नेह रो दरियाव दिवलो

नेह रो दरियाव दिवलो,
गेह नै उपहार दे।
श्याम-बदना रात रै,
झट गात नै सिंणगार दे।
तन बाऴ जोबन गाऴ नै,
उपकार रै पथ प्रीत सूं।
ओ जीत रो जयकार दिवलो,
तिमिर नै ललकार दे।।[…]
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नेह रो दरियाव दिवलो,
गेह नै उपहार दे।
श्याम-बदना रात रै,
झट गात नै सिंणगार दे।
तन बाऴ जोबन गाऴ नै,
उपकार रै पथ प्रीत सूं।
ओ जीत रो जयकार दिवलो,
तिमिर नै ललकार दे।।[…]
साची बात कहूँ रे दिवला,
थूं म्हारै मन भावै।
दिपती जोत देख दिल हरखै,
अणहद आणंद आवै।
च्यारुंमेर चड़ूड़ च्यानणो,
तेज तकड़बंद थारो।
जुड़ियाँ नयण पलक नहं झपकै,
आकर्षक उणियारो।[…]
दिवला! इसड़ो करे उजास
जिणमें सकल निरासा जळ कर,
उबरै बधै ऊजळी आस।
मन रो मैल कळुष मिट ज्यावै,
वध-वध दृढै विमळ विश्वास ।
झूठ कपट पाखंड जळै सब,
पाप खोट नहं आवै पास।।[…]
ओढ्यां जा चीर गरीबां रा, धनिकां रौ हियौ रिझाती जा।
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा !
हळ बीज्यौ सींच्यौ लोई सूं तिल तिल करसौ छीज्यौ हौ।
ऊंनै बळबळतै तावड़ियै, कळकळतौ ऊभौ सीझ्यौ हौ।
कुण जांणै कितरा दुख झेल्या, मर खपनै कीनी रखवाळी।
कांटां-भुट्टां में दिन काढ्या, फूलां ज्यूं लिछमी नै पाळी।
पण बणठण चढगी गढ-कोटां, नखराळी छिण में छोड साथ।
जद पूछ्यौ कारण जावण रौ, हंस मारी बैरण अेक लात।
अधमरियां प्रांण मती तड़फा, सूळी पर सेज चढाती जा।
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा ![…]
उर रख कोड अपार, रीझ कर त्यार रँगोली।
प्रिया-विष्णु पधार, बहुरि मनुहार सुबोली।
सिंधुसुता सुखधाम, नाम तव है घणनामी।
तोड़ अभाव तमाम, अन्न-धन देय अमामी।
कवि अमर-सुतन ‘गजराज’ कह, मांडै धीवड़ माँडणा।
बेटियां हूंत घर व्है बडा, ओपै मनहर आँगणा।।[…]
माधव चरण शरण ले मूरख,
जनम मरण मिट जासी।
बावऴा क्यूं थूक विलोवै।
खऴ क्यूं जनम अकारथ खोवै।
होश गमाय बैठो है हर दिन,
गुण कद हर रा गासी।।माधव….
भटक आयो चौरासी भाया।
काट नहीं उतरियो काया।
अब तो चेत अरै उर आंधा,
पाछो कद अवसर पासी।।माधव….[…]
दीपों की जगमग ज्योति के माध्यम से संसार को ज्ञान, प्रेम, सौहार्द, समन्वय, त्याग, परोपकार, संघर्ष, कर्तव्यपरायणता, ध्येयनिष्ठा एवं रचनात्मकता का पाठ पढ़ाने वाले विशिष्ट त्योहार दीपोत्सव की हार्दिक बधाई के साथ अनंतकोटि शुभकामनाएं। भारतीय संस्कृति में संतति यानी संतान रूपी दीपक को यश, प्रतिष्ठा एवं कीर्ति दिलाने हेतु माता-पिता बाती के रूप में पारिवारिक कुलदीपक कह कर पुकारा गया है। हमारे सामाजिक ढांचे को ठीक से समझें तो लगता है कि माता-पिता स्नेह-घृत के सहारे अंतिम समय तक रोशन रहते हुए अपने आपको धन्य मानते हैं। जलती तो बाती है लेकिन नाम दीपक का होता है। […]
» Read more14 बरस पढ़ाई चाली खर्ची रकम करारी।
भाभोसा परसादी बांटे बण्यो पूत पटवारी।
पहली ठकराहत पटवारी, दूजी थानेदारी रे।
कोण सुणै पटवारी थारी नोकरड़ी सरकारी रे।।1।।
दे ट्रेनिंग कयो हल्का माँ जाइन करो ड्यूटी जाके।
तीजे दिन तेहसीलदार सा इंस्पेक्सन करसी आके।
पैदल रस्ता हालत खस्ता ऊपर बस्ता भारी रे।
कोण सुणै पटवारी थारी नोकरड़ी सरकारी रे।।2।।[…]
हे मित्र! समय को पहचानो,
बस इतना सा कहना मानो,
आलस से यारी मत करना,
ज्यादा होंशियारी मत करना।
ये क्षण में सबको छलता है,
पल पल में रूप बदलता है।
ये टाले से नहीं टलता है,
अपनी ही गति से चलता है।[…]
आजादी री घटा ऊमड़ी, बावळ दौट बजायो।
खोपा खड़े बिछैरा खावे, औ पड़पंच उडायो।।
कोट गढों रा झड़्या कूँगरा, पड़्यो विश्व परकोटो।
पकड़ पौळ ढाढै परजीवी, बखत आय ग्यो खोटो।।१।।
काळे धन री करामात सूं, होड लगी हद भारी।
झूंपड़ियों री जगा झुकाया, ऊँचा महल अटारी।
कौड़ी दास क्रोड़ ध्वज कीना, लागो लूंट खसोटो।
बिना बिचारे कहे बौपारी, बखत आय ग्यो खोटो।।२।।[…]