पीठवा चारण और जैतमाल राठौड़

।।दोहा।।
पावन हूवौ न पीठवौ, न्हाय त्रिवेणी नीर।
हेक जैत मिऴियां हूवौ, सो निकऴंक सरीर।।
पीठवा चारण कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। इस कुष्ठ रोग से बहुत ही दुःखित होकर उससे छुटकारा पाने के लिए कितने ही तीर्थादि कर आया परन्तु उसका रोग नही गया। ज्यों ज्यों दवा की, मर्ज बढता ही गया। उसने सुना कि रावल मल्लीनाथ का छोटा भाई सिवाणां का राजा जैतमाल जो कि भगवान का बड़ा भक्त था उसके स्पर्श से कोढ रौग दूर हो सकता है।[…]
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