डिंगल फेशन – कवि भंवरदान गढवी “मधुकर”

इण पढ्यो लिख्यो री पंगत में, जुनोड़ा आखर कुण जांणे।
नखरा कर नये जमांने रा, तिरछी हद रागां लो तांणे।।
जा जोर तमासा कर जितरा, जोवे जनता मन जोकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।१

ऊचे शब्दां रा अरथ करे, वो कूंत करणिया रैया कठे।
जुनी भाषा ने जांणणिया, अब देख किता सच कया अठे।।
तड़का बाजे लै ताड़ी रा, हाका कर लड़का होकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।२[…]

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कुबद्ध कमाई छोड बावल़ा!

कुबद्ध कमाई छोड बावल़ा!
मतकर भ्रष्टां होड बावल़ा!!
च्यार दिनां री देख चांदणी!
फैंगर मतकर कोड बावल़ा!!

लुकै नहीं अपराध लाखविध!
कूटीजै फिर भोड बावल़ा!!
लोकतंत्र में बिनां दावणै,
लेय तपड़का तोड बावल़ा![…]

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तूं मंदर-मंदर भटक मती!!

तूं मंदर-मंदर भटक मती!
यूं हर आगल़ सिर पटक मती!
टांग मती अपणायत ऊंची!
भाव स्नेह रा गटक मती!!
आश लियां आवै विश्वासी!
देय निराशा झटक मती!!!
ग्यान-गहनता बातां रूड़ी!
पतियायां तूं कटक मती!![…]

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टकै-टकै मत बेच

मोत्यां मूंघो माण जगत में
अर मोत्यां री कीमत भारी।
टकै-टकै मत बेच बावळा, आ जिंदगाणी लाख टकां री।।

लख चौरासी भटक बितायां
मिनख जूण रो मोको आवै।
करम देख करतार पूरबला
करमां सारू काज भुळावै।।
कर करणी भंूडी या सखरी
बही लिखीजै बंदा थारी।
टकै-टकै मत बेच बावळा, आ जिंदगाणी लाख टकां री।।01।।

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राणी पदमावती री गौरव गाथा

चित्तौड़ दुर्ग री बात चल्यां,
मन भारत माता मोदीजै।
पदमण रो पावन प्रेम पढ्यां,
हर हिंदुस्तानी गरबीजै।

वा रतन सिंह री रजपूती,
वा साख सपूती पदमण री।
गौरा-बादळ रो साम-धरम,
वा सीख सदीनै भलपण री।[…]

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जनतंत्र तो झाड़ छिंयाड़ी

जनतंत्र तो झाड़ छिंयाड़ी!
खावै गोधा हरियल़ बाड़ी!
गादी ऊपर तँत्र हावी!
जन री सांप्रत माड़ी भावी!
जन रै आडी जड़ी किंवाड़ी!
तंत्र अपणो बड़ो खिलाड़ी!
खादी कातण गांधी पचियो!
बदल़ै में अपजस ई बचियो!
चसमो जाणै कठै गम्यो है!
बिनां डांगड़ी डैण थम्यो है![…]

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गद्दार तुम्हारी खैर नहीँ जो हमसे पंगा मोल लिया

मानव होकर जो पशुओं का चारा तक खा जाते हैं,
नेकी को नाचीज़ समझकर दूर बिठाकर आते हैं,
जिनके दिल से संवेदन के तारों का संपर्क कटा,
जो लाचारों की आहों पर सेंक रोटियां खाते हैं।

इस धरती पर आने वाले वहीँ लौटकर जाएंगे,
गाड़ी, बंगले, सोना, चांदी पीछे ही रह जाएंगे,
विकलांगों की वैशाखी से काला माल कमाने वाले,
तेरी कब्र खोदने हम सब बिना मजूरी आएंगे।[…]

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माटी थनै बोलणौ पड़सी – कवि रेवतदान चारण

मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।
करणौ पड़सी न्याय छेड़लौ, माटी थनै बोलणौ पड़सी।

कुण धरती रौ अंदाता है, कुण धरती रौ धारणहार ?
कुण धरती रौ करता-धरता, कुध धरती रै ऊपर भार ?
किण रै हाथां खेत-खेत में, लीली खेती पाकै है ?
किण रै पांण देष री गाड़ी, अधबिच आती थाकै है ?
कहणौ पड़सी खरौ न खोटौ, सांचौ भेद खोलणी पड़सी।।
माटी थनै बोलणौ पड़सी।
मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।[…]

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इण आजादी री इज्जत नैं, म्हे राजस्थान्यां राखी है

प्रमाण अलेखूं पुख्ता है,
इतिहास जिकण रो साखी है।
इण आजादी री इज्जत नैं,
म्हे राजस्थान्यां राखी है।।

म्हैं इतिहासां में बांच्योड़ी,
साचकली बात बताऊं हूं।
घटना दर घटना भारत रै,
गौरव री गाथ सुणाऊं हूं।
इण गौरवगाथा रै पानां में,
सोनलिया आखर म्हारा है।
कटतोड़ा माथा, धड़ लड़ता,
बख्तर अर पाखर म्हारा है।[…]

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कवि की पहचान!!

कवियन के सिरताज, भूप के सदा प्रिय,
उकती उटीपी अहो धरा यश जानिये।
किसी की न परवाह बे चाह रहै सदाई,
वरदाई शारद के गावै गुनगानिये।
महाजन से मान देसोतन के सम कहो,
चहुंदिस वंदनीय मनो गुणखानिये।
दंभ नहीं द्वेष नहीं राग -अनुराग नहीं,
गिरधर सौभाग ऐसे महाकवि मानिये।।[…]

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