।।कहाँ वे लोग, कहाँ वे बातें।। – राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)

समाज में हर जगह पर ही बड़े-छोटे, अगड़े-पिछड़े, अमीर-गरीब, शिक्षित-अनपढ, गोरे-काले व महबी भेदभावादि पाये जाते है और इनकी वजह से कभी कभी व्यक्ति के मूल्यांकन में त्रुटि भी रह जाती है। कई बार व्यक्तित्व की सही पहचान नही होनै या अपने अहंकार की वजह से भी मनुष्य से चूक हो जाती है तथा उसका परिणाम भी सही नही होकर गलत हो जाता है। ऐसा ही एक बार माननीय श्रीमान अक्षयसिंहजी रतनू और श्रीमान लक्ष्मीदानजी सांदू डीडिया न्यायाधीस के बीच का वाकया।

ऐक बार डीडिया गांव के न्यायाधीस श्रीमान लक्ष्मीदानजी सान्दू साहब से मिलने हेतु श्रीमान अक्षयसिंहजी रतनू साहब गये। उस समय जज साहब ने कहलवाया कि मेरे पास अभी मिलने के लिए समय नही है। यह उत्तर सुनकर रतनू साहब उसी समय वापस आ गये और उन्होने प्रत्यूतर में दो कवित्त मनहर बना कर प्रेषित किए। कवित्त में इस घटना की तुलना समाज के दो शिरोमणी रत्न सुप्रसिध्द इतिहासकार कविराजा श्यामलदासजी दधवाड़िया जो कि उदयपुर महाराणा के खास सर्वेसर्वा थे और दूसरे जोधपुर के कविराजा श्रीमुरारीदान जी आशिया जो कि जोधपुर कौंसिल के आला अधिकारी भी रहे थे, से की। उक्त दोनो ही सरदार उच्च पदासीन व रसूख रूतबा धारी होने के उपरान्त भी समाज के सभी जनों से सरलता सहजता सादगी से मिल कर आवश्यक मदद इमदाद को हरदम तत्पर रहते थे। इनका उदाहरण देकर जज साहब को भेजकर एक सन्देश दिया ताकि आगे भी जो उच्च पदाधिकारी चारण हो वह मगरूरि न रखे और अपनी काबलियत के कारण समाज के सदैव काम आये।

।।मनहर कवित्त।।
श्रीयुत् मुरार मारवाड़ में मिनिस्टर भौ,
मिलतो भुजा पसार जाको जस जानौ ना।
मुख्यमंत्री कविराजा सांवऴ उदयपुर को,
करतो लिहाज रच्यो छात्रालय छानौ ना।
योग्य जन जान तुम्हें मिलबे को आवें तिन्हे,
टाईम नही है, कहैं यों तो ठकुरानौ ना।
लक्ष्मीदान जाति प्रेम उर में न आनो तो भी,
मानव तो मानो हमें पशु तो प्रमानो ना।।

छोटी हो कि मोटी नामी धामी तो भी नौकरी तो,
आखिर गुलामी तापें ऐंठ इति ठानौ ना।
बिछुरे परे है यदि जैपुर के चारण तो,
चाहिये उठानो उल्टी लात तो लगानो ना।
फुरसत पावें आप हम तो न चाहें कभी,
पेन्सन भये तें कोई पास फटकानों ना।
उच्चपद आन जाति जन को प्रमानो तुच्छ,
लक्ष्मीदान दक्ष अभिमान ऐतो आनौ ना।।

~~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)

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One comment

  • महावीर सिंह सांदू

    सुंदर कवित्त।
    इसी प्रकार एक बार अक्षय सिंह जी रतनू , श्री कैलाश दानजी उज्जवल से मिलने उनके बंगले पधारे , पर वहाँ जर्मन शेफर्ड कुत्ते के कारण अंदर नहीं आ सके व बाहर से ही लोट गये। फिर उन्होंने एक दोहा लिख भेजा;

    उंची ले अरदास ने, पूगे नर तो पास।
    थें वोने बि़दकाणने, कुता पाल्या कैलाश।।