शूरवीर चारण कानाजी आढा द्वारा मित्र का वैर लेना – डॉ. नरेन्द्रसिंह आढा (झांकर)

।।शूरवीर चारण कानाजी आढा द्वारा आमेर के शासक सांगा को मारकर अपने मित्रवत् स्वामी करमचंद नरूका का वैर लेना।।

(सन्दर्भ: ख्यात देश दर्पण पृ स 28-29 कृत दयालदास सिंढायच व श्यामलदास जी दधवाडिया कृत वीर विनोद के भाग 3 के पृ स 1275)

बीकानेर की धरती के कानोजी आढा चारण जाति के बडे शूरवीर योद्धा थे कानोजी आढा दुरसाजी आढा की तरह कलम व कृपाण दोनो में सिद्धहस्त चारण थे। कानोजी अमल खूब खाते थे इनके अमल ज्यादा खाने से इनके भाईयों ने इन्हें घर से निकाल दिया। ये अमल की जुगाड में इधर उधर ठिकाणों में जाने लगे। घूमते हुए आमेर की सीमा में आ गये।[…]

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प्रथम राष्ट्र कवि व जनकवि दुरसाजी आढ़ा – डॉ. नरेन्द्र सिंह आढ़ा (झांकर)

दुरसाजी आढ़ा का जन्म चारण जाति में वि.स.1592 में माघ सुदी चवदस को मारवाड़ राज्य के सोजत परगने के पास धुन्धला गाँव में हुआ था। इनके पिताजी का मेहाजी आढ़ा हिंगलाज माता के अनन्य भक्त थे जिन्होंने पाकिस्तान के शक्ति पीठ हिंगलाज माता की तीन बार यात्रा की। मां हिंगलाज के आशीर्वाद से उनके घर दुरसाजी आढ़ा जैसे इतिहास प्रसिद्ध कवि का जन्म हुआ। गौतम जी व अढ्ढजी के कुल में जन्म लेने वाले दुरसाजी आढ़ा की माता धनी बाई बोगसा गोत्र की थी जो वीर एवं साहसी गोविन्द बोगसा की बहिन थी। भक्त पिता मेहाजी आढ़ा जब दुरसाजी आढ़ा की आयु छ वर्ष की थी, तब फिर से हिंगलाज यात्रा पर चले गये। इस बार इन्होनें संन्यास धारण कर लिया। […]

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गजल – थे भी कोई बात करो जी – जी.डी.बारहठ (रामपुरिया)

थे भी कोई बात करो जी,
भैरू जी नै जात करो जी।
अपणो बेटो पावण सारूं,
दूजो सिर सौगात करो जी।।

जनम दियो सो जर जर होया,
पीळा पत्ता झड़ जासी,
सुध-बुध वांरी मती सांभळो,
मंदिर में खैरात करो जी।।[…]

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चारणों के गाँव – जिले वार सम्पूर्ण लिस्ट

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जंगी गढ जोधांण / बंको बीकानेर

जग में चावो जोधपुर, भल चमकंतो भाण।
अड़ियो जाय अकास सूं, जंगी गढ जोधांण।।११
***
जाहर गढ जोधांण रो, हाड अकूणी हेर।
सदा निशंको सांप्रत, बंको बीकानेर।।14[…]

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करणी माता रा छंद – कवि खीमदान बारहठ

।।छंद – रोमकंद।।
जब मानव जट्टीय कुड़ कपट्टीय, काम निपट्टीय नीच करै।
मरजाद सुमट्टीय लोकन लुट्टीय, पाप प्रगट्टीय भुम परे।
कय आपस कट्टीय वारन वट्टीय, देख दुषटिय लोक डरयो।
करणी जग कारण पाप प्रजारण, धर्म वधारण रुप धरयो।
देवी धिय सुधारण रुप धरयो।।1।।[…]

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बखत आय ग्यो खोटो – कवि स्व. भँवरदान जी वीठू “मधुकर” (झणकली)

आजादी री घटा ऊमड़ी, बावळ दौट बजायो।
खोपा खड़े बिछैरा खावे, औ पड़पंच उडायो।।
कोट गढों रा झड़्या कूँगरा, पड़्यो विश्व परकोटो।
पकड़ पौळ ढाढै परजीवी, बखत आय ग्यो खोटो।।१।।

काळे धन री करामात सूं, होड लगी हद भारी।
झूंपड़ियों री जगा झुकाया, ऊँचा महल अटारी।
कौड़ी दास क्रोड़ ध्वज कीना, लागो लूंट खसोटो।
बिना बिचारे कहे बौपारी, बखत आय ग्यो खोटो।।२।।[…]

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आह्वान – कवि रिड़मलदान चारण

(छंद-नाराच/पंचचामर)
प्रचंड भुज्जदंड से,धरा अखंड तोल दे।
कराल रूप काल सा, त्रिकाल देख डोल दे।
भुला अतीत-रीत ना, निशंक जीत बोल दे।
पुकार आन-बान की, कृपाण म्यान खोल दे।[…]

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परित्यक्ता / पुनर्मिलन – कवियत्री छैल चारण “हरि प्रिया”

।।परित्यक्ता।।

उर में अति अनुराग सखी,
विरह की मीठी आग सखी!!
नयन भटकते दूर दूर जब
आँगन बोले काग सखी !!
अपनी ही सांसों में दो रुत,
लख कर जाती जाग सखी!![…]

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चारणों के पर्याय-नाम एवं १२० शाखाएं/गोत्र – स्व. ठा. कृष्णसिंह बारहट

प्रसिद्ध क्रांतिकारी एवं समाज सुधारक ठा. केसरी सिंह बारहट के पिताश्री ठा. कृष्णसिंह बारहट (शाहपुरा) रचित ग्रन्थ “चारण कुल प्रकाश” से उद्धृत महत्वपूर्ण जानकारी–
१. चारणों के पर्याय-नाम और उनका अर्थ
२. चारणों की १२० शाखाओं/गोत्रों का वर्णन[…]

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