पीठवा चारण और जैतमाल राठौड़

।।दोहा।।
पावन हूवौ न पीठवौ, न्हाय त्रिवेणी नीर।
हेक जैत मिऴियां हूवौ, सो निकऴंक सरीर।।

पीठवा चारण कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। इस कुष्ठ रोग से बहुत ही दुःखित होकर उससे छुटकारा पाने के लिए कितने ही तीर्थादि कर आया परन्तु उसका रोग नही गया। ज्यों ज्यों दवा की, मर्ज बढता ही गया। उसने सुना कि रावल मल्लीनाथ का छोटा भाई सिवाणां का राजा जैतमाल जो कि भगवान का बड़ा भक्त था उसके स्पर्श से कोढ रौग दूर हो सकता है।[…]

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महात्मा सिध्द अलूनाथजी द्वारा प्रसिद्ध त्यागमूर्ति बाबा गणेशदासजी गूदड़ी वालों को दृष्टि-दान !!

त्यागमूर्ति श्री गणेशदास जी विक्रमी संवत १९३३ फाल्गुन शुक्ला पंचमी को जयपुर में ब्रह्मलीन हो गए थे। इन्हे अपने निर्वाण से ऐक दशक पहले नेत्र व्याधि होकर दृष्टि सम्पुर्णतः बंद हो गई थी तथा संसार असार हो गया था। इन्है अल्लूनाथजी का इष्ट था तथा वे कभी कभार जसराणा उनकी समाधि पर भी जाया करते थे। एक बार अकस्मात वे अल्लूजी को याद करने लगे और येन केन जसराणा समाधि पर पहुंच कर भाव विभोर होकर अरदास करने लगे।[…]

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रूपग गोगादेजी रो – आढा पहाड़ खान

।।छंद – मोतीदाम।।
वडवार उदार संसार वषाण।
जोधार जूंझार दातार सुजाण।
दला थंभ वीरम तेज दराज।
साजै दिन राजै ऐ सूर समाज।।[…]

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सिध्द सन्त महात्मा ईसरदासजी

अमरेली के बजाजी सरवैया के कुंवर करणजी सरवैया के विवाह के दौरान सर्पदंश से हुई असामयिक मौत पर उनके घर से अर्थी उठाकर शमशान भूमि यात्रा पर जाते समय रास्ते में विवाह समारोह में शामिल होने के लिए आते हुए महात्मा ईसरदासजी मिले। यह अणचींती बात सुनकर उनको बहुत ही आघात लगा और उन्होने अपने योग सिध्दी और तपस्याबल से कुंवर को पुनः जीवित करने का संकल्प कर अर्थी को जमीन पर रखवा कर हठयोग साधना द्वारा निम्नांकित गीत कहा:[…]

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खरी कमाई खाय – कवि मोहन सिंह रतनू

खोटा रूपया खावतो, जावे सीधो जेल।
मिल जावे रज माजनो, बंश होय बिगड़ैल।।1
खोटा रूपया खावतो, लगे एसीबी लार।
निश्चय जावे नौकरी, बिगड़ जाय घरबार।।2
खोटा रूपया खावतो, चित्त में पड़े न चैन।
रात दिवस चिन्ता रहे, नींद न आवे नैन।।3
खोटा रूपया खावतो, खून ऊपजे खार।
घर कुसंप झगड़ो घणो, पूत जाय परवार।।4[…]

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गीत नाहरसिंह जी माथै – कवि डूंगर दान आशिया

परम श्रद्धेय ठाकुर नाहरसिंह जी माथै डिंगल़ रा सिरै कवि आदरणीय डूंगरदानजी आशिया री एक रचना- ठाकर नाहर सिंह जी जैङौ भलौ,अपणायत हितैषी अर विनम्र राजपूत इण समय में कीकर जलमीयो,ऐङा राजपूत तौ पांच सौ सातसौ वरसां पैली हुआ करता। इण भाव रौ एक गीत नजर।

।।गीत।।
पांच सातसौ वरसां पैली,
जणवा नाई खाती जाट।
जात जात री माटी जिणसूं,
घङवा लग्यो विधाता घाट।।1।।

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चारन की बानी – डूंगरदानजी आसिया

स्वर्ण की डरीसी शुद्ध साँचे में ढरीसी मानो,
इन्द्र की परीसी एही सुन्दर सयानी है।
विद्या में वरीसी सरस्वती सहचरी सी,
महाकाशी नगरीसी सो तो प्रौढ औ पुरानी है।
जीवन जरीसी वेद रिचाऐं सरीसी गूढ
ग्यान गठरीसी अति हिय हरसानी है।
सांवन झरीसी मद पीये हू करीसी सुधा
भरी बद्दरी सी ऐसी चारन की बानी है।।१

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डिंगल़ वाणी में भगवती इंद्र बाई

माँ भगवती लीलाविहारिणी इन्द्रकुँवरी बाईसा का जन्म संवत १९६४ में हुआ था उनके भक्त कवि हिंगऴाजदानजी जागावत ने अवतरण की ऐक प्रसिध्द रचना चिरजा सृजित की है जिसमें विक्रम संवत १९६३ के आश्विन नवरात्रो में माँ हिंगऴाज के स्थान पर सभी देवियों की पार्षद भैरव सहित परिषद लगती है, उस परिषद में भैरव माँ को ज्ञापित करते हैं कि मरूधर देश में अवतार की आवश्कता है, भगवती हिंगऴाज अपनी अनुचरी आवड़ माँ को आदेश देकर सही स्थानादि बताकर मरूधरा में अवतार के लिए प्रेरित करती है व भगवती आवड़ अवतरित हो भक्तवत्सला बनती है अद्भूत कल्पना व शब्दों का संयोजन है रचना में यथाः…..

।।दोहा।।
सम्वत उन्नीसै त्रैसट्यां, साणिकपुर सामान।
शुक्ल पक्ष आसोज में, श्री हिंगऴाज सुथान।।

इसके ठीक नवमास बाद आषाढ शुक्ला नवमी को भगवती का अवतरण निर्दिष्ट स्थान पर हो जाने के बाद विभिन्न कवेसरों ने सहज सुन्दर व सरस सटीक वर्णन किया है यथा कुछ दृष्टान्त:[…]

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आईनाथ(तैमड़ै राय)री ओलग – कवि स्व. भँवरदान जी वीठू “मधुकर” (झणकली)

पग पग ओरण डग डग परचा, सब जग सुजस सुणावै हो।
आद भवानी मात आवड़ा, अवलु थारी आवै हो।
दैवी हैलो दै।।(1)

वेद विधाता शेंष सुरसती, गणपत किरत गावै हो।
भुचर खेचर बावन भेरू, थारो हुकम वजावै हो।
दैवी हैलो दै।।(2)

ऊंचो देवल धजा ऊधरी, हरदम होरां खावै हो।
घोर नगारों निर्मल घाटी, गगन घुरावै हो।
दैवी हैलो दै।।(3)[…]

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देशनोक-दर्शन – भलदान जी चारण

।।छप्पय।।
पोखर मथुरापुरी, सेत बंधण रामेसर।
कर बदरी केदार, अधिक आबू अचलेसर।
पापां गमण प्रयाग, गया गंगा गोमती।
मुकतिदेण सुरमात, सकल महिमा सुरसत्ती।
कुरूक्षेत्र नाथ कासी सकल,
जात घणा जुग जीविया।
करनला आप दरसण कियां,
कवि केता तीरथ किया।।[…]

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