अंगा, नाचत चंगा, धरी उमंगा, अति भारी।
सुख संपति दायक, पूजन लायक, भूतहि नायक, भयहारी।
तनु पें गजखाला, ओढ बिसाला, मुंडनमाला, गलहारी।।१[…]

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काली स्तवन-प्रबीन सागर से

महाकालिका मालिकामुंड धारा,
सबं श्रोन सीसं करं मुक्त बारा,
परं निर्भयं गाहिनी नग्गखग्गा,
ज्वलंती चिता में शवारूढ नग्गा,
महाकाल विप्रीत रत्ती रमस्ते,
नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते||१
महा विध्यया राजितं रक्त बंबा,
सधै जोग जोति अलौकिक अंबा,
त्रिनैनं सरोजं करं नील सज्जै, […]

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नरनारायण देव स्तुति

🌸छंद त्रिभंगी🌸
जय नाथ निरंजन,भव दुख भंजन,जन मन रंजन,जग त्राता|
जय काम निकंदन,वर सुर वंदन,धर्म सुनंदन,दो भ्राता|
जय महितल मंडन,खल बल खंडन,विषय विखंडन,बनवासी|
जय स्हायक संतन,काल निक्रंतन,आद न अंतन ,अविनासी||१ […]

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जगमाल के सवैया

मित्र जगमाल सिंह बालुदान जी सुरताणिया को संबोधित संबोधन काव्य

पल़ बीत रही पल ही पल में अब आल़स चारण तू तजरे|
मत सोच करे मन में सुण बांधव है मथ हेक रदं गज रे।
प्रिय मोदक ,पुत्र शिवा ,वरदायक तू गण नायक नें भजरे|
जगमाल !सहायक मूषक वाहक,चारभुजायक तौ कज रे||१ […]

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बिरहण अर बाँसुरी

बिरहण बोदी बाँसुरी,साजण जिण री फूंक।
घर आयां पिव गावसी,कोयल रे ज्यूं कूक।।१
बिनां फूंक री बाँसुरी,बिरहण अर बिन नाह।
ऐ दोन्यूं है एक सी,जीवण नीरस जाह।।२
बजै बिरह री बाँसुरी, अहनिस बिरहण अंग।
जिण रा सुर सुण रीझता,कविता रसिक कुरंग।।३ […]

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डिंगल़

सुंदर मायड भासा डिंगल़।
जीवण री परिभासा डिंगल़।।१
बातां ख्यातां गीत वेलियाँ,
रामत कामड रासा डिंगल़।।२
सूर ,सती संतां री वाणी,
जिण री साँस उछासा डिंगल़।।३
घणी उडीकां अर ओल़ूमय,
रचिया बारहमासा डिंगल़।।४ […]

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पाती लिखतां पीव नें

पाती लिखतां पीव नें, उपजै भाव अनेक।
मन तन री पर मांडवा,आखर मिल़े न एक।।१
पाती लिखणी पीव नें,बात न लागै ठीक।
कीकर भेजूं ओल़भा,दिलबर दिल नजदीक।।२
पाती तो उण नें लिखां,दिल सूं होय जो दूर।
उणने कीकर भेजणी,जो मन-चंदा-नूर।।३ […]

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दो मिसरों का ग्रन्थ

नयन नेह रो मानसर, आँसु फल मुक्ताह|
झुर झुर जीवूं राज कज,हंस आव चुगवाह|

नैण अखाडै नेह री, धुंणीं धखती जोर|
सांझ बपोरां भोर,निरखौ आयर नाथजी||

मन री हूं करस्यूं मढी,तन री धूंणी ताप|
नैण अखाडै नाथ आ,पंड रा मेटौ पाप|| […]

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होली के कुछ दोहै

सरहद पर गोली चली, धरती होली लाल|
होली पल पल खेलता,भारत माँ का लाल||१
रे भोली ब्रजबालिका, होली काहै लाल|
होली में ब्रजलाल नें, तन जो मला गुलाल||२
मैं भोली नादान बन,होली उसके साथ|
उसने मौका ताड की,चोली पर बरसात||३
होली वह उसकी सखी!,इस होली के संग|
भोली सी ब्रजगोपिका, रंगी श्याम के रंग|।४ […]

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