करणीदान कविया-गीत
(करणीदान जी कविया एक बार शाहपुरा आये तब उम्मेदसिंह अपने पिता की मृत्यु के उपरांत राजा बन चुके थे। कवि को सम्मानित करने हेतु उन्होंने घोडा-सिरोपाव कवि के ठिकाने पर भिजवाया। कवि तब तक बहुत ख्याति प्राप्त कर चुके थे, उन्होने घोडा -सिरोपाव को अपने अनुरूप उपयुक्त न समझ कर ससम्मान लौटाते हुए निम्नलिखित गीत लिख भेजा..)
डाकर अत डकर करे मत डारण, सीसोदा पग मांड सधिर ।
चाल पकड लेउँ तो चारण, वारण तो वोढा नरवीर ॥ […]