भगवान ना ओळुम्भा २०२५ मे काळ पड़ने पर – कवि स्व. भँवरदान जी वीठू “मधुकर” (झणकली)

॥छन्द जात झुलणा॥

अनादी वखत सूं तुमारी आस पर, जला कर अटल विश्वास जोती।
मरुधरा वासीयां कष्ट मोटा आया, पेट बांधे पढी पोथी।
ग्वाळ गोपाळ रा गीत गाया उठे, आज क्यां धेन माता उदासी।
आफती निवारण आवजो ईश, जगदीश वर तुम्हारी पेट जासी,
ए प्रभु पेट पाल्यां बिना पेठ जासी ॥१॥ […]

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पाबू प्रशंसा – कवि स्व. भंवर दान जी, स्व.अनौपदान जी झणकली कृत

।।गीत सपाखरौ।।

दैवलौक सुं उतरी एला, हीसती वाजींद दैख ।
धायौ खींची जींधराव, मीशणा रा द्वार।
हैवरी रै मौल रौकङा, धाम्या कै हजार ।
एहंगा नाकार सुणै रूठियौ अपार……. 1 […]

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🌹शारदा स्तुति🌹- कवि स्व. अजयदान जी रोहडिया कृत

🌸छंद रेणंकी🌸
निरमल नव इन्दु बदन विलसत भल, द्रग खंजन मृग मद दलितम्।
कुम कुम वर भाल बिन्दु कल भ्राजत, तन चंदन चरचित पुनितम्।
झल़कत अरू झल़ल़ झल़ल़ चल लोलक, लसत सु श्रवण ललाम परम्।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।१

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🌹जय करनी जय शंकरनी🌹- कवि स्व. अजयदान जी रोहडिया

🌸दोहा🌸
जग करनी, हरनी जगत, जग भरनी जगदंब।
किनियांणी करनी नमो, काटनि क्लेश कदम्ब।। १
देत बुआ सिर डूचको, अंगुलिन भइ अनुरूप।
नाम करनी या तें दियौ, लख निज करनि अनूप।। २

🌸छंद रेणंकी🌸
बरनी नहि जाय विशद तव करनी, आदि शक्ति नति अघ हरनी।
हरनी मद मोह, कोह तम तरनी, युग युग अवतरनी धरनी।
धरनी कर त्रिशुल मुण्ड निर्जरनी, धूर्त धृष्ट जग वध करनी।
करनी जन कष्ट नष्ट कलि करनी, जय करनी!जय शंकरनी।। १[…]

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जल संरक्षण बाबत सवैया – कवि वीरेन्द्र लखावत कृत

आप बचाय लहो इतरौ जळ जा सूं बचै सब री जिन्दगाणी।
नेह सूंमेह रौ नीर घरै संचय करणा री सबै समझाणी।
पालर पाणी री एक एक बूंद रौ लेखौ लियां ई बचैला पाणी।
होद बणा हर एक ई आंगण मांगण री मत राख मचाणी ।।[…]

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🌹सरस्वती वंदना🌹- कवि स्व अजयदान जी लखदान जी रोहडिया

🌹छंद नाराच🌹
घनान्धकार नाशिनी विनाशिनी विमूढता।
प्रज्ञा प्रदायिनी प्रकाश वर्धनी प्रगूढता।
हरि हरादि पूजिता, विरंचि वंदिता अति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १

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आउवा सत्याग्रह – वंश भास्कर

उमामूर्ति थप्पी सु पूजि अब, सप्तम दिन बित्तत जिम्मे सब।
अंबा की प्रतिमा के अग्गैं, ज्वलन हविस्य धूप जहं जग्गैं।।
बाद्य पटह दुन्दुभि मुख बग्गैं, लक्खन बिध पद्यन नुति लग्गैं।
भीरु सुनत सिंधुन स्वर भग्गैं, मरुप उदय पीठहु डगमग्गैं।।
अस्त्रन मैं हु उमा आवाहन, करिकरि कढ्ढि जजन लग्गे जन।
बैठैं सबन निसा सु बिहाई, इम इच्छित बेला ढिग आई।।
अर्धउदित रवि जानि तजन असु, सिवगृह सिर थप्प्यो गोविन्द सु।
खिल रहि मैं न लखो इतनों खय, इम गल छेदि गिर्यो सु इनोदय।।
पिक्खि गिरत गोबिंदहि दृढपन, तित तित मरन लगे जाचक जन।
वह खाटिक दुल्लह बिच आयो, बप्प तनय जुग मरन बतायो।।

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इन्द्रवा रा सोरठा – डॉ. शक्तिदान जी कविया कृत

नर नारी मे नेह. घर मे व्हे संपत घणो।
गिणो सुरग ज्यू गेह. अंतस भरियो इन्द्रवा।।१
धौलो दूध न धार, सब पीलो सोनो नही।
सांग घणा संसार, ओलखणा झट इन्द्रवा।।२
घण सुख री घडियोह, सगली दुनिया साथ दे।
पण अबखी पडियोह, आवै विरला इन्द्रवा।।३
माथे रो अभिमान. पगां पडतो पेखियो।
सब दिन व्हे न समान.आ मत भूले इन्द्रवा।।४

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🌹गणितिक प्रहेलिका काव्य🌹

समंदर में २८ नाविक एक जहाज में थे| जहाज जब डूबने लगा तो नाविक कहने लगे की इस जहाज में से अगर चौदह आदमी कम होंगे तभी नाव किनारे तक पहुँचेगी वरना सारे डूब जाएगे| तो जो चौदह हब्शी (अश्वेत) नाविक थे वे श्वेत नाविक लोगों को बलात बाहर फेंकने लगे तो एक चतुर श्वेत अंग्रेज को युक्ति सुझी और उसनें सबको समझाया कि कृपया झगडे नहीं| उसने सबको कहा कि हम सब २८ लोग एक वर्तुल बनाकर बैठते है फिर मैं गिनती करके नौ(९) नंबर तक गिनुंगा| जिसका गिनती में नवां नंबर आएगा उस को समंदर में फैक देंगे| इस तरह एक से लगाकर नौ तक की गिनती हम चौदह बार करेंगै| श्वेत अंग्रेज की इस बात के छलावे में सारे निग्रो(अश्वेत) लोग आ गए, और गिनती में जिसका नंबर ९ आए उसने समंदर में कूदना पडेगा इस बात को कुबूल कर लिया|

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गडरा

बाड़मेर जिले का सीमांत गांव गडरा, जो कि न केवल हमारे देश की सीमा पर स्थित सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि इसका इतिहास भी मातृत्व, वीरता युक्त शान्ति और सह-अस्तित्व की भावना के कारण आज भी सुप्रसिद्ध हैं। वर्तमान में गडरा रोड़ भारत में हैं, जबकि गडरा सीटी पाकिस्तान में स्थित हैं जो कि आजादी से पहले एक ही हुआ करता था। इसका उल्लेख कुछ इस तरह मिलता हैं कि किसी समय में यहाँ घना जंगल था जिसमें भयंकर जंगली और विषेले जानवर रहते थे। जंगल के आस पास ढाणियों में रहने वाले लोग भेड़-बकरियाँ रखते थे। बताते हैं […]

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