।।कहाँ वे लोग, कहाँ वे बातें।। – राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)

ऐक बार डीडिया गांव के न्यायाधीस श्रीमान लक्ष्मीदानजी सान्दू साहब से मिलने हेतु श्रीमान अक्षयसिंहजी रतनू साहब गये। उस समय जज साहब ने कहलवाया कि मेरे पास अभी मिलने के लिए समय नही है। यह उत्तर सुनकर रतनू साहब उसी समय वापस आ गये और उन्होने प्रत्यूतर में दो कवित्त मनहर बना कर प्रेषित किए। कवित्त में इस घटना की तुलना समाज के दो शिरोमणी रत्न सुप्रसिध्द इतिहासकार कविराजा श्यामलदासजी दधवाड़िया जो कि उदयपुर महाराणा के खास सर्वेसर्वा थे और दूसरे जोधपुर के कविराजा श्रीमुरारीदान जी आशिया जो कि जोधपुर कौंसिल के आला अधिकारी भी रहे थे, से की।[…]

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चौहान सूरजमल हाडा बूंदी

बून्दी का राव सूरजमल हाडा (सूर्यमल्ल) प्रसिध्द महाराणा सांगा की महाराणी कर्मवती का भाई था और सांगा के स्वर्गवास के बाद दो छोटे राजकुमार विक्रमादित्य और उदयसिंह की रक्षा व सम्हाल रणथम्भौर के किले में रहकर करता था। महाराणी कर्मवती भी वहीं रहती थी। राणा सांगा के बाद रतनसिंह द्वितीय मेवाड़ का महाराणा बना तो उसने कोठारिया के रावत पूर्णमल को रणथंभौर भेजकर बादशाह महमूद का रत्न जटित ताज और बेशकीमती कमरपट्टा, जो कि उसने महाराणा सांगा से हारने के बाद उनको भेंट किया था, अपने पास मंगाना चाहा, जिसे देने से महाराणी ने मना कर दिया तो इस बात से रतनसिंह सूर्यमल पर कुपित हुआ।[…]

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આઇ સોનલ – મયુર.સિધ્ધપુરા (જામનગર)

સંવત ૧૯૮૦ પોષ સુદ-૨ મંગળવારે રાત્રે ૮ઃ૩૦ વાગે જુનાગઢના કેશોદ તાલુકાના મઢડા ગામે ગઢવી શ્રીમાન હમીરભાઇ મોડને ધરે આઇ શ્રી રાણબાઇના કુખેથી પુજ્ય આઇમાં શ્રી સોનબાઇ માં નો જન્મ થયો.પુજ્ય આઇમાં એ જન્મ ધારણ કરીને પોતાના તુંબેલ કુળને,મોડવંશને, ચારણ જાતીને તેમજ સમાજના સર્વે વર્ગો જાતીને પવિત્ર કર્યા અને ઉજ્જવળતા શુધ્ધતા આપી.એમના જન્મથી આઇ રાણબાઇ ધન્ય બન્યા તથા આઇમા શ્રી સોનબાઇની જન્મદાત્રી માતાનું મહાન યશસ્વી પદ પામ્યા.[…]

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चित्तौड़ का साका और राव जयमलजी – राजेंन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा-सीकर)

जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र दूदाजी के वंश के जयमलजी मेड़तिया युध्द विद्या में प्रवीण विसारध हुए जो प्रतापी राव मालदेव से अनेक युध्द करके उनके हमलों व अत्याचारों से तंग आकर मेड़ता छोड़कर उदयपुर महाराणा उदयसिंहजी की सेवा में चले गए एवं वहां पर अपनी शौर्य वीरता दिखाकर स्वर्णिम इतिहास में नाम कायम कर दिया। आज भी यदा कदा चित्तौड़ की वीरता की गाथाओं के साथ जयमलजी का नाम जरूर आता है।

जयमलजी वीर के साथ साथ भगवान चारभुजा नाथ के बहुत बड़े भक्त भी थे। भक्तमाल मे भी उनका वर्णन आता है किः…..

जै जै जैमल भूप के,
समर सिध्दता हरी करी।।
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मेड़ता आदि मरूधर धरा,
अंस वंस पावन करियौ।
जयमल परचै भगत को,
इन जन गुन उर विस्तरियो।।

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स्वामी स्वरूपदास जी (शंकरदान जी देथा)

स्वामी स्वरूपदास चारण जाति की एक अप्रतिम प्रतिभा माने जाते हैं। इनका जन्म चारणों की मारू शाखा के देथा गोत्र वाले परिवार में हुआ। उन्होंने ३८ वर्ष की वय में वर्ष १८३९ ई. (तदनुसार विक्रम संवत १८९६) में हन्नयनांजन नामक ग्रंथ की रचना रतलाम शहर में की थी। इसके आधार पर उनका जन्म १८०१ ई. (वि.सं.१८५८) में हुआ। उन्होंने अपने ग्रंथ हन्नयनांजन के तृतीय सलाका के अंतिम भाग में स्वयं लिखा है-

महिपत की पंचवीसमी, जन्मगांठि सक जान।
उमर दास स्वरूप की, अष्टत्रिस उनमान।।
राग, रतन वसु चंद्रमा, संवत् विपर्यय रीत।
माघ कृष्ण तृतिया भयो, पूरन ग्रंथ सुप्रीत।।
[मैंने वि.सं.१८९६ की माघ कृष्णा तृतीया के दिन इस ग्रंथ को प्रेम पूर्वक सम्पूर्ण किया। यह अवसर रतलाम नरेश बलवन्त सिंह राठौड़ की पचीसवीं वर्ष गांठ का है और इस समय मुझ स्वरूपदास की वय अड़तीस वर्ष है। ] यदि वि.सं.१८९६ (१८३९ ई.) में ग्रंथ प्रणेता की उम्र अड़तीस वर्ष थी तो इस हिसाब से उनका जन्म वर्ष वि.सं.१८५८ (१८०१ ई.) हुआ।[…]

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कविवर जाडा मेहडू (जड्डा चारण)

कविवर जाडा मेहडू चारणों के मेहडू शाखा के राज्यमान्य कवि थे। उनका वास्तविक नाम आसकरण था। राजस्थान के कतिपय साहित्यकारों ने अपने ग्रंथों में उनका नाम मेंहकरण भी माना है। किंतु उनके वशंधरो ने तथा नवीन अन्वेषण-अनुसंधान के अनुसार आसकरण नाम ही अधिक सही जान पड़ता है। वे शरीर से भारी भरकम थे और इसी स्थूलकायता के कारण उनका नाम “जाड़ा” प्रचलित हुआ। जाडा के पूर्वजों का आदि निवास स्थान मेहड़वा ग्राम था। यह ग्राम मारवाड़ के पोकरण कस्बे से तीन कोस दक्षिण में उजला, माड़वो तथा लालपुरा के पास अवस्थित है। दीर्धकाल तक मेहड़वा ग्राम में निवास करने के […]

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पुस्तक समीक्षा – विडरूपता अर विसंगतियां रै चटीड़ चेपतो : ‘म्रित्यु रासौ’

यूं तो शंकरसिंह राजपुरोहित साहित्य री केई विधावां में लिखै पण इणां री असली ओळखाण अेक नामी व्यंग्य लेखक रै रूप में बणी। इणां रो पैलो व्यंग्य-संग्रै ‘सुण अरजुण’ बीसेक बरसां पैली छप्यो। औ व्यंग्य-संग्रै राजस्थानी साहित्यिक जगत में आपरी जिकी लोकप्रियता बणाई वा इणां रै समवड़ियै लेखकां नैं कम ई मिली। अबार शंकरसिंह राजपुरोहित जको व्यंग्य-संग्रै चर्चित है उणरौ नाम है- ‘म्रित्यु रासौ’।
‘म्रित्यु रासौ’ में कुल बीस व्यंग्य है। बीसूं ई व्यंग्य अेक सूं अेक बध’र अवल। बीसूं ई व्यंग्यां में मध्यम वर्ग री अबखायां अर भुगतभोगी यथार्थ जीवण रो लेखो-जोखो है तो दोगलापण, विडरूपतावां, देखापो, भोपाडफरी, छळछंद, पाखंड, अफंड आद रो सांगोपांग भंडाफोड शंकरसिंह राजपुरोहित कर्यो है।[…]

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लोक में आलोक के कवि डॉ आईदानसिंह भाटी

जैसलमेर के रेतिले गांव ‘ठाकरबा’ में जन्मे डॉ आईदानसिंह भाटी भले ही एक जाने-माने आलोचक और एक प्रखर कवि के रूप में समादृत हैं परंतु सही मायने में ये आज भी शहरी चकाचौंध में गंवई संस्कृति के प्रबल पैरोकार, संस्कारों को अपने में जीने वाले संजीदा इंसान के रूप में भी अपनी अलग पहचान रखतें हैं। वर्षों महाविद्यालयों में अध्यापन कराने व शहरी वातावरण में रहने के बावजूद भी गांव इनके जहन से निकल नहीं पाएं हैं। आज भी गांवों की आत्मीयता, अनौपचारिकता, बेबाकी, खुलापन, सहजता तो परिलक्षित होती ही है, साथ ही भाव व भाषा को भी पूरी शिद्दत के साथ अपनी पहचान बना रखा है।[…]

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एक दोहे ने कर दिया राव खेंगार का हृदय परिवर्तन

एक ऐतिहासिक घटना हेमचंद्राचार्य ने अपने ग्रंथ में अहिंसा के संदर्भ में लिखी है कि जूनागढ़ के चुडासमा शासक राव खेंगार प्रथम शिकार के बहुत शौकीन थे। इसलिए वे जीव हत्या भी बहुत किया करता थे। एक समय वे शिकार करने निकले। अपने लवाजमे सहित जूनागढ़ से बहुत आगे निकल गए एवं उनका लवाजमा काफी पीछे छूट गया और स्वयं काफी आगे निकल गए। अकस्मात एक हरिण पर उनकी नजर पड़ी तब भाला लेकर उसके पीछे घोड़ा दौड़ाया लेकिन हरिण के नजदीक पहुंच नहीं सके। हरिण तेज गति से दौड़ कर आगे निकल गया। तब राव खेंगार दोपहर तक पीछा करते हुए एक ऐसी जगह पहुंचे जहां आगे दो मार्ग आए, राव जूनागढ वाले मार्ग से आए। आगे दो मार्ग और निकले। उन तीन मार्गों के संगम पर बबूल का पेड़ था जिस पर ढुमण चारण बैठे थे। वहां राजा ने उन्हें देखा तब उनसे कि कहा अरे भाई! मेरा शिकार हरिण इन दो मार्गों में से कौनसे मार्ग पर गया है?[…]

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वीरता किणी री बपौती नीं हुवै!!

डिंगल़ रा सुविख्यात कवि नाथूसिंहजी महियारिया सटीक ई कह्यो है-

जो करसी जिणरी हुसी, आसी बिन नू़तीह!
आ नह किणरै बापरी, भगती रजपूतीह!!

अर्थात भक्ति अर वीरता किणी री बपौती नीं हुवै, ऐ तो जिको करै कै बखत माथै बतावै उणरी ईज हुवै। इणमें कोई जाति रो कारण नीं है। इण बात नै आपां दशरथ जाम (मेघवाल) री गौरवमयी बलिदान गाथा कै जोगै मेहतर री वंदनीय वीरता कै गोविंद ढोली रै अतोल त्याग कै झोठाराम पन्नू (मेघवाल़) रै बाहुबल़ री बातां रै मध्यनजर समझ सकां।[…]

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