नसीहत री निसाणी – जाल जी रतनू

किसी का बिन जाणिये, विश्वास न कीजै।
गैणा गांठा बेच के, अन सूंगा लीजै।
पढवाचा कीजै नही, बिन मौत मरीजै।
ठाकुर से हेत राखके, हिक दाम न दीजै।
भांग शराब अफीम का, कोई व्यसन न कीजै।
दुसमण की सौ बीनती, चित्त ऐक न दीजै।

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गीत कुशल जी रतनू रे वीरता रो बगसीराम जी रतनू रचित

राजस्थान मे चारण कवि ऐक हाथ मे कलम तथा दूसरे हाथ मे कृपाण रखते थे। महाराजा मानसिंह जी जोधपुर के कहे अनुसार रूपग कहण संभायो रूक। ऐक बार मानसिंह जी का भगोड़ा बिहारी दास खींची को भाटी शक्तिदान जी ने साथीण हवेली मे शरण दी, इस पर मान सिह जी ने क्रुद्ध होकर फोज भेज दी। शरणागत की रक्षा हेतु भाटी शक्तिदान जी ऐवं खेजड़ला ठाकुर सार्दुल सिंह जी ने सामना किया। इस जंग मे मेरे ग्राम चौपासणी के उग्रजी के सुपुत्र कुशल जी रतनू ने पांव मे गोली लगने के बाद भी युद्व किया।
उनकी वीरता पर तत्कालीन कवि बगसीराम जी रतनू ने निम्नलिखित डिंगल गीत लिखा जो यहाँ पेश है।

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अमर रहे गणतन्त्र हमारा – राजेश विद्रोही

भाई का दुश्मन है भाई
मन्दिर मस्जिद हाथापाई
हिन्दुस्तानी सिर्फ रह गये
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई
कौमी यकजहती रोती है
गया भाड़ में भाईचारा।
मगर हमें इन सब से क्या है
अमर रहे गणतंत्र हमारा।।[…]

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पुस्तक समीक्षा – प्रकृति-संस्कृति री ओपती सुकृति-‘रूंख रसायण’ – महेन्द्रसिंह सिसोदिया ‘छायण’

पुस्तक समीक्षा – प्रकृति-संस्कृति री ओपती सुकृति-‘रूंख रसायण’ – महेन्द्रसिंह सिसोदिया ‘छायण’
लेखक – डॉ. शक्तिदान कविया

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वैवाहिक गीत – बनासा री मदील मिजाज करे छै – भक्तिमति समान बाई

बना सा री मदील मिजाज करै छै।
सिया निरखत मोद भरै छै, रघुवर री मदील मिजाज करै छै।।

सबहि सहेल्यां चढत महल में, सबहि झरोकाँ झुकै छै।
या छबि देखी राम बना री, चंदा री ज्योत छिपै छै।।
बना सा री मदील……………

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बैश कीमती बोट – कवि मोहनसिंह रतनू (चौपासनी)

आगामी दिनो मे पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं, मतदान किसको करना हे इसके लिए कवि ने एक गाइडलाइन बनाई है। शांत सम्यक भाव से सही निष्पक्ष स्वंतत्र होकर मतदान करें।

दिल मे चिंता देश री,मनमे हिंद मठोठ।
भारत री सोचे भली,बी ने दीजो बोट।।

कुटलाई जी मे करै,खल जिण रे दिल खोट।
नह दीजो बी निलज ने,बडो कीमती बोट।।[…]

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जिंदगी और बंदगी

कर रहा हूँ यत्न कितने सुर सजाने के लिए
पीड़ पाले कंठ से मृदु गीत गाने के लिए
साँस की वीणा मगर झंकार भरती ही नहीं
दर्द दाझे पोरवे स्वीकार करती ही नहीं
फ़िर भी हर इक साज से साजिन्दगी करती रही
ऐ जिंदगी ताजिंदगी तू बन्दगी करती रही।[…]

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बीसहथ रा सौरठा – रामनाथ जी कविया

उभी कूंत उलाळ, भूखी तूं भैसा भखण।
पग सातवै पताळ, ब्रहमंड माथौ बीसहथ।।१
सौ भैसा हुड़ लाख, हेकण छाक अरोगियां।
पेट तणा तोई पाख, वाखां लागा बीसहथ।।२
थरहर अंबर थाय, धरहरती धूजै धरा,
पहरंता तव पाय, वागा नेवर बीसहथ।।३
पग डूलै दिगपाळ, हाल फाळ भूलै हसत।
पीड़ै नाग पताळ, बाघ चढै जद बीसहथ।।४
करनादे केई वार, मन मांही कीधो मतो।
हुकुम बिनां हिकवार, देसाणों दीठौ नहीं।।५[…]

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भैरवाष्टक – डॉ. शक्तिदान कविया

।।छंद – त्रिभंगी।।
नाकोडा वाला, थान निराला, भाखर माला बिच भाला।
कर रुप कराला, गोरा काला, तु मुदराला चिरताला।
ध्रुव दीठ धजाला, ओप उजाला, रूपाला आवास रमा।
भैरु भुरजाला, वीर वडाला, खैतर पाला दैव खमा।
जी खेतर पाला घणी खमा…।।1।।[…]

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लखमण जी ना छन्दों – कवि आसाजी रोहड़िया “भादरेश”

।।छंद – रूप मुकुंद।।
लखणेश महाभड़ लाज रो लँगर, धन्य धरा धर शेष धणी,
अम भार अपार उतारिय आवण, मानव देह अमूल मणी,
तात दशरथ मात सुमित्रण, ठीक अजोधाय धाम ठवा,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।1[…]

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