हनुमान अष्टक – जनकवि ऊमरदान लालस

अंजनी ग्रभ आयौ, सुमन सुहायौ, गुनि गन गायौ, ग्यान गती।
पावन सुत पूरौ, दूषण दूरौ, समहर सूरौ, जन्म जती।
करनी सुभकारी, धर जस धारी, भव भयहारी, भीम भुजा।
ले लाल लंगोटी, काछ कछोटी, धारन मोटी, लाल धजा।।१

सुग्रीव सहाई, द्रढ सुखदाई, प्रभु रघुराई, संग पुर्यो।
बाली से बंका, दे रन डंका, किस्किंदा में जंग जुर्यो।
अंगद दल अंदर, कूधर कंदर, बन्दन जुत्थन में बिचर्यो।
सम्पाति निसंका, धरी न संका, पुनि लंका में कूद पर्यो।२

छबि सोधन इच्छन, सहज सुलच्छन, मिल्यौ वभिच्छन, बोध कर्यो।
धर पावन धोकन, आय असोकन, हिये सिये को सोक हर्यो।
मुदरी ढिग मेली, ईख अकेली, कंचन वेली, सरस करी।
काया कुमलानी, जाहर जानी, है सहनानी हाथ धरी।।३

वन वाग विध्वंसक, भो फल भक्षक, राक्षस रक्षक मार रुप्यो।
जयकार जमायौ, अक्षर आयौ, कुल रावन क्षयकार कुप्यौ।
दसमुख सुत मार्यौ, दन्त विदार्यौ, वीर हकार्यो, कटक बली।
वपु पास बंधानो, सर न संधानो, जाहर जानो ज्वाल जली।।४

जब लंका जारी, परज पुकारी, देख सुरारी दाह दह्यौ।
सीता सुध ल्यायौ, स्याम सुनायौ, काम कमायौ, वाह कह्यौ।
चुप सेतु बंधाई, करी चढाई, सेना आई, पार सुखी।
गढ लंका घेर्यौ, खल बल गेर्यौ, पुर दल पेल्यौ, दार दुखी।।५

सुर भये सुखारे, दैत दुखारे, राक्षस हारे, रार रची।
ललकार लगाई, सार संभाई, वार बजाई, मार मची।
दसकंधर दाट्यौ, कुल कुल काट्यौ, फिर मुख फाट्यौ, हीय हर्यौ।
सुत भट संहारे, मुदगर मारे, विहस बकारे, जीय जर्यौ।६

घिर चर लंकापुर, कंपत थर थर, घर घर असुरन कीर थली।
संकट के साथी, प्रबल प्रमाथी, विकट भयानक वीर बली।
लिछमन के लागी, अंग अभागी, सक्ति सुभागी स्याय करी।
द्रौणागिरि ल्यायौ, उर धर दायौ धीर सजीवन आन धरी।।७

जय जय छिति छायौ, मृतक जिवायौ, कंठ लगायौ, काकु सती।
रंग राज रिजायौ, हिय हुलसायौ, मोद न मायौ, डर असथी।
गुन केते गाऊँ, चित सकुचाऊँ, पार न पाऊँ, ताक तक्यौ।
रघुवर के संगी, हे बजरंगी, छंद त्रिभंगी, छाक छक्यौ।।८

~~जनकवि ऊमरदान लाल़स

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