स्वामी स्वरूपदास रचित राजस्थानी महाभारत और उनका काव्य सौंदर्य–तेजस मुंगेरिया

राजस्थानी भाषा की विशालता व समृद्धि की जब बात करें तो स्वामी स्वरूपदास चारण (बड़ली अजमेर, १८०१) का स्मरण प्रथमत: करना ज़रूरी हो जाता है। स्वरूपदास ऐसे चरित्र थे जिन्होंने भारतीय मनीषा के ऋषि शब्द को पूर्ण चरितार्थ किया है। अन्य कई कवियों की भांत वे केवल काव्य में ही ईश-उपासना नहीं करते रहे बल्कि आजीवन साधुता धारण की तथा ईश्वरोपासना में लीन रहे।[…]

» Read more

सूरां मरण तणो की सोच?

सूरां मरण तणो की सोच?
वीर को मृत्यु की क्या चिंता?

संदर्भपहलगाम में गोली के भय से कलमा पढ़कर प्राण बचाने के संदर्भ में

मैं आथूणै राजस्थान का निवासी हूं। जहां पग-पग पर ऐसे नर-नाहरों की पाषाण पूतलियां स्वाभिमान से सिर ताने खड़ी है, जिन्होंने धर्म, धरती, गौरक्षा और स्त्री सम्मान की रक्षार्थ सिर कट जाने पर भी रणांगण में शत्रुओं का संहार करते रहे। उन्होंने मृत्यु के आगत भय से धर्म की ध्वजा को नहीं छोड़ा‌‌। उन्होंने मरणा श्रेयष्कर समझा पर दूसरे धर्म का कलमा पढ़ना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने स्पष्ट उद्घोषणा की कि-[…]

» Read more

हे पंथी! यह संदेश तेजमाल भाटी को कह देना।

आजका संदर्भ-जाओ मोदी को बता देना।

हम पढ़ते, कहते और सुनते भी है कि काश्मीर हमारा भारत का मुकुट मणि है। लेकिन हर दूसरे दिन ऐसी दिल दहलाने वाली घटनाओं के विषय में सुनते और पढ़ते हैं तो लगता नहीं कि कश्मीर हमारा है।

कविराज बद्रीदानजी कविया ने कश्मीर पर कुछ दोहे लिखे तो उनमें से एक यह था कि-

लड़ पंजाबी बंगाल ली, सातूं लीनी सिंध।
काश्मीर लेवण कसै, हार हुई कै जयहिंद।।

[…]

» Read more

काव्य एवं इतिहास का सुभग सुमेल: गजन प्रकास

प्राक्कथन

राजस्थान वीर प्रसविनी धरा के रूप में विश्वविदित है। इसे धारा तीर्थ के धाम के रूप में जाना जाता है। जहाँ शूरमाओं ने केशरिया कर शाका किए वहीं वीरांगनओं ने अपने स्वाभिमान की रक्षार्थ जौहर की अग्नि में स्नान कर अपनी कुलीन परम्पराओं को अक्षुण्ण रखा। यहाँ के वीरों ने मातृभूमि के मान-मंडन व अरियों के दर्प खंडन हेतु रणांगण में वीरगति प्राप्त करने में मरण की सार्थकता मानकर यह घोषित किया कि ”मरणो घर रै मांझियां, जम नरकां ले जाय।[…]

» Read more

चमत्कार, पुरस्कार और अभिलेख के धनी: ईसरदास रोहड़िया

चारण महात्मा ईसरदास रोहड़िया (वि. सं. 1515 से वि. सं. 1622) को राजस्थान और गुजरात में भक्त कवि के रूप में आदरणीय स्थान प्राप्त है। उनकी साहित्यिक संपदा गुजरात और राजस्थान की संयुक्त धरोहर है। आचार्य बदरीप्रसाद साकरिया यथार्थ रूप में कहते हैं कि-‘हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में जो स्थान गोस्वामी तुलसीदास और कृष्णभक्त कवि सूरदास का है वही स्थान गुजरात, राजस्थान, सौराष्ट्र, सिन्ध, धाट और थरपारकर में भक्तवर ईसरदास का है।’1 भक्त कवि ईसरदास ने उम्रभर भक्ति के विरल स्वानुभवों और धर्मग्रंथों से प्राप्त ज्ञान का सुंदर समन्वय अपने साहित्य में प्रस्तुत किया है। मगर यहाँ ईसरदास रोहड़िया के जीवन में हुए चमत्कारों, पुरस्कारों और शिलालेखों के संदर्भ में ही बातें करनी अभीष्ट है।[…]

» Read more

आणंद करमाणंद मीसण

मरुधरा के अनमोल रत्न: आणंद करमाणंद मीसण

~~डॉ. अंबादान रोहड़िया

गुजरात और राजस्थान में आणंद करमाणंद का नाम जन-जन की जिह्वा पर है। राजस्थान के अनेक प्रतिष्ठित कवियों द्वारा रचित भक्तमाल में आणंद करमाणंद का उल्लेख हुआ है:

ईसरदास अलुनाथ कविया, करमाणंद, आनंद मीसण, सूरदास।
मांडण दधवाड़िया, जीवानंद, भादा, केसोदास गाडण,
माधवदास दधवाड़िया, नरहरिदास बारहठ।।

आणंद करमाणंद मीसण रचित उच्चकोटि की काव्य-रचनाओं के कारण इन्हें चारण कवियों की श्रृंखला में, प्रथम पंक्ति में स्थान दिया जाता है:[…]

» Read more

तूंकारो कवि ज्यूं तवै

कवि नै शास्त्रां में स्वयंभू अर निरंकुश मान्यो गयो। यानी कवि रो दर्जो ऊंचो मानीज्यो है। आपां राजस्थानी रो काव्य मध्यकाल़ सूं लेयर आज तांई रो, वो काव्य पढ़ां जिणमें नायक रै गुणां-अवगुणां री चर्चा है तो आ बात सोल़ै आना सही है कै कवि नायक नै तूंकारै सूं ई संबोधित कियो है। काव्य रो नायक, भलांई कोई गढपति हुवो कै भलांई गडाल़पति। उण, उणांनै तूंकारै सूं ई संबोधित कियो है। डिंगल़ कवियां तो अठै तक कैयी है कै जे तमाखू में घी रल़ायर चिलम पीवोला तो जैर हुय जावैला अर जे कविता में नायक नै जी सूं संबोधित कर रैया हो तो कविता में दूषण मान्यो जावैला-[…]

» Read more

नाथी का बाड़ा के निमित्त

किसी भी भाषा के मुहावरे एवं कहावतें उस भाषा के सांस्कृतिक इतिहास एवं सामाजिक विकास की कहानी के साक्षी होते हैं। इन कहावतों में उस क्षेत्र के लोगों की मानसिकता भी परिलक्षित होती है। हमारे यहां पुरुष प्रधान मानसिकता हावी रही है अतः बहुधा उसके प्रभाव से कहावतों के निर्माण को देखा समझा जा सकता है। पापां बाई रो राज,  नाथी रो बाड़ो, खाला रो घर, पेमली रा परचा आदि कहावतों के पीछे भी कहीं न कहीं हमारी कुंठाओं का हाथ है।[…]

» Read more

मैं ही तो मोरवड़ा गांव हूं

मैं ही तो मोरवड़ा गांव हूं। हां भावों के अतिरेक में हूं तभी तो यह मैं भूल ही गया कि आप मुझे नहीं जानतें। क्योंकि मेरा इतिहास में कहीं नाम अंकित नहीं है। होता भी कैसे ?यह किन्हीं नामधारियों का गांव नहीं रहा है। मैं तो जनसाधारण का गांव रहा हूं जिनका इतिहास होते हुए भी इतिहास नहीं होता। इतिहास सदैव बड़ों का लिखा व लिखाया जाता है। छोटों का कैसा इतिहास?वे तो अपने खमीर के कारण जमीर को जीवित रखने के यत्नों में खटते हुए चलें जाते हैं।…

» Read more

मोरवड़ा मे सांसण की मर्यादा रक्षार्थ गैरां माऊ का जमर व 9 चारणों का बलिदान (ई. स.1921)

प्रसंग: सिरोही राज्य पर महाराव केशरीसिंह का शासन था। राज्य आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। राज्य की माली हालात सुधारने के नाम पर खजाना भरने की जुगत में दरबार ने कई नये कर लगाकर उनकी वसूली करने का दबाव बनाया। जिन लोगों को कर वसूल करने की जिम्मेदारी दी उन्होंने पुरानी मर्यादाओं और कानून कायदों की धज्जियां उड़ाते हुए उल्टी सीधी एवं जोर जबरदस्ती से कर वसूल करना शुरू कर दिया।

इसी कर-वसूली के लिए एक जत्था मोरवड़ा गाँव मे भी आया। मोरवड़ा गाँव महिया चारणों का सांसण मे दिया गाँव था। सांसण गांम हर प्रकार के कर से एवं राजाज्ञा से मुक्त होता है। ये बात जानते हुए भी दरबार के आदमियों ने आकर लोगों को इकठ्ठा किया और टैक्स चुकाने का दबाव बनाया। गाँव के बुजुर्गों ने उन्हे समझाया कि ये तो सांसण गांव है! हर भांति के कर-लगान इत्यादि से मुक्त, आप यहाँ नाहक ही आए! यहाँ सिरोही राज्य के कानून नहीं बल्कि हमारे ही कानून चलते हें और यही विधान है।[…]

» Read more
1 2 3 23