हिंगळाज माताजी री स्तुति – कविराज शंकरदानजी जेठीभाई देथा (लींबडी)

॥छंद हरिगीत॥
प्रणमामि मातु प्रेम मूरति, पार्वती परमेशरी।
शांति क्षमामय कृपासागरि, सुखप्रदा सरवेशरी।
सेवक शिशु रा दुरित दारिद, विघ्न दोष विदारणी।
आदि शक्ति नमो अंबा, हिंगळा अघहारिणी॥1

सब देवियां शिरमौड सातांद्वीप री राजेशरी।
कोहला परवत कंदरा री निवासी निखिलेशरी।
आनंद वदनी आशुतुष्टा, कृपा मंगळ कारिणी।
नकळंक रुपा नमो अंबा, हिंगळा अघहारिणी॥2 […]

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जय मोगल मां मछराळी – कवि जीवणदानजी डोसाभाइ झीबा

॥छंद त्रिभंगी॥
परतापां पुरी, निरमळ नूरी, सतव्रत सूरी, सरसाई।
दाळद कर दूरी, क्रोध करुरी, बळ भरपूरी, थुं बाई।
भंजण दुःख भुरि, गंज गरुरी, रखण सबुरी, रढियाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी॥1 […]

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चाळकनेची चामुंडा – कवि हमीरदान जी रतनू (धडोई)

॥छंद त्रिभंगी॥
वेदां वंचाणी, पढे पुराणी, क्रोड विनाणी, कतियांणी।
कै काम कमाणी, अकह कहांणी, जय सुर राणी जगजाणी।
भाखे ब्रह्माणी, तुं मन भाणी, अविरळ वांणी, उदंडा।
रव राय रवेची, मुंह माडेची, चाळकनेची, चामुंडा॥1

आशापुरा आई, देव दुगाई, महण मथाई, मंहमाई।
सतशील सदाई, जुध्ध जिताई, गाढ वडाई, गरवाई।
दैतां दुःखदाई, सुरां सहाई, खिति उपाई नव खंडा।
रवराय रवेची, मुंह माडेची, चाळकनेची, चामुंडा॥2

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बिरहण धण रो ओळभौ

कंथा कंथा पेर ने, बण जातौ थूं संत।
तौ नी पंथ उडीकती, साची बात कहंत॥1
पण थूं चाल्यौ चाकरी, पकडी वाट विदेश।
इणसूं थने उडीकती, रहती राज हमेश॥2
दिन उगियां पूछुं पथिक, रोज उडाडूं काग।
तौ पण थूं आवै नहीं, फूटा मारा भाग॥3 […]

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रंग रे दुहा रंग

भाव कथे हर भाख में,उर रा घणे उमंग।
कवि सुरसत कंठाभरण,रंग रे दुहा रंग॥1

ब्रज भासा डिंगळ तथा,गुर्जर भासा गंग।
उत्तर भारत रा अजब,दुहा छंद ने रंग॥2

नवरस री नव कल्पना,सरस उकति रे संग।
कल्पक रा कविता कथन,रंग रे दुहा रंग॥3 […]

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गीत भेरू जी रो – जगमाल सिंह “ज्वाला”

।।गीत सावझड़ो।।

मिणधर हाजर होय मुछाळा।
पत राखण आवे प्रतपाळा।
चंडी संग सदा चिर ताळा।
गजब दौड़ जे गोरा काळा।1।

श्वान सवारी आसन ढाळो।
टेरु तमे विघन मोय टाळो।
रेवे मात रु सदा रुखा ळो।
भगत पुकारे सामो भाळो।2। […]

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आई खोडियार वंदना – जयसिंह सिंहढायच

।।दोहा।।

धरा माड धरती धिनो,धिन धिन चाळक ग्राम।
धिन मादा काछैल कुळ,धिन पितु मामड धाम॥1॥
सातूं बहिनां संग मैं,शोभित बीच विवाण।
पितू मामड घर प्रगटिया,काछैला कुळ भांण॥2॥
सवंत आठसै आठ सुभ,चैत नवम शनिवार।
माड धरा मामड घरां,आप लियो अवतार॥3॥ […]

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कुरजां बिरहण यूं कहै

कुंझडियां परदेसियां,आवै अर उड जाय।
साच नेह सफरी तणो,जळ भेळी सूखाय॥1

पावस मास विदेस पिव,जळूं विरह री झाळ।
थूं कुरजां बरसात में,भींजै सरवर पाळ॥2

कुरजां थारी पांख पर,आखर लिखूं अथाह।
बालम नें बंचाय दे,बिरहण मन री आह॥3 […]

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बिरवडी जी रा छंद – कवि कानदासजी

॥छंद सारसी (हरिगीत)॥
दांतां बतीसां सौत जाई, लिया दांत सु लोहरा।
अचरज्ज दरशण हुऔ अंबा, मिट्या वादळ मोहरा।
पख दोय पूरी शगत सूरी,पिता हुकम पर वडी।
नित वळां अन वळ दियण नरही, वळां पूरण वरवडी॥ 1 ॥

नव लाख घोडे चढै नवघण, सूमरां घर सल्लडै।
सर सात खळभळ, शेष सळवळ, चार चकधर चल्लडै।
इण रुप चढियो सिंध धरपर इळा रज अंबर अडी।
नित वळां अन वळ दियण नरही, वळां पूरण वरवडी॥ 2 ॥ […]

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मननें तुझको पा लिया

🌺मननें तुझको पा लिया🌺

जब तू धावा बोलती, पलकों की जागीर।
तब तब मैंने थामली, हाथ-कलम-शमसीर॥1

जब तू मुझ पर पीर का, डाले सखी अबीर।
तब मन बनता राधिका,-कान्हा ,रांझा -हीर॥2

जब तू मुझपर नेह की,करे सखी बौछार।
तब उर गोमुख से बही,कल-कल कविता-धार॥3 […]

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