मैं प्रलय वह्नि का वाहक हूँ !

मैं प्रलय वह्नि का वाहक हूँ !
मिट्टी के पुतले मानव का संसार मिटाने आया हूँ !
शोषित दल के उच्छवासों से, वह काँप रहा अवनी अम्बर !
उन अबलाओं की आहों से, जल रहा आज घर नगर-नगर !
जल रहे आज पापों के पर, है फूट रहा भयकारी स्वर !
इस महा-मरण की वेला में त्यौहार मनाने आया हूँ !
मिट्टी के पुतले मानव का संसार मिटाने आया हूँ !