शहीद दलपतसिंह शेखावत

जोधपुर रियासत रा देसूरी परगना रा देवली गांव रा शेखावत हरजीसिंह जी, महाराजा साब जसवंतसिंहजी अर सर प्रताप रा घणा मर्जींदान मिनख हा। आप आपरै जीवन रो घणो समय आं सर प्रताप रै साथै रावऴी सेवा में ही बितायो। आं हरजीसिंहजी रे दो बेटा मोभी दलपत सिंहजी अर छोटा जगतसिंहजी हां। हरजीसिंह जी री असामयक मौत हुवण रै बाद दोनां भाईयां री पढाई भणाई रो बंदोबस्त सर प्रताप करियो अर दलपत सिंह जी मेजर जनरल रा पद पर आसीन हुवा।[…]

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चारण मनोहरदास नांदू (गांव – सुरपाऴिया, नागौर)

इतिहास में केई काऴ भुरजाऴ जंगी जोधारां रा संगी साथी ऐहड़ा कण पाण वाऴा अर आत्म बलिदानी होवता हा कि उणानै आपरै स्वामी री भक्ति आगै आपरो जीवण तोछो लखावतो अर बखत जरूरत माथै बलिदान देवण में कदैई शंकै अर हबक नें नैड़ी नीं आवण देवता। आज इतियास रा ऐहड़ा शूरवीर री चतुराई अर वीरत री वारता रो लेखो जोखो आंके करावां सा।[…]

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।।कहाँ वे लोग, कहाँ वे बातें।। – राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)

ऐक बार डीडिया गांव के न्यायाधीस श्रीमान लक्ष्मीदानजी सान्दू साहब से मिलने हेतु श्रीमान अक्षयसिंहजी रतनू साहब गये। उस समय जज साहब ने कहलवाया कि मेरे पास अभी मिलने के लिए समय नही है। यह उत्तर सुनकर रतनू साहब उसी समय वापस आ गये और उन्होने प्रत्यूतर में दो कवित्त मनहर बना कर प्रेषित किए। कवित्त में इस घटना की तुलना समाज के दो शिरोमणी रत्न सुप्रसिध्द इतिहासकार कविराजा श्यामलदासजी दधवाड़िया जो कि उदयपुर महाराणा के खास सर्वेसर्वा थे और दूसरे जोधपुर के कविराजा श्रीमुरारीदान जी आशिया जो कि जोधपुर कौंसिल के आला अधिकारी भी रहे थे, से की।[…]

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चित्तौड़ का साका और राव जयमलजी – राजेंन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा-सीकर)

जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र दूदाजी के वंश के जयमलजी मेड़तिया युध्द विद्या में प्रवीण विसारध हुए जो प्रतापी राव मालदेव से अनेक युध्द करके उनके हमलों व अत्याचारों से तंग आकर मेड़ता छोड़कर उदयपुर महाराणा उदयसिंहजी की सेवा में चले गए एवं वहां पर अपनी शौर्य वीरता दिखाकर स्वर्णिम इतिहास में नाम कायम कर दिया। आज भी यदा कदा चित्तौड़ की वीरता की गाथाओं के साथ जयमलजी का नाम जरूर आता है।

जयमलजी वीर के साथ साथ भगवान चारभुजा नाथ के बहुत बड़े भक्त भी थे। भक्तमाल मे भी उनका वर्णन आता है किः…..

जै जै जैमल भूप के,
समर सिध्दता हरी करी।।
**
मेड़ता आदि मरूधर धरा,
अंस वंस पावन करियौ।
जयमल परचै भगत को,
इन जन गुन उर विस्तरियो।।

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अटल स्वातंत्र्य उपासक महाराणा प्रताप

अनूठी आन, बान एवं शान वाला यह राजस्थान प्रांत शक्ति, भक्ति एवं अनुरक्ति की त्रिवेणी माना जाता है। यहां का इतिहास शौर्य एवं औदार्य के लिए विश्वविख्यात रहा है। यहां जान से बढ़कर आन तथा प्राण से बढ़कर प्रण की शाश्वत परम्परा रही है। राजस्थान की इस तपोभूमि की कुछ ऐसी विशेषताएं रही हैं, जो अन्यत्र दुर्लभ है। यहां के वीरों ने धरती, धर्म, स्त्री एवं असहायों की रक्षार्थ मरने को मंगल माना; यहां की वीरांगनाओं ने अपनी कंचन जैसी काया का मोह त्यागते हुए अपने हाथों अपना सीस काट कर वीर पतियों को प्रणपालन का अद्वितीय पाठ पढ़ाया; यहां के संतों ने जन-जन की जड़ता को दूर करते हुए मानवधर्म की अलख जगाई; यहां के साहित्यसेवकों ने राजा से रंक सभी को कर्तव्यपथ पर अडिग डग भरने की सुभट सीख दी। जीवन से अत्यधिक मोह होते हुए भी काम पड़ने पर मरने से मुंह नहीं मोड़ कर सिंधुराग पर रीझते उन वीरों की मरदानगी की मरोड़ देखते ही बनती है। दुनिया में दूसरी जगह शायद ही ऐसा उदाहरण हो जहां वचन प्रतिपालन हेतु विवाह के ‘कांकण डोरड़े’ खोले बिना ही दूल्हे ने चंवरी में ‘राजकंवरी’ को छोड़कर ‘भंवरी’ की पीठ पर सवार हो युद्धभूमि की ओर प्रस्थान किया हो।[…]

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म्है दाण नीं ! प्राण देवूंला

माड़वो पोकरण रै दिखणादै पासै आयोड़ो एक ऐतिहासिक गांम है। जिणरो इतिहास अंजसजोग अर गर्विलो रैयो है। पोकरण राव हमीर जगमालोत ओ गांम अखै जी सोढावत नै दियो। जिणरी साख री एक जूनै कवित्त री ऐ ओल़्यां चावी है-

हमीर राण सुप्रसन्न हुय, सूरज समो सुझाड़वो।
अखै नै गाम उण दिन अप्यो, मोटो सांसण माड़वो।।

इणी अखैजी रै भाई भलै जी रै घरै महाशक्ति देवल रो जनम हुयो-

भलिया थारो भाग, देवल जेड़ी दीकरी।
समंदां लग सोभाग, परवरियो सारी प्रिथी।।

ओ ई बो माड़वो है जठै भगवती चंदू रो जनम हुयो जिण सांमतशाही रै खिलाफ जंमर कियो। इणी धरा रा सपूत मेहरदान जी संढायच आपरी मरट अर स्वाभिमानी चारण रै रूप में चौताल़ै चावा रैया हा।[…]

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जोगीदास भाटी की कटारी

…..इनके पुत्र जोगीदास भाटी बड़े वीर पुरुष हुए थे और महाराजा के बड़े विश्वस्त रहे थे तथा साहस में अपने पिता से भी बढकर हुऐ थे। वि.सं.१६६८ में बादशाह जहाँगीर की फौजे दक्षिण भारत की और कूच कर रही थी, जिसमें सभी रियासतों की सेनाएं भी शामिल थी। आगरा से दक्षिण में एक जगह पड़ाव में एक विचित्र घटना घटी। आमेर के राजा मानसिंह के एक उमराव का हाथी मदोन्मत हो गया और संयोग से जोगीदास भाटी का उधर से घोड़े पर बैठकर निकलना हो गया। उस मतगयंद ने आव देखा न ताव लपक कर जोगीदास को अपनी सूंड में लपेटकर घोड़े की पीठ से उठाकर नीचे पटका और अपने दो दांतों को जोगीदास की देह में पिरोकर उपर की तरफ उठा लिया।
“जोगीदास भाटी नें हाथी के दांतों में बिंधे और पिरोये हुये शरीर से भी अपनी कटारी को निकालकर तीन प्रहार कर उस मदांध हाथी का कुंभस्थल विदीर्ण कर डाला” […]

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चोर निदाणै कै न्हासै!!

पुराणो जमानो मारकाट, लूट खसोट, दाबा मसल़ी रो हो अर्थात जिण री डांग उणरी ई भैंस! कणै लोग घात प्रतिघात कर लेता इणरो ठाह ई नीं लागत़ो। ऐहड़ो ई घात प्रतिघात रो एक किस्सो है तणोट रै राजकंवर देवराज भाटी रो।
देवराज भाटी भटींडै रै वराह राजपूतां रै अठै जान ले परणीजण गयो। वराह रै मन में भाटियां रै प्रति खारास उणां देवराज अर बीजै भाटियां साथै घात तेवड़ी अर पूरी जान रो धोखै सूं घाण कर दियो पण जोग सूं आ सुल़बल़ देवराज री सासू सुणली! उणरै मन में आपरी बेटी री ममता जागगी। बा नीं चावती कै कालै हाथ पील़ा किया अर आज उणरी बेटी लंबी पैरै! उण आपरी बेटी नैं विधवा होवण सूं बचावण सारु ‘आल’ राईकै नै बुलायो अर कैयो कै ‘देवराज नै रातो -रात कठै ई ऐहड़ी जागा छोडर आव जठै उणनै जीव रो जोखो नीं होवै। ‘ आल आपरी ‘जाणक’ सांढ माथै देवराज नै चढाय टुरियो जिको भटींडै सूं रात-रात में पोकरण री घाटी जाल़ां में पूगग्यो। अठै सांढ बेल़ास रो भार झाल नीं सकी जणै आल देवराज नै कैयो ‘भलांई म्हनै अठै उतारदो अर सांढ आप ले जावो अर भलांई आप अठै जाल़ां में उतर जावो अर सांढ म्हनै ले जावण दो, क्यूंकै अबै सांढ बेल़ास (दो सवार) रो भार झेल नीं सकै ! ‘  जणै देवराज कैयो कै ‘सांढ तूं लेय जा अर म्हनै अठै उतारदे। ‘[…]

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रैवूं तो कांई? म्है अठै पाणी ई नीं पीवूं!!

भलांई आदमी किणी री मदत करण रै ध्येय सूं उणरो मदतगार बणर जावो पण साम्हली जागा पोल अर कमजोरी देख कणै मदत करणियो दुस्मण बण बैठे कोई ठाह नीं लागे। मंडोवर सूं राव रिड़मल आपरी बैन हंसाबाई रै कैणै सूं बाल़क राणै कु़भै री मदत करण गयो पण उठै जाय रिड़मल देखियो कै सिसोदियां रा हाल सफा माड़ा है। चाचा अर मेहरो किणी री गिनर नीं कर रैया है। रिड़मल रै खांडै में तेज हो, उणां री भुजावां में बल़ हो। उण बेगो ई आपरो प्रभाव जमा लियो। कुंभै रै वैरियां नैं गिण गिण मोत रै घाट उतार दिया। ऐहड़ै संक्रमण काल़ में रिड़मल इतरो ताकतवर होयग्यो कै बो किणी री गिनर नीं करतो। सिसोदिया शंकित रैवण लागा अर उणांनै डर लागण लागो कै कठै ई रिड़मल ‘आई तो ही छाछ मांगण अर बण बैठी घर धणियाणी ‘ वाल़ी गत नीं कर देवै। आ नीं होवै कै चित्तौड़ रा धणी राठौड़ बण बैठे!!
उणां आ बात राजमाता हंसाबाई अर राणा कुंभा नै बताई अर ऊंधा-सूंव भल़ै भ्रमाय उणां नै रिड़मल रै पेटे पूरा शंकित कर र रिड़मल नै मारण सारु मून हां भरायली। पण सिंह रै मूंडै में हाथ कुण देवै। […]

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म्हांरै जीवतां डंड भरावै! उणां री भुजां में गाढ चाहीजै!!

भारत रै इतिहास अर विशेषकर राजस्थान रै इतियास में चहुवांणां रो नाम ऊजल़ो। गोगदेव, अचल़ेश्वर पृथ्वीराज, कान्हड़देव, वीरमदेव, मालदेव बणवीर, हम्मीर, कान्हो डूंगरोत, सांवल़दास-करमसी जैड़ा अनेक सपूत चावा रैया है। किणी कवि कैयो है-

गोकल़ीनाथ जग जापिये, कान्हड़दे मालम करै।
ए राव सुखत्री ऊपना, चवां वंश चहुवांण रै।।

चहुवांणां री एक शाखा ‘वागड़िया चहुवांण’। इण शाखा में मुंधपाल मोटो मिनख होयो। इणी मुंधपाल री वंश परंपरा में बालो अर बालै रै डूंगरसी होयो। डूंगरसी, राणै सांगै रै मोटै सामंतां में शुमार। जिणरै बदनोर पटै। डूंगरसी कई जुद्धां में आपरी वीरता बताई।[…]

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