रूंख रिछपाळ री करो रिच्छा – पुष्पेन्द्र जुगतावत पारलाउ

।।गीत बडो साणोर।।
परम आसरो पामियो अठे नित पंथिये,
चरम त्रिप्ती थई पूर्ण इंछा।
बावळां नरम नाजुक घड़ी विचारो,
रूंख रिछपाळ री करो रिच्छा।
इये ने राखियों टळै दर आपदा,
सदा चाकर रहै पवन वरसा।
प्राणदा हरित ने पोखजो प्राणियों,
कुदिन निवडे़ हुवे सुखी करसा।

» Read more

माँ करणी सूं विनती – मनोज चारण (गाडण) “कुमार”

।।छंद रोमकंद।।
इण धाम धरा पर नाम रहै, कर मात तुहीं किरपा हमपे।
करणी शरणै अब तोर पङे, धर हाथ तिहारो माँ सर पे।
कळू-काळ दकाळ करै फिरतो, माँ साय सहाय तूं ही करती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।१।

» Read more

साहित राग बतीसी (रूड़ो साहित राग) – मीठा मीर डभाल कृत (डिंगळ री डणकार)

गावत किन्नर देव गण, उपजत हरख अथाग।।
इन्द्र सभा सूं आवियो, रूड़ो साहित राग।।१।।
शिव तांडव करतां समै, भव भव खुलेह भाग।।
भोळा रे मन भावतो, रूड़ो साहित राग।।२।।
सृष्टी हरखावत सघळी, नव कुळी रिझत नाग।।
गगन धरा गूंजायदे, रूड़ो साहित राग।।३।।

» Read more

हनुमान वंदना – कानदासजी मेहडु  (गाम- सामरखा) 

॥छंद त्रिभंगी॥
मन हेत धरंगी, हरस उमंगी, प्रेम तुरंगी, परसंगी।
सुग्रीव सथंगी, प्रेम पथंगी, शाम शोरंगी, करसंगी।
दसकंध दुरंगी, झुंबै झंगी, भड राखस जड थड भंगी।
रामं अनुरंगी, सीत सुधंगी, बिरद उमंगी, बजरंगी॥1॥[…]

» Read more

मां मोंगल मछराळ रा दोहा – मीठा मीर डभाल

विनय सुणन्तां वाहरू, तैयार हुय तत्काळ।।
छिन्न में बंध छुड़ावणी, मां मोंगल मछराळ।।१।।
भुज कर लम्बा भगवती, टेम विघन री टाळ।।
महर करण तुंही मुदै, मां मोंगल मछराळ।।२।।
देवी तुझ दरबार में नमै कैक नरपाळ।।
आशा पूरण अंबिका, मां मोंगल मछराळ।।३।।

» Read more

माताजी का छंद – कवि जय सिंह जी सिंढायच (मंदा)

!!छन्द: अर्ध-नाराच!!
नमामी मेह नन्दिनी! नमामी विश्व वन्दिनी!!
भुजा विशाल धारणी! दयाल दास तारणी!!1!!
क्रपानिधे क्रपालकम्! दयाल बाल पालकम्!!
विशाल बिन्द भालकम्! नयन्न नैह न्हालकम्!!2!!
न जाने भेद नारदम्! सदा जपन्त शारदम्!!
नमामि भक्त वच्छलम्! अनाद विर्द उज्ज्वलम्!!3!!

» Read more

सरस्वती आह्वाहन – हिम्मत कविया नोख

।।छंद रोमकन्द।।

शशि पूनम री धवली किरणों जिम सेत सजी उजला तु गिरा।
कर में कछपी मुख वेद उचारण की छबि माँ छन दास दिरा।।
जिण सूं जयदायिनि बीस भुजायिनि अंतस रो तम मो हरदे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।1।।

» Read more

महाराणा प्रताप रौ जस – कवि स्व. भँवरदान जी वीठू “मधुकर” (झणकली)

उतर दियौ उदीयाण दिन पलट्यौ पल़टी दूणी।
पातल़ थंभ प्रमाण़ शैल गुफावा संचरीयौ।

मिल़ीयौ मैध मला़र मुगला री लशकर माय।
कलपै राज कुमार मैहला़ चालौ मावड़ी।

महल रजै महाराण कन्दरावा डैरा किया।
पौढण सैज पाखांण हिन्दुवां सुरज हालीया।

» Read more
1 43 44 45 46 47 55